आज 11 मई 2025 है। आज छिन्नमस्तिका जयंती है। यह जयंती हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। छिन्नमस्ता जयंती माँ छिन्नमस्ता के प्रकट होने की शुभ तिथि है। जो तंत्र की दस महाविद्याओं में से एक मानी जाती है। माँ छिन्नमस्ता आत्म-बलिदान, शक्ति और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक हैं। देश के कई हिस्सों में छिन्नमस्ता को प्रचंड चंडिका के नाम से भी जाना जाता है। मां की पूजा और भक्ति से जीवन की कठिनाइयों से राहत मिलती है। इनकी भक्ति मंत्र और तंत्र दोनों तरह से की जाती है।
मां छिन्नमस्ता देवी का भव्य मंदिर
छिन्नमस्ता या ‘छिन्नमस्तिका’ या ‘प्रचण्ड चण्डिका’ दस महाविद्यायों में से एक हैं। छिन्नमस्ता देवी के हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है तथा दूसरे हाथ में खड्क है। मान्यता है कि छिन्नमस्ता महाविद्या सकल चिंताओं का अंत करती है और मन में चिन्तित हर कामना को पूरा करती हैं। इसलिए उन्हें चिंतपुरणी भी कहा जाता है। चिंतपुरणी मंदिर हिमाचल प्रदेश मे है। देवी छिन्नमस्ता का एक प्रसिद्ध मंदिर रजरप्पा मे है। सहारनपुर की शिवालिक पहाडियों के मध्य प्राचीन शाकम्भरी देवी शक्तिपीठ मे भी छिन्नमस्ता देवी का एक भव्य मंदिर है।
देखें शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, 10 मई को शाम 05 बजकर 29 मिनट पर वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि प्रारंभ होगी। वहीं, 11 मई को शाम 08 बजकर 01 मिनट पर यह तिथि समाप्त होगी। सनातन धर्म में तिथि की गणना सूर्योदय से की जाती है। इस दिन छिन्नमस्ता जयंती का आयोजन किया जाएगा। जिसमें देवी मां छिन्नमस्ता की पूजा की जाएगी।
जानें पूजन विधि
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर को साफ करके पवित्र स्नान करे। साफ लाल कपड़े पहनकर देवी का ध्यान करके उपवास की शुरूआत करे। इसके बाद पवित्र स्थान में देवी दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें। देवी छिन्नमस्ता की पूरी विधि-विधान और भक्ति के साथ पूजा करें। देवी को नीले फूल और माला अर्पित करें। देवी को लोभान अति प्रिय है इससे देवी प्रसन्न होती हैं। इसलिए लोबान जलाएं। देवी को फल, फूल और मिठाई चढ़ाएं, खासकर नारियल का भोग लगाएं। सरसों के तेल का दीपक जलाएं। छिन्नमस्ता मूल मंत्र का जाप करें।
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनियै हम हम फट स्वाहा: