वनस्पति विज्ञान विभाग, सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा और लाइकेनोलाॅजिकल सोसाइटी, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में ‘क्रिप्टोगैम्स एंड देयर रोल इन इनवायरोनमेंटल कंजरवेशन‘ विषय पर एक राष्ट्रीय वेबिनार आयोजित हुआ।
मुख्य अतिथि के तौर पर यह लोग रहे उपस्थित
इस वेबिनार में मुख्य अतिथि के तौर पर सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो0 नरेंद्र सिंह भंडारी, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार में बाॅटनी एंड माइक्रोबायलाॅजी के विभागाध्यक्ष प्रो0 आर0 सी0 दुबे, एनबीआरआई लखनऊ के ब्रायोलाॅजी डिविजन के प्रधान वैज्ञानिक डाॅ0 ए0 के0 अस्थाना, बाॅटनिकल सर्वे आॅफ इंडिया सिक्किम हिमालयन सेंटर के वैज्ञानिक डाॅ0 बी0 एस0 खोलिया, एनबीआरआई के प्रधान वैज्ञानिक, इंडियन लाइकेनोलाॅजिकल सोसाइटी के सचिव एवं और वेबिनार के आयोजक डाॅ0 संजीव नायका, एनबीआरआई के माइक्रोलाॅजी डिविजन की प्रधान वैज्ञानिक डाॅ0 सूची श्रीवास्तव, एनबीआरआई के अल्गोलाॅजी डिविजन के वैज्ञानिक डाॅ0 सचित्र कुमार रठ, वेबिनार के संयोजक डाॅ0 बलवंत कुमार, वेबिनार के आयोजक सचिव डाॅ0 धनी आर्या ने उपस्थित रहे।
वेबिनार के संयोजक डाॅ0 बलवंत कुमार ने वेबिनार की रूपरेखा प्रस्तुत की
वेबिनार के संयोजक डाॅ0 बलवंत कुमार ने वेबिनार की रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि महामारी के दौर में क्रिप्टोगैमिक पौंधों की उपयोगिता बढ़ी है। यह पौंधा पर्यावरण का संतुलन करता है। हमारे आस-पास यह विविधता लिए हुए मौजूद है। उन्होंने कहा कि लाइकेन वनस्पतियों का समूह हमारे आस-पास है। चट्टानों, शिलाओं, पत्तियों की छालों, पुरानी दीवारों, भूतल आदि पर उग आती है। विभिन्न रंगों में यह उत्पन्न होती हैं। इनकी बनावट भी बहुत अलग होती है। उन्होंने वेबिनार के उद्देश्यों को प्रस्तुत करते हुए अतिथियों का स्वागत किया।
प्रो0 आर0 सी0 दुबे ने वैदिक माइक्रोबायोलाॅजी से लेकर टैरिडोफाइट तक के क्रिप्टोगेमिक पौंधों पर अपना बीज वकतव्य दिया
इस अवसर पर गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार में बाॅटनी एंड माइक्रोबायलाॅजी के विभागाध्यक्ष प्रो0 आर0 सी0 दुबे ने वैदिक माइक्रोबायोलाॅजी से लेकर टैरिडोफाइट तक के क्रिप्टोगेमिक पौंधों पर अपना बीज वकतव्य दिया। उन्होंने बताया कि क्रिप्टोगैम, उन पादपों को कहते हैं जिनमें प्रजनन बीजाणुओं की सहायता से होता है। इन पादपों में बीज उत्पन्न नहीं होता है। इनको कभी-कभी थैलोफाइटा, निम्न पादप तथा बीजाणु पादप आदि नामों से भी जाना जाता है। उन्होंने थैलोफाइटा के अंतर्गत कवक, शैवाल और लाइकेन आदि पर प्रकाश डाला।
डाॅ0 ए0 के0 अस्थाना ने ब्रायोफायटा पर अपना व्याख्यान दिया
एनबीआरआई लखनऊ के ब्रायोलाॅजी डिविजन के प्रधान वैज्ञानिक डाॅ0 ए0 के0 अस्थाना ने ब्रायोफायटा पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि ब्रायोफाइटा का स्थान शैवाल और टेरिडोफाइटा के बीच में आता है। उन्होंने हरिता, शैवाल, लाइकेन, हिपैटिसी, ऐंथोसिरोटी आदि की चर्चा की।
बाॅटनिकल सर्वे आॅफ इंडिया सिक्किम हिमालयन सेंटर के वैज्ञानिक डाॅ0 बी0 एस0 खोलिया ने टेरिडोफाइट समूह की फर्न प्रजाति पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि वनस्पति विज्ञानियों द्वारा किए गए पौधों के कई विभागों में से टेरिडोफाइटा भी एक विभाग है। यह एक ओर पुष्प और बीज उत्पादक ब्राइटोफाइटा से और दूसरी ओर पुष्प और बीज न उत्पन्न करने वाले जल के पौधों, माॅसों से अलग होता है। इसके बावजूद यह इन दोनों वर्गो के पौधों के गुणों से कुछ-कुछ गुणों में समानता रखता है। उन्होंने बताया कि आज भी टेरिडोफाइटा फर्न और फर्न किस्म के पौंधे हैं। उन्होंने यह बताया कि जलवायु परिवर्तन होने से इन पर भी प्रभाव पड़ा है।
डाॅ0 संजीव नायका ने टेरिडोफाइटा समूह के पौधों के गुणधर्म और विशेषताओं पर डाला प्रकाश
