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असम-मिजोरम विवाद का इतिहास कोई नया नहीं, बल्कि है सदियों पुराना, जानिये विवाद का कारण

पिछले दिनों असम के लैलापुर गांव (कछार जिला) और मिजोरम के वैरेंगटे गांव (कोलासिब जिले) के स्थानीय लोगों के बीच हिंसक झड़प हुई। लेकिन क्या आपको इन राज्यों के विवाद का इतिहास पता है? चलिए जानते हैं इन दोनों राज्यों के विवाद के बारे में,जो अंग्रेजों के समय से ही चला आ रहा है।

पूरे देश का ध्यान पूर्वोत्तर के राज्यों के सीमा विवाद की ओर खींचा है

इस हिंसा ने पूरे देश का ध्यान पूर्वोत्तर के राज्यों के सीमा विवाद की ओर खींचा है। वास्तव में अंग्रेजों के दौर में बने नियम ही इस जमीन विवाद का असली कारण हैं। कुछ दशक पहले तक लगभग ये सारे ही राज्य असम का ही हिस्सा होते थे। मिजोरम स्वयं एक समय में असम का एक जिला हुआ करता था। इतिहास में देखें तो 1830 तक कछार (असम का एक हिस्सा) एक स्वतंत्र राज्य था। जब यहां के राजा की मौत हुई, तब उसका कोई उत्तराधिकारी नहीं था। उस समय डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स के तहत इस राज्य पर ईस्ट इंडिया कंपनी ने कब्जा कर लिया, जिसे बाद में ब्रिटिश शासन ने अपने अधिकार में ले लिया था। इस नियम के तहत अगर किसी राजा की मौत बिना उत्तराधिकारी के हो जाती थी, तो उस राज्य को ब्रिटिश राज में मिला लिया जाता था।

इसके चलते वहां के रहने वाले ब्रिटिश इलाकों में सेंधमारी करने लगे

कुछ समय बाद ब्रिटिशर्स ने लुशाई (मिजो) हिल्स की तलहटी पर चाय के बागान लगाने की सोची थी, लेकिन लोकल ट्राइब्स यानी मिजो इससे खुश नहीं थे। इसके चलते वहां के रहने वाले ब्रिटिश इलाकों में सेंधमारी करने लगे। बार-बार होने वाली छापेमारी की वजह से ब्रिटिशर्स ने 1875 में इनर लाइन रेगुलेशन (ILR) लागू किया, ताकि असम में पहाड़ी और आदिवासी इलाकों को अलग कर सकें। मिजो ट्राइब्स इससे खुश थे, उन्हें लगा कि कोई उनकी जमीन पर अतिक्रमण नहीं कर सकेगा।
इसके बाद 1933 में ब्रिटिश सरकार ने एक और अधिसूचना जारी की थी, जिसमें लुशाई हिल्स और मणिपुर के बीच एक सीमांकन किया गया था। मिजोरम का कहना है कि 1875 की अधिसूचना में किए गए सीमा निर्धारण का पालन किया जाना चाहिए। मिजोरम का तर्क है कि 1933 की अधिसूचना में मिजो समुदाय को पक्ष नहीं बनाया गया था। जबकि असम सरकार 1993 के सीमांकन का पालन करती है और इन दो राज्यों के बीच सारा विवाद इसी बात को लेकर है।

इस बार दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर अवैध अतिक्रमण के आरोप लगाए हैं

दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर अवैध अतिक्रमण के आरोप लगाए हैं। वास्तव में दोनों पक्ष जून और जुलाई में भी एक दूसरे पर अतिक्रमण करने और दूसरे इलाके में जाकर सुपारी और केले उगा देने के आरोप लगा चुके थे। ऐसी ही स्थिति एक बार पिछले वर्ष भी बनी थी। समस्या सिर्फ अतिक्रमण की नहीं है। समस्या सीमांकन के साथ-साथ इस बात को लेकर भी है कि सीमांकन के दूसरी ओर जाकर खेती करना या झोंपड़ियां बनाना भी काफी समय से चलता आ रहा है। इस प्रकार यह विवाद औपनिपेशिक इतिहास की विकृति के अलावा सामुदायिक भी हो गया है। बुधवार को केंद्रीय गृह सचिव ने इस मसले पर असम और मिजोरम के मुख्य सचिवों के अलावा दोनों राज्यों के सीनियर अधिकारियों के साथ बैठक की। यह बैठक नॉर्थ ब्लॉक में हुई, जिसमें इस विवाद का हल निकालने का प्रयास किया गया।

असम के साथ सीमा विवाद चल रहा है

मिजोरम 1972 में केंद्र शासित प्रदेश और 1987 में एक राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। तब से ही मिजोरम का असम के साथ सीमा विवाद चल रहा है। असम के बराक घाटी के जिले कछार, करीमगंज और हैला कांडीए मिजोरम के तीन जिलों आइजोल, कोलासिब और मामित के साथ 164 किलोमीटर लंबी बॉर्डर साझा करते हैं।

विवाद को सुलझाने के लिए अब तक क्या हुआ?

असम और मिजोरम ने एग्रीमेंट किया था कि सीमाई इलाके ‘नो मैन्स लैंड’ होंगे, लेकिन इससे विवाद खत्म नहीं हुआ। गतिरोध बना रहा, जिसे 2020 में केंद्र सरकार ने तोड़ने की कोशिश की। इस पर मिजोरम की लाइफलाइन माने जाने वाले रास्ते नेशनल हाईवे 306 पर काफी विरोध प्रदर्शन किया गया। इसके बाद मिजोरम ने असम के साथ सीमा आयोग का गठन किया। इसके अध्यक्ष उपमुख्यमंत्री तवंलुइया और उपाध्यक्ष गृह मंत्री लालचमलियाना हैं। इसी महीने में दिल्ली के गुजरात भवन में मुख्य सचिव स्तर की वार्ता भी हुई। इसमें यथास्थिति बनाए रखने की बात हुई। आइजोल ने सीमा पर यथास्थिति बनाने और सुरक्षा बलों को वापस बुलाने के असम के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए समय मांगा था।

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