हिमालय क्षेत्र की जैव विविधता पर किये गए शोध एवं विकास कार्यों हेतु गोविन्द बल्लभ पन्त राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी कटारमल, अल्मोड़ा के पूर्व निदेशक तथा वैज्ञानिक स्वर्गीय डा० उपेन्द्र धर के योगदान का सम्मान करते हेतु उनकी प्रथम पुण्य तिथि के अवसर पर आज संस्थान दवारा पहले डॉ. यू. धर लोकप्रिय व्याख्यान का आयोजन ऑनलाइन तथा ऑफलाइन मोड पर किया गया ।
डा० धर के शोध कार्यों के आधार पर वर्तमान में हिमालयी परिदृश्य को संरक्षित करने का किया जा रहा कार्य
कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुए वरिष्ठ वैज्ञानिक डा० जी०सी०एस नेगी ने डा० धर के जैव विविधता संरक्षण हेतु उनके द्वारा किये गए कार्यों पर प्रकाश डाला. डा० नेगी ने बताया कि डा० धर ने हिमालयी जैव विविधता का विस्तृत अध्ययन किया तथा उनके शोध कार्यों के आधार पर वर्तमान में हिमालयी परिदृश्य को संरक्षित करने का कार्य किया जा रहा है ।
प्रो० सुनील नौटियाल ने डा० उपेन्द्र धर को एक सच्चा वैज्ञानिक, अध्यापक एवं प्रेरणादायक व्यक्तित्व बताया
संस्थान के निर्देशक प्रो० सुनील नौटियाल ने डा० उपेन्द्र धर को एक सच्चा वैज्ञानिक, अध्यापक एवं प्रेरणादायक व्यक्तित्व बताया । उन्होंने कहा कि डा० धर संस्थान के वो पहले निदेशक थे जिनके द्वारा शोध कार्यों के साथ सांस्कृतिक क्रियाकलापों के महत्त्व को समझते हुए युवा शोधार्थियों को प्रेरित किया गया तथा संस्थान में उनके द्वारा सांस्कृतिक क्रियाकलापों का शुभारम्भ भी हुआ ।
डा० धर समर्पित फील्ड वनस्पतिशास्त्री और प्रकृतिवादी थे
इसी क्रम में संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा० इंद्र दत्त भट्ट ने बताया कि डा० धर समर्पित फील्ड वनस्पतिशास्त्री और प्रकृतिवादी थे । वर्ष 1990 में डा० धर ने वैज्ञानिक के रूप में संस्थान में आये एवं 2003 से 2008 तक वो निदेशक के रूप में कार्यरत रहे. इस दौरान उनके द्वारा हिमालयी जैव विविधता पर एक्शन प्लान तैयार किया गया साथ ही उन्होंने छात्रों और शिक्षकों को शामिल करते हुए जैव विविधता संरक्षण शिक्षा को बढ़ावा दिया. अपने निदेशक कार्यकाल के दौरान उन्होंने 14 राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं को संस्थान में क्रियान्वित किया । उनकी परिकल्पना के आधार पर संस्थान में सूर्यकुञ्ज की स्थापना हुई जो वर्तमान में प्रतिवर्ष 420 टन कार्बन सोख रहा है तथा विविध 600 बहुमूल्य पादप प्रजातियों का संरक्षित क्षेत्र है । वर्तमान में सूर्यकुञ्ज जैव विविधता संरक्षण का एक मुख्य उदाहरण के रूप में विख्यात हो चुका है ।
यह व्याख्यान श्रृंखला निरंतर चलती रहनी चाहिए
संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो० ए० एन० पुरोहित द्वारा अध्यक्षीय संबोधन में इस व्याख्यान श्रृंखला हेतु धन्यवाद दिया गया तथा संस्थान को निर्देशित किया कि यह व्याख्यान श्रृंखला निरंतर चलती रहनी चाहिए । उन्होंने कहा कि डा० घर द्वारा संस्थान को प्रगतिशील बनाया गया एवं आज संस्थान पूरे विश्व भर में हिमालयी शोध हेतु विख्यात हो रहा है । इसी को बढ़ाते हुए संस्थान को यूरोपीय यूनियन के रूप में कार्य करने तथा एक्शन प्लान बनाने की आवश्यकता है ताकि हम हिमालयी पर्वत श्रृंखला हेतु शोध एवं सामाजिक कार्य कर सकें ।
