आज हम बात कर रहे हैं “राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार” की। राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार भारत में हर वर्ष 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर बहादुर बच्चों को दिए जाते हैं। भारतीय बाल कल्याण परिषद ने 1957 में ये पुरस्कार शुरु किये थे।
🔷🔷पहली बार 1957 में पेश किए गए थे पुरस्कार
बहादुरी योजना के लिए बच्चों को राष्ट्रीय पुरस्कार 59 साल पहले 1957 में शुरू किया गया था जब दो बच्चों, एक लड़के और एक लड़की को पहली बार उनके दिमाग और साहस की अनुकरणीय उपस्थिति के लिए पुरस्कृत किया गया था। तब से, भारतीय बाल कल्याण परिषद (आईसीसीडब्ल्यू) हर साल देश के विभिन्न हिस्सों के बच्चों को बहादुरी के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान कर रहा है।
🔶🔶1957 में ऐसे हुई शुरुआत
2 अक्टूबर,1957 में 14 साल की उम्र के बालक हरीश मेहरा ने अपनी जान की परवाह किए बगैर पंडित नेहरू और तमाम दूसरे गणमान्य नागरिकों को एक बड़े हादसे से बचाया था। उस दिन पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी, जगजीवन राम आदि रामलीला मैदान में चल रही रामलीला देख रहे थे कि अचानक उस शामियाने के ऊपर आग की लपटें फैलने लगीं, जहां ये हस्तिय़ां बैठी थीं। हरीश वहाँ पर वॉलंटियर की ड्यूटी निभा रहे थे। वे फौरन 20 फीट ऊंचे खंभे के सहारे वहां चढे तथा अपने स्काउट के चाकू से उस बिजली की तार को काट डाला, जिधर से आग फैल रही थी। यह कार्य करने में हरीश के दोनों हाथ बुरी तरह झुलस गए थे। एक बालक के इस साहस से नेहरु अत्यधिक प्रभावित हुए और उन्होंने अखिल भारतीय स्तर पर एसे बहादुर बच्चों को सम्मानित करने का निर्णय लिया। सबसे पहला पुरस्कार हरीश चंद्र मेहरा को प्रदान किया गया। तब से इस पुरस्कार की शुरुआत हुई।
🔷🔷बहादुरी का काम करने वाले बच्चों उचित पहचान दिलाना है उद्देश्य
पुरस्कारों का मुख्य उद्देश्य उन बच्चों को उचित पहचान देना है जो बहादुरी का कार्य करते हैं और अन्य बच्चों को उनके उदाहरण का अनुसरण करने के लिए प्रेरित करते हैं । विलेख “जीवन के लिए जोखिम या शारीरिक चोट के खतरे और या एक सामाजिक बुराई / अपराध के खिलाफ साहस और साहस का कार्य” के रूप में सहज निस्वार्थ सेवा का एक कार्य होना चाहिए।
🔶🔶26 जनवरी की पूर्व संध्या पर बहादुर बच्चों को दिए जाते हैं पुरस्कार
राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार भारत में हर वर्ष 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर बहादुर बच्चों को दिए जाते हैं। भारतीय बाल कल्याण परिषद ने 1957 में ये पुरस्कार शुरु किये थे। पुरस्कार के रूप में एक पदक, प्रमाण पत्र और नकद राशि दी जाती है। सभी बच्चों को विद्यालय की पढ़ाई पूरी करने तक वित्तीय सहायता भी दी जाती है। 26 जनवरी के दिन ये बहादुर बच्चे हाथी पर सवारी करते हुए गणतंत्र दिवस परेड में सम्मिलित होते हैं।
🔷🔷बच्चों को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार 5 विभिन्न श्रेणियों में दिए जाते हैं।
🔴भारत पुरस्कार: 1987 में स्थापित और असाधारण उत्कृष्ट वीरता कार्य के लिए सम्मानित किया गया।
🔵गीता चोपड़ा पुरस्कार: 1978 में स्थापित और एक लड़की को दिया गया।
🔴संजय चोपड़ा पुरस्कार: 1978 में स्थापित और एक लड़के को दिया गया।
🔵बापू गैधानी पुरस्कार (तीन): 1988 में स्थापित और 3 बच्चों को दिया गया
🔴सामान्य पुरस्कार: 1957 में स्थापित
🔶🔶गीता और संजय चोपड़ा का अपहरण, हत्या और उनके नाम पर अवार्ड
भारत सरकार के बाल पुरस्कारों में गीता चोपड़ा और संजय चोपड़ा पुरस्कार-1978 बेहद खास हैं। ये पुरस्कार उन दो भाई-बहनों के नाम पर स्थापित किया गया था, जिसको अपहर्ताओं ने किडनैप कर हत्या कर दी थी। दिल्ली के धौला कुंआ से 26 अगस्त सन् 1978 में गीता और संजय चोपड़ा का दो युवक कुलजीत सिंह उर्फ रंगा और जसबीर सिंह उर्फ बिल्ला ने फिरौती के लिए अपहरण कर लिया था। बच्चों के पिता के नौसेना अधिकारी होने की जानकारी मिलने पर इन अपराधियों ने अपना इरादा बदल दिया और सबूत मिटाने के लिए संजय और गीता की हत्या कर दी। घटना के बाद अपराधी शहर छोड़कर भाग गए थे, लेकिन कुछ महीने बाद एक ट्रेन में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 1982 में अदालती कार्यवाही के पश्चात इनके अपराध के लिए फाँसी पर लटका दिया गया। अपराधियों को फांसी पर लटकाए जाने के पहले ही घटना वाले साल 1978 में भारतीय बाल कल्याण परिषद ने 16 से कम आयु के बच्चों के लिए दो वीरता पुरस्कार संजय चोपड़ा पुरस्कार और गीता चोपड़ा पुरस्कार की घोषणा की जिन्हें राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के साथ हर साल दिया जाता है।