नवरात्रि का पर्व आरंभ होने जा रहा है। घरों में नवरात्रि के पर्व को मनाने के लिए तैयारियां आरंभ हो चुकी हैं। शरद ऋतु आरंभ हो चुकी है, इस कारण इसे शरद नवरात्रि कहा जाता है। पंचांग के अनुसार शरद नवरात्रि का पर्व 07 अक्टूबर 2021, गुरुवार से शुरू होकर 15 अक्टूबर 2021 को समाप्त होगा । हिंदू धर्म में मां दुर्गा को विशेष स्थान प्राप्त है। मां दुर्गा को शक्ति प्रतीक माना गया है। ऋगवेद के अनुसार माँ दुर्गा ही आदि-शक्ति हैं, और जीवन में आने वाली हर परेशानियां को दूर करने में मां दुर्गा की पूजा को प्रभावशाली माना गया है। इसके साथ ही पौराणिक कथाओं में मां दुर्गा को सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली देवी माना गया है।
नवरात्रि में माता की सवारी
इस वर्ष शरद नवरात्रि का पर्व गुरुवार को आरंभ हो रहा है। माता की सवारी का वर्णन देवीभागवत पुराण में मिलता है।
नवरात्रि में मां दुर्गा की सवारी को विशेष माना गया है। माता की सवारी दिन के अनुसार निर्धारित होती है। इसके अनुसार नवरात्रि के पर्व का आरंभ जब सोमवार या रविवार को होता है, तो मां दुर्गा की सवारी हाथी होती है। शनिवार और मंगलवार को जब नवरात्रि आरंभ होता है तो दुर्गा जी अश्व यानी घोड़े पर सवार होकर आती हैं। वहीं जब गुरुवार या शुक्रवार को नवरात्रि पर्व का आरंभ हो तो मां दुर्गा की सवारी ‘डोली’ होती है। यानि मां दुर्गा डोली पर सवार होकर आती हैं।
इस वर्ष शरद नवरात्रि का पर्व गुरुवार से आरंभ हो रहा है. इसका अर्थ ये है कि इस बार मां दुर्गा ‘डोली’ पर सवार होकर आएंगी। डोली पर सवार होकर जब मां दुर्गा आती हैं तो रोग आदि दूर होते हैं और सुख-समृद्धि आती है।
कब होगी दुर्गा पूजा कलश स्थापना
पंचांग के अनुसार 07 अक्टूबर 2021, गुरुवार को कलश स्थापना की जाएगी। इस दिन घटस्थापना मुहूर्त प्रात: 06:17 से प्रात: 07:07 तक कर सकते हैं। वहीं घटस्थापना अभिजित मुहूर्त प्रात: 11:45 से दोपहर 12:32 तक बना रहेगा।
पहले दिन पूजी जाती है शैलपुत्री माँ
प्रथम दिवस नवरात्र के ,गौ घृत खीर सभोग। शैलपुत्री को पूजिए ,मिटे शोक दुख रोग।
नवरात्र के पहले दिन शैलपुत्री की पूजा की जाती है । सबसे पहले कलश की स्थापना होगी और मां दुर्गा की पूजा की जाएगी। इसके बाद मां शैलपुत्री की पूजा होगी।मां शैलपुत्री की पूजा करते समय लाल सिंदूर, अक्षत व धूप आदि चढ़ाएं। इसके बाद माता के मंत्रों का उच्चारण करते हुए पूजा करें। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण मां दुर्गा जी का नाम शैलपुत्री पड़ा। मां शैलपुत्री नंदी नाम के वृषभ पर सवार होती हैं और उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प होता है।मां शैलपुत्री के पूजन से जीवन में स्थिरता और दृढ़ता आती है। खासतौर पर महिलाओं को मां शैलपुत्री के पूजन से विशेष लाभ होता है। इन मन्त्रो के माध्यम से माता जल्दी प्रसन्न् होती है । इन मन्त्रो का कम से कम 108 बार जप करना चाहिए ।
मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:।
मंत्र – ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।