एनबीआरआई के प्रधान वैज्ञानिक, इंडियन लाइकेनोलाॅजिकल सोसाइटी के सचिव एवं और सेमिनार के आयोजक डाॅ0 संजीव नायका ने अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि हमारे आस-पास जैव विविधता को बनाए रखने के लिए क्रिप्टोगैम पौधों का योगदान काफी है। यह पर्यावरण को संतुलन बनाने में अपना सहयोग देती हैं। उन्होंने कहा कि पर्यावरण के असंतुलन होने से इनकी लंबाई में भी विविधता देखी जाने लगी है। उन्होंने टेरिडोफाइटा समूह के पौधों के गुणधर्म और विशेषताओं पर भी प्रकाश डाला। साथ ही लाइकेन पर भी प्रकाश डाला।
डाॅ0 सूची श्रीवास्तव ने कवक, कुकुरमुत्ता, मशरूम आदि पर व्याख्यान दिया
एनबीआरआई के माइकोलाॅजी डिविजन की प्रधान वैज्ञानिक डाॅ0 सूची श्रीवास्तव ने कवक, कुकुरमुत्ता, मशरूम आदि पर व्याख्यान दिया। उन्होंने फंगस ग्रुप के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से जानकारी दी।
एनबीआरआई के अल्गोलाॅजी डिविजन के वैज्ञानिक डाॅ0 सचित्र कुमार रठ ने अल्गी (।सहंमद्ध के संरक्षण, विकास एवं इससे तैयार की जाने वाले विभिन्न उत्पादों पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि शैवाल सरल सजीव हैं। अधिकांश शैवाल पौधों के समान सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। ये नम भूमि, वृक्षों की छाल, नम दीवारों आदि पर दिखाई पड़ते हैं।
कुलपति प्रो0 नरेंद्र सिंह भंडारी ने ग्रामीण क्षेत्रों पर जैव विविधता के संबंध में अपनी बात रखी
वेबिनार के संरक्षण एवं वेबिनार के मुख्य अतिथि के रूप में सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 नरेंद्र सिंह भंडारी ने कहा कि महामारी के दौर में हम अपने परम्परागत वनस्पतियों से जुड़े हुए हैं। हमें उनके संरक्षण के लिए प्रयास करने होंगे। हमें इन वनस्पतियों का संरक्षण कर इनका वैज्ञानिक अध्ययन कर स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए इनका प्रयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि पर्यावरण को बनाने और वन संपदा को विकसित करने में इन क्रिप्टोगैमिक पौधों का बहुत ज्यादा योगदान है। यह विश्व की पारिस्थितिकी को बेहतर बनाते हैं। यह साॅयल बाइंडर के रूप में भी कार्य करता है। यह पौंधे जानवरों के मृत अवशेषों को भी अपघटित करने में सहायता करते है और उनको मृदा के रूप में रिसाइकिल करते हैं। इसके अतिरिक्त पोषण चक्र को बैलेंस करते हैं। उन्होंने लाइकेन के संबध में कहा कि हमारे आस-पास लाइकेन बहुत विस्तृत रूप से फैला है। यह आकर्षक है। वृक्षों की छालों में यह हमें दिखाई पड़ता है। इनका ग्रामीणों द्वारा उपयोग किया जाता है। आज इन सभी वनस्पतियों/पौधों के महत्व को सभी के बीच ले जाने की आवश्यकता है। ये पौंधे पर्यावरण संतुलन बनाने के साथ-साथ प्रकृति को सुंदर बनाने में अपना योगदान देती हैं। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों पर जैव विविधता के संबंध में भी बात रखी। वनस्पति विज्ञान विभाग के द्वारा आयोजित वेबिनार की प्रशंसा करते हुए कहा कि वनस्पति विभाग द्वारा हमारे जैवविविधता, परम्परागत वनस्पतियों के विषय में प्रकाश डाला जा रहा है, यह सराहनीय है। उन्होंने विभागाध्यक्ष और उनके पूरे विभाग प्रशंसा की। और कहा कि इन व्याख्यानों से विद्यार्थियों और शोधार्थियों को शिक्षा मिलेगी। उनके लिए ये वेबिनार लाभदायी होंगे।
वेबिनार में क्रिप्टोगेमिक पौंधों, फंगी, ब्रायोफाइट, टेरिडोफाइट आदि पर चर्चा हुई
इस तरह वेबिनार में क्रिप्टोगेमिक पौंधों, फंगी, ब्रायोफाइट, टेरिडोफाइट आदि पर विस्तार से चर्चा हुई। क्रिप्टोगेमिक पौंधे समुदाय में विस्तार से फैले हुए हैं, ये पर्यावरण के संरक्षण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पर्यावरण को बनाए रखने में इनकी भूमिका अहम् होती है। इस वेबिनार में मशरूम की विभिन्न प्रजातियों की पहचान, उनके उत्पादन, दैनिक जीवन में इन पौधों के उपयोग एवं उनके योगदान आदि पहलुओं पर भी वक्ताओं ने विस्तार से व्याख्यान दिया।
इस अवसर पर यह लोग रहे मौजूद
वेबिनार में वनस्पति विज्ञान विभाग के शिक्षक और आयोजक सचिव डाॅ0 धनी आर्या ने आभार जताया और डाॅ0 मंजूलता ने कार्यक्रम का संचालन किया।
इस अवसर पर प्रो0 एस0डी0 तिवारी, आयोजन सदस्य डाॅ0 सुभाष चंद्रा, डाॅ0 मनीष त्रिपाठी, डाॅ0 ललित चंद्र जोशी, डाॅ0 महेश कुमार, डाॅ0 कपिल बिष्ट, डाॅ0 पुनम मेहता आदि सहित शिक्षक, देशभर के विद्व़ान एवं छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।