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हर वर्ष वैशाख मास की पूर्णिमा को कूर्म जयंती मनाई जाती है । जब -जब धरती पर पाप बढ़ता गया है । तब- तब भगवान ने पाप के विनाश के लिए धरती पर अवतार लिया है । भगवान विष्णु के दस अवतारों में कूर्म अवतार दूसरा अवतार है ।कूर्म जयंती को भगवान विष्णु के इस अवतार की पूजा करना अत्यंत ही शुभ और मंगलकारी माना जाता है । आइए जानें भगवान विष्णु से जुड़ी कूर्म कथा के बारे में …
जानिए कूर्म कथा से जुड़ी ये पौराणिक कथा
भगवान के कूर्म अवतार को कच्छप अवतार भी कहा जाता है । पौराणिक कथाओं के अनुसार महर्षि
दुर्वासा ने अपना अपमान होने के कारण देवराज इन्द्र को ‘श्री’ (लक्ष्मी) से हीन हो जाने का शाप दिया था। भगवान विष्णु ने इंद्र को शाप मुक्ति के लिए असुरों के साथ ‘समुद्र मंथन’ के लिए कहा और दैत्यों को अमृत का लालच दिया। तब देवों और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया।देवताओं की ओर से इंद्र और असुरों की ओर से विरोचन प्रमुख थे । समुद्र मंथन के लिए सभी ने मिलकर मदरांचल पर्वत को मथानी एवं नागराज वासुकि को नेती बनाया । पर नीचे कोई आधार नहीं होने के कारण पर्वत समुद्र में डूबने लगा। यह देखकर भगवान विष्णु ने विशाल कछुए का रूप धारण किया और समुद्र में उतरे । उन्होंने अपनी पीठ पर में मंदराचल पर्वत को रख लिया।और भगवान कूर्म की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घूमने लगा । इस तरह सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने कूर्म यानी अर्थात कच्छप का अवतार लिया । इस प्रकार भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकि नामक नाग की सहायता से देवों एंव असुरों ने समुद्र मंथन करके चौदह रत्नों की प्राप्ति की, उसी समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप भी धारण किया था ।
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