March 29, 2024

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हड़प्पा सभ्यता के शहर धोलावीरा को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल किया घोषित, भारत में विश्व धरोहर स्थल की संख्या बढ़कर हुई 40

यूनेस्को की ओर से भारत की एक और धरोहर को सम्मान मिला है। यूनेस्को ने मंगलवार को गुजरात स्थित धोलावीरा को वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया है। यह फैसला वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी ऑफ यूनेस्को के 44वें सत्र के दौरान लिया गया। इस सेशन में पहले तेलंगाना के मंदिर रुद्रेश्वर को विश्व के धरोहरों की सूची में शामिल किया गया था, जिसे रामप्पा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। काकतिया रुद्रेश्वर (रामप्पा) मंदिर को 25 जुलाई को विश्व धरोहर के शिलालेख में अंकित किया गया, जबकि सिंधु घाटी सभ्यता का एक विशाल स्थल धोलीवारा को आज शामिल किया गया है। यूनेस्को द्वारा जारी आधिकारिक बयान में यह कहा गया है कि भारत में विश्व धरोहर स्थल की संख्या बढ़कर 40 हो गई है।

हड़प्पा सभ्यता के अवशेष पाए जाते हैं


धोलावीरा में हड़प्पा सभ्यता के अवशेष पाए जाते हैं, जो दुनिया भर में अपनी अनूठी विरासत के तौर पर मशहूर हैं। धोलावीरा गुजरात में कच्छ प्रदेश के खडीर में स्थित एक ऐतिहासिक स्थल है, जो लगभग पांच हजार साल पहले विश्व का प्राचीन महानगर था। हड़प्पा सभ्यता के पुरास्थलों में एक नवीन कड़ी के रूप में जुड़ने वाला पुरास्थल धौलावीरा ‘कच्छ के रण’ के मध्य स्थित द्वीप ‘खडीर’ में स्थित है।

अकेले गुजरात में अब 4 वर्ल्ड हेरिटेज साइट

गुजरात की बात करें तो यहां धोलावीरा समेत अब कुल 4 वर्ल्ड हेरिटेज साइट यहां मौजूद हैं। धोलावीरा के अलावा पावागढ़ में स्थित चंपानेर, पाटन और अहमदाबाद में रानी की वाव को भी वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा मिला है।आपको बता दें, यूनेस्को के मुताबिक किसी ऐसी विरासत को वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा दिया जाता है, जो संस्कृति और प्राकृतिक महत्व की हो। इसके अलावा किसी भी देश की संस्कृति की झलक देने वाली और भविष्य में भी मानव समाज को प्रेरित करने वाली जगहों को यह दर्जा दिया जाता है।

क्यूं प्रसिद्ध है धोलावीरा?

धोलावीरा एक लोकप्रिय प्राचीन स्थल है, जो गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तालिका में मासर एवं मानहर नदियों के संगम पर स्थित है। यह सिंधु सभ्यता का एक प्राचीन और विशाल नगर था। धोलावीरा को सिंधु सभ्यता का सबसे सुंदर नगर माना जाता है और यहां जल संग्रहण के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं। धोलावीरा को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने खोजा था। पद्मश्री पुरस्कार विजेता आरएस बिष्ट की देखरेख में इसकी खोज हुई थी। स्थानीय लोग इसे ‘कोटा दा टिंबा’ कहते हैं।