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हिन्दी दिवस 2022: जानें 14 सितम्बर को ही क्यों मनाते हैं हिन्दी दिवस, आइए जानें हिंदी दिवस से जुड़ी खास बातें

‘हिन्दी’ कहते या सुनते ही एक गर्व की अनुभूति होती है। प्रति वर्ष 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। हिन्दी भाषा विश्व में चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। हिन्दी दिवस पूरे भारत में हिन्दी भाषा के सम्मान और महत्व को समझने के लिए मनाया जाता हैं। हिन्दी भाषा का एक बहुत ही गहरा इतिहास है, जो इंडो-आर्यन शाखा और इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार से जुड़ा हुआ है। आखिर क्यों मनाया जाता है हिन्दी दिवस? हिन्दी दिवस पर कौन-कौन से पुरस्कार दिये जाते हैं? आखिर, भारत के अलावा और कौन सा राष्ट्र है, जहां की आधिकारिक भाषा ‘हिन्दी’ है।

आइये जानते तमाम ऐसे ही रोचक तथ्य  :-

14 सितम्बर को ही क्यों मनाते हैं हिन्दी दिवस

आजादी मिलने के दो साल बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में एक मत से हिन्दी को राजभाषा घोषित किया गया और इसके बाद से हर साल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। हिंदी की अनदेखी को रोकने के लिए हर साल 14 सितंबर को देशभर में हिन्दी दिवस मनाया जाता है।

हिन्दी’ को ही क्यों मिला राजभाषा का दर्जा

किसी भी भाषा को राष्ट्र भाषा अथवा राजभाषा चुनने से पहले उसके कुछ विशेष गुण होने चाहिए। उस भाषा को देश के ज्यादातर भागों में लिखा पढ़ा जाता हो या उन्हें समझ हो। उस भाषा की शब्दाबली इतनी समर्थ हो की उससे सभी प्रकार के ज्ञान-विज्ञान के विषयों को अभिव्यक्त किया जा सके। साथ ही, ऐसी भाषा के साहित्य का एक विशाल भंडार होना चाहिए तथा दर्शन, ज्योतिष विज्ञान, साहित्य और इतिहास के विषय में सभी पुस्तकें होनी चाहिए। भाषा का सुन्दर और सरल होना और भी आवश्यक है।
आज के भारत में हिन्दी ही एक मात्र भाषा है, जिसमें यह सब गुण पाए गए हैं। इसीलिए हिन्दी को राजभाषा के रूप में चुना गया है। आज हिन्दी भाषा को पूरे विश्व भर में सम्मान के नजरों से देखा जाता है। यहाँ तक की टेक्नोलॉजी के जमाने में आज विश्व की सबसे बड़ी कंपनियां जैसे गूगल, फेसबुक भी हिन्दी भाषा को बढ़ावा दे रहे।भारत के पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्व. अटल बिहारी बाजपेयी ने राष्ट्र संघ में अपना प्रथम वक्तव्य हिन्दी भाषा में प्रस्तुत किया था। भारत के केंद्र में हिन्दी भाषा का प्रयोग किया जाता है। हिन्दी भाषा का साहित्य पौराणिक और संपन्न है।

भारत के संविधान में हिन्दी का उद्भव

26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू होने के साथ ही राजभाषा नीति भी लागू हुई। संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के तहत यह स्पष्ट किया गया है कि भारत की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी है। संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप है। हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा का प्रयोग भी सरकारी कामकाज में किया जा सकता है।अनुच्छेद 343 (2) के अंतर्गत यह भी व्यवस्था की गई है कि संविधान के लागू होने के समय से 15 वर्ष की अवधि तक, अर्थात वर्ष 1965 तक संघ के सभी सरकारी कार्यों के लिए पहले की भांति अंग्रेजी भाषा का प्रयोग होता रहेगा। यह व्यवस्था इसलिए की गई थी कि इस बीच हिन्दी न जानने वाले हिन्दी सीख जायेंगे और हिन्दी भाषा को प्रशासनिक कार्यों के लिए सभी प्रकार से सक्षम बनाया जा सकेगा।

आयोग का गठन और कार्य

अनुच्छेद 344 में यह कहा गया कि संविधान प्रारंभ होने के 5 वर्षों के बाद और फिर उसके 10 वर्ष बाद राष्ट्रपति एक आयोग बनाएँगे, जो अन्य बातों के साथ साथ संघ के सरकारी कामकाज में हिन्दी भाषा के उत्तरोत्तर प्रयोग के बारे में और संघ के राजकीय प्रयोजनों में से सब या किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के प्रयोग पर रोक लगाए जाने के बारे में राष्ट्रपति को सिफारिश करेगा।आयोग की सिफारिशों पर विचार करने के लिए इस अनुच्छेद के खंड 4 के अनुसार 30 संसद सदस्यों की एक समिति के गठन की भी व्यवस्था की गई। संविधान के अनुच्छेद 120 में कहा गया है कि संसद का कार्य हिंदी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है।वर्ष 1965 तक 15 वर्ष पूर्ण हो चुके थे। लेकिन उसके बाद भी अंग्रेजी को हटाया नहीं गया और अनुच्छेद 334 (3) में संसद को यह अधिकार दिया गया कि वह 1965 के बाद भी सरकारी कामकाज में अंग्रेजी का प्रयोग जारी रखने के बारे में व्यवस्था कर सकती है। अंग्रेजी और हिन्दी दोनों भारत की राजभाषा है।

