April 19, 2024

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केरल का सबसे बड़ा त्योहार ओणम के समारोह की शुरुआत आज से ,आइये जाने इस त्योहार के बारे में

केरल में ओणम त्‍योहार से जुडे समारोहों की शुरूआत का आज पहला दिन है जिसे अठम के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष राज्‍य में कोविड महामारी की वर्तमान स्थिति को देखते हुए सादे समारोह आयोजित किए जा रहे हैं। कोच्चि में थ्रीपुनिथुरा में वार्षिक अथाचमयम त्‍योहार आज सुबह अठम ध्‍वज फहराने तक ही सीमित रहा। ओणम त्‍योहार अठम के दसवें दिन बाद थिरूवोणम दिवस पर सम्‍पन्‍न होगा।

ओणम’ या ‘थिरुवोनम’ महोत्सव केरल का खास त्योहार है। न सिर्फ दक्षिण भारत के राज्य केरल में बल्कि पूरे विश्व में अब यह त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाने लगा है। बता दें ओणम के पहले दिन यानी ‘अथम’ से ही घर-घर में इस पर्व की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। माना जाता है कि इस दस दिवसीय महोत्‍सव की शुरुआत राजा महाबली के समय में हुई थी। इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है।

क्यों, कैसे और कब शुरू हुआ ओणम ?

पौराणिक कथानुसार प्रसिद्ध सम्राट महाबली के समय में ओणम की शुरुआत हुई थी। महाबली केरल पर शासन करते थे। उनका काल देश के इतिहास में स्वर्ण युग माना जाता है। जी हां, एक लोकप्रिय लोक गीत उस काल की गौरव गाथाओं को भी बयां करता है। जब महाबली (मावेली) ने शासन किया तो सभी लोग समान थे और खुशी से जीवन व्यतीत कर रहे थे। किसी को उनके राज में कोई विपत्ति नहीं थी। पूर्ण सामंजस्य, सांप्रदायिक और प्रबल। संक्षेप में कहें तो यह एक आदर्श कल्याणकारी राज्य था यही हमें कथा बयां करती है।

क्या कहती है कथा ?

पौराणिक कथाओं के अनुसार देवता उस समय मे असुर सम्राट महाबली के शासन से नाराज हो गए थे क्योंकि महाबली के चलते देवताओं की लोकप्रियता कम हो रही थी। उन्होंने भगवान विष्णु से इसकी शिकायत की। कहते हैं कि भगवान विष्णु ने वामन देव (एक बौना साधु) का रूप धारण कर धरती पर पुनर्जन्म लिया। वामन देव एक दिन भगवान राजा महाबली के यहां भिक्षा मांगने पहुंचे और भिक्षा में तीन पग भूमि मांगी। राजा महाबली ने उन्हें तीन पग भूमि दान देने का वचन दिया। तब भगवान वामन ने विशाल रूप रखकर एक पग में स्वर्ग ओर दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया और अभी तीसरा पैर रखना शेष था। राजा महाबली ने अपना सिर भगवान के आगे झुकाकर तीसरा पग सिर पर रखने के लिए कहा। भगवान के पैर रखते ही राजा महाबली पाताल लोक पहुंच गए।

पाताल भेजने से पहले भगवान विष्णु ने महाबली को दिया था वरदान

लेकिन पाताल भेजने से पहले भगवान विष्णु ने महाबली को वरदान दिया था कि वह वर्ष में एक बार अपने राज्य की यात्रा कर सकते हैं। जिस दिन महाबली अपनी प्रजा से मिलने जाते हैं उस दिन को ओणम के रूप में मनाया जाता है। उनकी वार्षिक यात्रा का समय चिनगम यानी अगस्त-सितंबर के पहले मलयालम महीने में है और यह अवसर महाबली के समृद्ध समय की याद दिलाता है। इस मौके पर पूरे देश में खुशी का माहौल कायम होता है।

फसल उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है ओणम

इस पौराणिक कथा के पीछे की सच्चाई चाहे जो भी हो लेकिन ओणम पिछले कई शताब्दियों से एक भव्य राष्ट्रीय फसल उत्सव के रूप में भी मनाया जाता रहा है जिसमें सभी लोग अति उत्साह के साथ भाग लेते हैं। यह त्यौहार ‘अथम’ के चंद्र नक्षत्र से शुरू होता है, जो थिरुवोनम के नक्षत्र से दस दिन पहले पड़ता है। जश्न की तैयारियां ‘अथम’ से शुरू होती हैं। यह थिरुवोनम या ओणम त्योहार का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। इस मौके पर अथम से थिरुवोनम तक लोग अपने घरों के सामने वरामदे में अथापोवु (फूलों की सजावट) से रंगोली बनाते हैं। वहीं परिवार के छोटे सदस्यों को उपहार दिए जाते हैं। केले के पत्तों पर स्वादिष्ट भोजन परोसा जाता है जो ओणम पर्व की शोभ बढ़ाता है। इस रंगोली को बनाने में ज्यादातर मुक्कती, कक्का पोवु और चेथी आदि फूलों का उपयोग किया जाता है। मान्‍यता है कि थुम्बा पू भगवान शिव का पसंदीदा फूल है और राजा महाबली भगवान शिव के एक बड़े भक्त के तौर पर माने जाते हैं।