नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है । मां कालरात्रि के पूजन मात्र से समस्त दुखों एवं पापों का नाश हो जाता है। मां कालरात्रि के ध्यान मात्र से ही मनुष्य को उत्तम पद की प्राप्ति होती है साथ ही इनके भक्त सांसारिक मोह माया से मुक्त हो जाते हैं। कहा जाता है कि मां कालरात्रि अपने भक्तों को काल से बचाती हैं यानी मां के उपासक की अकाल मृत्यु नहीं होती है । मां के नाम का उच्चारण करने मात्र से बुरी शक्तियां भयभीत होकर भाग जाती हैं।
पूजा विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। मां की प्रतिमा को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं। मां को लाल रंग के वस्त्र अर्पित करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां को लाल रंग पसंद है।मां को स्नान कराने के बाद पुष्प अर्पित करें।मां को रोली कुमकुम लगाएं। मां को मिष्ठान, पंच मेवा, पांच प्रकार के फल अर्पित करें।मां कालरात्रि को शहद का भोग अवश्य लगाएं।मां कालरात्रि का अधिक से अधिक ध्यान करें। मां की आरती भी करें।
व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक रक्तबीज नाम का राक्षस था।जिसने मनुष्य के साथ देवता को भी परेशान कर रखा था ।रक्तबीज दानव की विशेषता यह थी कि जैसे ही उसके रक्त की बूंद धरती पर गिरती तो उसके जैसा एक और दानव बन जाता था। इस राक्षस से परेशान होकर समस्या का हल जानने सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे। भगवान शिव को ज्ञात था कि इस दानव का अंत माता पार्वती कर सकती हैं। भगवान शिव ने माता से अनुरोध किया। इसके बाद मां पार्वती ने स्वंय शक्ति व तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का अंत किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को मां कालरात्रि ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस रूप में मां पार्वती कालरात्रि कहलाई।
नवरात्रि सप्तमी 2022 मुहूर्त (Navratri saptami 2022 muhurat)
अश्विन शुक्ल सप्तमी तिथि शुरू – 1 अक्टूबर 2022, रात 08:46
अश्विन शुक्ल सप्तमी तिथि समाप्त – 2 अक्टूबर 2022, शाम 06:47
ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04.43 – सुबह 05.31
अभिजीत मुहूर्त – सुबह 11.52 – दोपहर 12.40
अमृत काल – रात 07.50 – रात 09.20
निशिता मुहूर्त – 2 अक्टूबर, 11.52 – 3 अक्टूबर, 12.41 (रात्रि पूजा का समय
मंत्र
ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम: .
ॐ कालरात्र्यै नम:
ॐ फट् शत्रून साघय घातय ॐ
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं दुर्गति नाशिन्यै महामायायै स्वाहा।