अल्पाइन प्लांट इकोलॉजी में अति विशिष्ठ कार्य किया है जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान प्राप्त हुई
इसी क्रम में डा० जे०सी० कुनियाल, वरिष्ठ वैज्ञानिक द्वारा डा घर स्मृति व्याख्यान के प्रथम मुख्य वक्ता डॉ. गोपाल सिंह रावत, पूर्व निदेशक भारतीय वन्यजीव संस्थान का परिचय देते हुए उनके हिमालयी जैव विविधता संरक्षण एवं संवर्धन हेतु किए गए विविध शोध कार्यों को प्रस्तुत किया । डा० कुनियाल ने बताया कि डा० रावत ने अपने कार्यकाल के दौरान अल्पाइन प्लांट इकोलॉजी में अति विशिष्ठ कार्य किया है जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान प्राप्त हुई है । अतः आज का व्याख्यान डा० रावत द्वारा दिया जाना हम सभी के लिए हर्ष एवं गौरव का विषय है ।
हिमालया अल्पाइन क्षेत्र में लगभग 1810 से 2000 तक पादप प्रजातियाँ पायी जाती हैं
डा० घर स्मृति व्याख्यान प्रथम मुख्य वक्ता डॉ. गोपाल सिंह रावत, पूर्व निदेशक भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा दिया गया । उनके व्याख्यान का विषय पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी हिमालय के अल्पाइन क्षेत्र में पौधों की प्रजातियों की समृद्धि और विविधता के पैटर्न था । अपने व्याख्यान में डा० रावत ने अल्पाइन मीडोज के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए वहां पायी जाने वाली विभिन्न पादप प्रजातियों प्रचुरता एवं विविधता का वर्णन किया । उनके द्वारा बताया गया कि हिमालया अल्पाइन क्षेत्र में लगभग 1810 से 2000 तक पादप प्रजातियाँ पायी जाती हैं जिसमें एस्टीरेसी फैमिली प्रमुख प्रभुत्व वाली पादप प्रजाति है । उन्होंने बताया कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में लगभग 135 पादप प्रजातियाँ स्थानिक हैं । साथ ही उनके द्वारा भविष्य में शोध संभावनाओं हेतु कार्य करने जिसमें मुख्यतः मानव जनित दबाव तथा जलवायु परिवर्तन से होने वाले दुष्प्रभावों का अध्ययन, संरक्षण एवं प्रबंधन नीतियों, क्षमता निर्माण आदि विषय पर कार्य करने का सुझाव दिया गया ।
पुस्तक “हिमालयन फ्रूट्स एंड बेरीज” का लोकार्पण किया गया
व्याख्यान के उपरान्त संस्थान के पूर्व निदेशक स्वर्गीय डा० आर०एस० रावल को श्रद्धांजलि देते हुए पुस्तक “हिमालयन फ्रूट्स एंड बेरीज” का लोकार्पण डा० जे०सी० कुनियाल तथा डा० जी०सी०एस० नेगी द्वारा किया गया । पुस्तक के एडिटर डा० तरुण बेलवाल, डा० आई०डी० भट्ट तथा हरिदेव कोटा ने अपनी पुस्तक डा० आर०एस० रावल को समर्पित की. डा० उपेन्द्र घर के सुपुत्र श्री अक्षय धर ने संस्थान की इस पहल का अभिनन्दन करते हुए समस्त संस्थान परिवार को धन्यवाद दिया तथा डा० धर के अविस्मरणीय बातों को साझा किया । कार्यक्रम के अंत में डा० के०सी० संकर ने कार्यक्रम संचालक, मुख्य व्याख्यान वक्ता, पूर्व निदेशक, संस्थान परिवार तथा समस्त प्रतिभागियों को धन्यवाद दिया ।
संस्थान के क्षेत्रीय केन्द्रों से भी वैज्ञानिक तथा शोधार्थी ऑनलाइन जुड़े रहे
कार्यक्रम में संस्थान मुख्यालय से डा०. सतीश चन्द्र आर्य, डा० मिथिलेश सिंह, डा० हर्षित पन्त, डा० विक्रम नेगी, डा० शैलजा पुनेठा, डा. सुबोध ऐरी, ई० एकनाथ गोस्वामी तथा शोधार्थियों द्वारा प्रतिभाग किया गया । कार्यक्रम के दौरान संस्थान के क्षेत्रीय केन्द्रों से भी वैज्ञानिक तथा शोधार्थी ऑनलाइन जुड़े रहे ।