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हर बार देखते हैं स्टेटस के व्यूज खोलकर,न आये व्यूज तो दुखी हो जाती है जिंदगी, स्टेटस पर जिंदगी, डॉ ललित योगी की स्वरचित कविता

स्टेटस पर जिंदगी

स्टेटस पर रील सी खुल रही है जिंदगी।
सच कहूं इस पर तमाशा हुई है जिंदगी।।
हर दिन नई कहानी दिखती है आजकल,
गॉशिप का कारण हो गई है आज जिंदगी।।

न धीरता दिखती और न गंभीरता इसपर।
नदियों सी चंचल हो रही है आज जिंदगी।।
अब छुपा नहीं रहता सब कुछ छुपाने से,
जब से स्टेटस पर खिल आई है जिंदगी।।

जब कोई खुद के स्टेटस को न देखे तो,
अंदर से हताश सी हो जाती है जिंदगी।।
जब एक स्माइली मिल जाये किसी का तो,
खुशी का ठिकाना नहीं रहता है जिंदगी।।

बेसिर पैर की बातें इसपे और बात बेतुकी,
फिर भी स्टेटस पर शेयर हो रही है जिंदगी।।
हर बार देखते हैं स्टेटस के व्यूज खोलकर,
न आये व्यूज तो दुखी हो जाती है जिंदगी।।

समंदर सी गहरी थी ये खुद में ही पहले,
अब उथली उथली सी हो गई है जिंदगी।।
बेवस, लापरवाह हो गई है न जाने क्यों,
जब से स्टेटस पर खुल आई है जिंदगी।।

जबसे खुद को दिखाने का शौक जागा है इस पे,
तबसे पकवान सी परोसी जा रही है  जिंदगी।।
खुलते थे न राज खुद के और न ही युगों तलक,
अब विभीषण सी राज खोल देती है जिंदगी।।

नहीं भाता है कुछ भी हमको आजकल,
जब से स्टेटस पर टपक आई है जिंदगी।
पर्दे में छुपी अच्छी लगती थी पहले जो,
आज सरेआम ये बदनाम हुई है जिंदगी।।

सच कहूं बात मैं गर इस दिल से तो,
बंधक सी हो गयी है स्टेटस पे जिंदगी।।
स्टेटस पर रोज ही खुल जाती है रील सी,
हकीकत में इसपे तमाशा हुई जिंदगी…

अनकही स्मृतियाँ/डॉ ललित योगी

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