March 29, 2024

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अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस – साक्षरता का अर्थ केवल पढ़ना-लिखना नहीं

साक्षरता के बारे में जागरूक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 8 सितम्बर को विश्वभर में ‘अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस’ मनाया जाता है। दुनिया से अशिक्षा को समाप्त करने के संकल्प के साथ 54वां ‘अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस’ मनाया जा रहा है। पहली बार यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) द्वारा 17 नवम्बर 1965 को 8 सितम्बर को ही अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाए जाने की घोषणा की गई थी, जिसके बाद प्रथम बार 8 सितम्बर 1966 से शिक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष इसी दिन मनाने का निर्णय लिया गया। वास्तव में यह संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों का ही प्रमुख घटक है।

अध‍िकारों को जानने में मददगार है साक्षरता

मानव विकास और समाज के लिए उनके अधिकारों को जानने तथा साक्षरता की ओर मानव चेतना को बढ़ावा देने के लिए ही अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया जाता है। साक्षरता दिवस के अवसर पर जन जागरूकता बढ़ाने तथा प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों के पक्ष में वातावरण तैयार किया जाता है। यह दिवस को शिक्षा प्राप्त करने की ओर लोगों को बढ़ावा देने के लिए तथा परिवार, समाज और देश के लिए अपनी जिम्मेदारी को समझने के लिए मनाया जाता है।

साक्षरता सतत् विकास

सामाजिक प्रगति प्राप्ति पर ध्यान देने के लिए 2006 में अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस का विषय ‘साक्षरता सतत विकास’ रखा गया था। वर्ष 2007 और 2008 में अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस की विषय-वस्तु ‘साक्षरता और स्वास्थ्य’ थी, जिसके जरिये टीबी, कॉलेरा, एचआईवी, मलेरिया जैसी फैलने वाली बीमारियों से लोगों को बचाने के लिए महामारी के ऊपर ध्यान केन्द्रित करने का लक्ष्य रखा गया था। वर्ष 2009 में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण पर ध्यान देने के लिए इसका विषय ‘साक्षरता और सशक्तिकरण’ रखा गया था जबकि 2010 की थीम ‘साक्षरता विकास को बनाए रखना’ थी।

साक्षरता का अर्थ केवल पढ़ना-लिखना नहीं

साक्षरता का अर्थ केवल पढ़ना-लिखना या शिक्षित होना ही नहीं है बल्कि सफलता और जीने के लिए भी साक्षरता बेहद महत्वपूर्ण है। यह लोगों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करते हुए सामाजिक विकास का आधार स्तंभ बन सकती है। भारत हो या दुनिया के अन्य देश, गरीबी मिटाना, बाल मृत्यु दर कम करना, जनसंख्या वृद्धि नियंत्रित करना, लैंगिक समानता प्राप्त करना आदि समस्याओं के समूल विनाश के लिए सभी देशों का पूर्ण साक्षर होना बेहद जरूरी है। साक्षरता में ही वह क्षमता है, जो परिवार और देश की प्रतिष्ठा बढ़ा सकती है। आंकड़े देखें तो दुनिया में 127 देशों में से 101 देश ऐसे हैं, जो पूर्ण साक्षरता हासिल करने के लक्ष्य से अभी दूर हैं। चिंता की बात यह है कि भारत भी इनमें शामिल है।

भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से निरक्षरता समाप्त करना प्रमुख चिंता रहा है। हमारे यहां ‘राष्ट्रीय साक्षरता मिशन प्राधिकरण’ राष्ट्रीय स्तर की शीर्ष एजेंसी है और यह प्राधिकरण वर्ष 1988 से ही लगातार ‘अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस’ मनाता रहा है। हालांकि आजादी के बाद साक्षरता दर देश में काफी तेजी से बढ़ी है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में करीब 74 फीसदी नागरिक साक्षर हैं जबकि ब्रिटिश शासन के दौरान सिर्फ 12 फीसदी लोग साक्षर थे।

केरल में साक्षरता प्रतिशत सर्वाधिक 93.91 फीसदी जबकि बिहार में सबसे कम 63.82 फीसदी है। देश में विद्यालयों की कमी, विद्यालयों में शौचालयों आदि की कमी, निर्धनता, जातिवाद, लड़कियों के साथ छेड़छाड़ या बलात्कार जैसी घटनाओं का डर, जागरूकता की कमी इत्यादि साक्षरता का लक्ष्य हासिल न हो पाने के मुख्य कारण हैं। अतः इनके निदान के लिए गंभीर प्रयास होना नितांत आवश्यक है ताकि भारत एक पूर्ण साक्षर राष्ट्र बनने का गौरव हासिल कर सके।