जब लाया गया भाषा संशोधन विधेयक

26 जनवरी 1965 को संसद में यह प्रस्ताव पारित हुआ कि ‘हिन्दी का सभी सरकारी कार्यों में उपयोग किया जाएगा, लेकिन उसके साथ साथ अंग्रेजी का भी सह राजभाषा के रूप में उपयोग किया जाएगा।’ वर्ष 1967 में संसद में ‘भाषा संशोधन विधेयक’ लाया गया। इसके बाद अंग्रेजी को अनिवार्य कर दिया गया। इस विधेयक में धारा 3(1) में हिन्दी की चर्चा तक नहीं की गई। इसके बाद अंग्रेजी का विरोध शुरू हुआ। 5 दिसंबर 1967 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राज्यसभा में कहा कि हम इस विधेयक में विचार विमर्श करेंगे।

इन्होनें दिया अप्रतिम योगदान

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए पुरूषोत्तम दास टंडन, काका कालेलकर, मैथिलीशरण गुप्त, रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविन्ददास और ब्यौहर राजेन्द्र सिंह आदि लोगों ने बहुत से प्रयास किए। जिसके चलते इन्होंने दक्षिण भारत की कई यात्राएँ भी की।

यहां सबसे ज्यादा बोली जाती है ‘हिन्दी’

हिन्दी बोलने वाली अधिकांश आबादी उत्तर भारत में केंद्रित है। हिन्दी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड और झारखंड सहित कई भारतीय राज्यों की आधिकारिक भाषा है। बिहार देश का पहला राज्य था, जिसने अपनी एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में हिन्दी को अपनाया। बंगाली, तेलुगु और मराठी देश की अन्य व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा हैं।

विदेशों में भी बोली जाती है ‘हिन्दी’

भारत की आजादी के बाद भारत सरकार ने हिन्दी भाषा को और भी उन्नत बनाने के लिए जोर दिया और इसमें कुछ सुधार और शब्दाबली को बेहतर बनाया गया। भारत के साथ-साथ देवनागरी भाषा अन्य कई देशों में बोली जाती है। मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद एवं टोबैगो और नेपाल, युगांडा, यमन, न्यूजीलैण्ड आदि देशों में भी हिन्दी भाषी लोगों ने हिन्दी का परचम उठा रखा है।

यहां की आधिकारिक भाषा है ‘हिन्दी’

विश्व में चौथे स्थान पर सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा ‘हिन्दी’ केवल भारत की ही नहीं, अपितु दक्षिण प्रशांत महासागर क्षेत्र में ‘फिजी’ नामक द्वीपीय देश की आधिकारिक भाषा के रूप में दर्जा प्राप्त है।

भारत में 66 फीसदी लोग बोलते हैं ‘हिन्दी’

वर्ष 1997 में हुए एक सर्वेक्षण में पाया गया था कि भारत में 66 फीसदी लोग हिंदी बोलते हैं, जबकि 77 प्रतिशत इसे समझ लेते हैं। डिजिटल माध्यम में 2016 में हिंदी समाचार पढ़ने वालों की संख्या 5.5 करोड़ थी, जो 2021 में बढ़कर 14.4 करोड़ होने का अनुमान है।

हिन्दी दिवस पर पुरस्कार

हिन्दी दिवस के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति हिन्दी साहित्य से जुड़े कई लोगों को पुरस्कार प्रदान करते हैं और उनको सम्मानित करते हैं। हिन्दी दिवस के अवसर पर राजभाषा कीर्ति पुरस्कार, और राजभाषा गौरव पुरस्कार जैसे पुरस्कार दिए जाते हैं।राजभाषा गौरव पुरस्कार, हिन्दी भाषा में भारत के किसी भी नागरिक द्वारा ज्ञान-विज्ञान के मौलिक पुस्तक लिखने पर और केन्द्र सरकार के कर्मियों (सेवानिवृत्त सहित) द्वारा पुस्तक या उत्कृष्ट लेख लिखने हेतु मिलता है। यह पुरस्कार तकनीकी, विज्ञान से जुड़े हिन्दी भाषा के पुस्तक लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए दिया जाता है। इसमें उन पुस्तकों को लिया जाता है, जो प्रथम बार प्रकाशित हुई हो। किसी अन्य पुस्तक का अनुवाद न हो। इसमें प्रथम पुरस्कार दो लाख रुपये, द्वितीय पुरस्कार डेढ़ लाख रुपये और तृतीय पुरस्कार 75,000 रुपये मिलता है। जबकि 10 लोगों को प्रोत्साहन पुरस्कार बतौर 10 हजार रुपये दिया जाता है। पुरस्कार के साथ स्मृति चिन्ह सभी 13 पुरस्कार प्राप्त करने वालों को दिया जाता है।

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