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निकल आती हैं खामियां , आदमी हैं!भला भगवान थोड़े हैं – डॉ.ललित योगी की कुछ ‘अनकही स्मृतियों’ से

भूल

निकल आती हैं खामियां
आदमी हैं!भला भगवान थोड़े हैं।
हो जाती हैं गलतियां भी भूल से
भला हम कंप्यूटर थोड़े हैं।।
करने वालों से ही होती हैं-
अक्सर काम में गलतियां।
बात बात पर गलती गिनाने वालों
की तरह हम हुनरबाज थोड़े हैं।
        अनकही स्मृतियां

  मशीन हो गया हूँ✍️

रोबोट सी हो चुकी जिंदगी,
और चलती मशीन हो गया हूँ।।
ज़रा भी फुर्सत मिलती नहीं,
जैसे भागती हुई ट्रेन हो गया हूँ।।

चेहरे में नहीं खिलते कमल
बुझे बुझे से रहते हैं अब।
मुद्दतों से, खुद को मिले नहीं,
खुद के लिए अनसीन हो गया हूँ।
रोबोट सी हो चुकी है जिंदगी,
चलती हुई मशीन हो गया हूँ।।
        ©अनकही स्मृतियां

     ✍️मुँह फुलाए हुए हैं!

चेहरे पर एक नया झूठा चेहरा
वो अब हर दिन लगाए हुए हैं
गुरुर का चश्मा आंखों पर और
हक़ीक़त में पर्दा लगाए हुए हैं
जब से सच्चाई ऊगली है मैंने उनकी
तब से वो अपना मुँह फुलाए हुए हैं।
        ©अनकही स्मृतियां

                      ✍️जिंदगी
जिंदगी जीना भी इतना आसान नहीं।
टूटकर बिखरने वाले भी तो हम नहीं।।

                     हियक हाल✍️
आपुण हियक हाल कैं,कैकैं दिखाई न जा्न।
डबडबाई आंखनक तौहड़़ कैं छुपाई न जा्न।।

           ✍️चांद
चांद मेरे ऊपर से,
तारे भी हैं जैसे छत पर।
आकाश ये मुझको घूरे,
निशा भी आई रथ पर।।
      ©अनकही स्मृतियां

         ✍️ उनका

चेहरा सुन्न,लब खामोश
पलखें झुखी हैं
आंखें कह रही हैं फसाना दिल का।
कदम लड़खड़ाये
विश्वास डगमगाया
इन दिनों हाल बेहाल है उनका।
       ©अनकही स्मृतियां

               ✍️ उगल
खुल रही है स्टेटस पर हमारी जिंदगी।
बिन पूछे ही सब उगल रही है जिंदगी।।
        ©अनकही स्मृतियां

       ✍️मुस्कुराना

चेहरे का गम छुपाकर,
मुस्कुराना आ गया।
कंटकों से हैं पथ भरे,
मुझको चलना आ गया।।
कुछ पल की है जिंदगी
जिंदादिली ही है भली।
योगी से हैं हम बने,
हमको जीना आ गया।
चेहरे का गम छुपाकर,
मुस्कुराना आ गया।।
        ©अनकही स्मृतियां

          ✍️कलयुग

जल रहा है भीतर भीतर,
अजगर की फुंकार तो देखो
रागद्वेष का बीज पला है,
रावण की चीत्कार तो देखो।
आंखें हैं रक्ततप्त सी
मुखमंडल में गुस्सा दमके
षड्यंत्र है हिय के भीतर
कोई कलयुग का राग तो देखो।।

              ©डॉ. ललित योगी

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