हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध लेखिका मन्नू भंडारी का आज 90 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। उनका जन्म 3 अप्रैल 1931 में मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के भानपुरा गांव में हुआ था। मन्नू भंडारी ने अपनी शुरुआती शिक्षा राजस्थान के अजमेर से हासिल की। इंटर तक पढ़ाई उन्होंने अजमेर में ही पूरी की। बाद में उन्होंने हिंदी में M.A. किया। आंखों देखा झूठ, आपका बंटी जैसे लोकप्रिय उपन्यासों के लिए भंडारी ने लाखों लोगों का दिल जीता।
उनकी कहानियों और उपन्यासों में महिला किरदारों के संघर्ष और समाज में उनकी स्थिति का मिलता है चित्रण
मन्नू भंडारी के निधन से हिंदी साहित्य जगत की एक पीढ़ी का अवसान हो गया है। मन्नू भंडारी नई कहानी आंदोलन का हिस्सा रही हैं, जिसकी शुरुआत निर्मला वर्मा, राजेंद्र यादव, भीष्म साहनी, कमलेश्वर जैसे लेखकों ने की थी। मन्नू भंडारी उन लेखिकाओं में से रही हैं, जिन्होंने आजादी के बाद के भारत की आकांक्षी महिलाओं की कहानियों को लिखा है। उनकी कहानियों और उपन्यासों में महिला किरदारों के संघर्ष और समाज में उनकी स्थिति का चित्रण मिलता है। मन्नू भंडारी को उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए शिखर सम्मान समेत कई बड़े अवॉर्ड मिले। उन्होंने भारतीय भाषा परिषद कोलकाता, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के पुरस्कार हासिल किए।
उनकी लिखी किताबों पर फिल्में भी बनी
मन्नू भंडारी की लिखी किताबों पर फिल्में भी बनी हैं। उनकी कहानी ‘यही सच है’ पर 1974 में ‘रजनीगंधा’ फिल्म बनाई गई। ‘आपका बंटी’, ‘मैं हार गई’, ‘तीन निगाहों की एक तस्वीर’, ‘एक प्लेट सैलाब’, ‘यही सच है’, ‘आंखों देखा झूठ’ और ‘त्रिशंकु’ संग्रहों को पढ़ने के बाद लोगों को उनके असल व्यक्तित्व की झलक मिलती है। उनके जीवन के दुख दर्दों को समझने के लिए ‘आपका बंटी’ उपन्यास को पढ़ा जा सकता है। इसमें उन्होंने अपने विवाह के टूटने के बाद हुई त्रासदी का जिक्र किया है। इस उपन्यास ने उन्हें शोहरत दिलाई। मन्नू भंडारी का उपन्यास ‘महाभोज’ राजनीति सामाजिक जीवन में आई मूल्यहीनता, तिकड़मबाजी के बारे में बताता है। इस उपन्यास में सरोहा गांव की कहानी है, जहां बिसेसर नाम के पात्र की मृत्यु के बाद उसे राजनीतिक केंद्र में रखकर सभी राजनेता अपना अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं।
माता-पिता ने उन्हें महेंद्र कुमारी नाम दिया
आपको बता दें कि मन्नू भंडारी के पति सुप्रसिद्ध साहित्यकार राजेंद्र यादव थे। उनके माता-पिता ने उन्हें महेंद्र कुमारी नाम दिया था। लेकिन लेखन क्षेत्र में अपने कदम बढ़ाने के बाद उन्होंने अपना नाम बदलकर मन्नू कर दिया। इसके पीछे की वजह ये थी कि उन्हें बचपन में लोग मन्नू कहकर बुलाते थे। लोग उन्हें आजीवन मन्नू भंडारी के नाम से ही बुलाते रहे। मन्नू भंडारी के निधन के बाद से ही हिंदी साहित्य जगत में शोक की लहर है। सोशल मीडिया पर उनके फैंस उनके लिए अपनी भावनाएं व्यक्त कर रहे हैं।
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