उत्तराखंड: इसरो, सेडार और एनसीबीसी की संयुक्त रिसर्च में यह खुलासा हुआ है कि पहाड़ की पारिस्थितिकी के लिए बेहद अहम बांज के जंगलों को चीड़ तेजी से निगलता जा रहा है।शोध में यह पाया गया कि बांज के घने जंगलों में 22 और कम घने जंगलों में 29 प्रतिशत की कमी आई है। वहीं चीड़ के जंगल में 74 फीसदी बढ़ गए हैं। शोध के मुताबिक 1991 से 2001 के बीच 18 प्रतिशत घने और 19 प्रतिशत कम घने बांज वनों पर चीड़ ने अपना कब्जा जमा लिया । जबकि, 2001 से 2017 तक 7 फीसदी घने, 40 प्रतिशत कम घने बांज वनों में चीड़ फैलता चला गया ।
1991 से 2017 तक नैनीताल और अल्मोड़ा के 1285 वर्ग किमी में जंगलों किया गया शोध
इसरो, सेडार और एनसीबीसी के इस शोध को अंंतरराष्ट्रीय जनरल-फॉरेस्ट इकोलॉजी एंड मैनेजमेंट में प्रकाशित किया गया है सेंटर फॉर इकोलॉजी डेवलपमेंट एंड रिसर्च (सेडार) देहरादून, नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेस (एनसीबीएस), इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) के वैज्ञानिकों की टीम ने 1991 से 2017 तक नैनीताल और अल्मोड़ा के 1285 वर्ग किमी में जंगलों पर यह शोध किया। रिसर्च टीम में अरुंधति दास, तरुन मेनन, जयश्री रत्नाम, राजेश थाडनी, गोपीकृष्नन राजशेखर, राजेश फरेरा, गजाला शहाबुद्दीन शामिल रहे।
चीड़ से नुकसान
चीड़ के जंगल से अन्य प्रजातियां नहीं पनप पाती। जबकि बांज के जंगल में कई प्रजातियों के पेड़ पौधे उगते हैं, जो वन्यजीवों और स्थानीय लोगों के लिए लाभदायक हैं। बांज जलस्तर बढ़ाने वाली प्रजाति भी है। चीड़ जैव विविधतता को बर्बाद कर देता है। यह ग्रामीणों के लिए भी नुकसानदेह भी है। इसे रोकने के लिए नए उपाय ढूंढने होंगे ।