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19 अक्टूबर: आज शारदीय नवरात्र का पांचवां दिन मां स्कंदमाता को समर्पित, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र व कथा

आज 19 अक्टूबर है। आश्विन नवरात्र की शुरुआत 15 अक्टूबर से हो‌ गई है। हिंदू धर्म में नवरात्र का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। आज नवरात्र का पांचवां दिन है।

मां स्कंदमाता पूजन विधि

आज शारदीय नवरात्र का पांचवां दिन है और इस दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप स्कंदमाता की पूजा-अर्चना की जाती है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम दिया गया है। भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं। आज प्रातः स्नान के बाद मां स्कंदमाता को स्मरण करके उनकी मूर्ति या तस्वीर पर लाल फूल, अक्षत्, सिंदूर, धूप, दीप, गंध आदि अर्पित करें। इस दौरान मां स्कंदमाता के मंत्र का उच्चारण शुद्धता से करें। फिर उनको केले या बताशे का भोग लगाएं. उसके बाद दुर्गा चालीसा पाठ और मां स्कंदमाता की महिमा का बखान करें। उनकी घी के दीपक से आरती उतारें। आज के दिन भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है।

जानें मां स्कंदमाता का स्वरूप

भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता होने के कारण देवी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है । भगवान स्कंद ‘कुमार कार्तिकेय’नाम से भी जाने जाते हैं । ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्तिधर कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है ,इनका वाहन मयूर है। स्कंदमाता के विग्रह में भगवान स्कंदजी बालरूप में इनकी गोद में बैठे हुए हैं।

नवरात्र की पंचमी तिथि का शुभ मुहूर्त

✅आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि आरंभ-
सुबह 12 बजकर 10 मिनट से शुरू

✅आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि समाप्त-
रात 10 बजकर 34 मिनट तक

जानें मां स्कंदमाता की व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, असुर तारकासुर कठोर तपस्या कर रहा था। तारकासुर की तपस्या से भगवान ब्रह्मा प्रसन्न हो गए थे। वरदान में तारकासुर ने अमर होने की इच्छा रखी। यह सुनकर भगवान ब्रह्मा ने उसे बताया कि इस धरती पर जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है , कोई अमर नहीं हो सकता है। तारकासुर निराश हो गया, जिसके बाद उसने यह वरदान मांगा कि भगवान शिव का पुत्र ही मेरा वध कर सके। तारकासुर ने सोचा की भगवान शिव कभी विवाह नहीं करेंगे और ना ही उनका पुत्र होगा। तारकासुर यह वरदान प्राप्त करने के बाद लोगों पर अत्याचार करने लगा। तंग आकर सभी देवता भगवान शिव से मदद मांगने लगे। तारकासुर का वध करने के लिए भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया। विवाह करने के बाद शिव-पार्वती का पुत्र कार्तिकेय हुआ। जब कार्तिकेय बड़ा हुआ तब उसने तारकासुर का वध कर दिया। स्कंदमाता को कार्तिकेय की माँ कहा गया है।

स्तुति मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

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