April 19, 2024

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वाल्मीकि जयंती 2021: आज है वाल्मीकि जयंती, जाने कैसे महर्षि का नाम पड़ा वाल्मीकि

हिन्दू धर्म में वाल्मीकि जयंती का विशेष महत्व है । पौराणिक ग्रंथों के अनुसार वाल्मीकि ने ही रामायण की रचना की थी ।   वाल्मीकि जयंती हर वर्ष  अश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है । मान्यताओं के अनुसार इसी दिन महर्षि वाल्मीकि ने जन्म लिया था ।

उपलब्धियों को याद किया जाता है

देश भर मे हर वर्ष  वाल्मीकि जयंती धूम धाम से मनाई जाती है । वाल्मीकि जयंती के दिन महर्षि के उपलब्धियों को याद किया जाता है । और रामायण की पूजा की जाती है ।  महर्षि वाल्मीकि को कई भाषाओं का ज्ञाता और संस्कृत भाषा का पहला कवि माना जाता है। उन्होंने रामायण में चौबीस हजार छंद और 77 कांड लिखे है।

ऐसे बने वाल्मीकि

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वाल्मीकि महर्षि कश्यप और अदिति के पोते थे। वह महर्षि वरुण और चर्षणी के नौवें पुत्र थे। उन्हें महर्षि भृगु का भाई भी कहा जाता है। पुराणों में उल्लेख है कि वाल्मीकि को बचपन में एक भीलनी ने चुरा लिया था और भील समाज में ही उनका लालन पालन हुआ। बड़े होने पर वाल्मीकि डाकू बन गए। महर्षि वाल्मीकि घोर तपस्या में लीन थे तभी उनको दीमकों ने चारों तरफ से घेर लिया। दीमकों ने उनके शरीप पर भी घर बना लिया। अपनी तपस्या पूरी करके वाल्मीकि दीमकों के घर से बाहर निकले। दीमकों के घर को वाल्मीकि कहा जाता है। तभी से उनका नाम महर्षि वाल्मीकि पड़ गया। पौराणिक कथाओं के अनुसार वाल्मीकि का असली नाम रत्नाकर था, जो पहले लुटेरे हुआ करते थे और उन्होंने नारद मुनि को लूटने की कोशिश की। नारद मुनि ने वाल्मीकि से प्रश्न किया कि क्या परिवार भी तुम्हारे साथ पाप का फल भोगने को तैयार होंगे? जब रत्नाकर ने अपने परिवार से यही प्रश्न पूछा तो उसके परिवार के सदस्य पाप के फल में भागीदार बनने को तैयार नहीं हुए। तब रत्नाकर ने नारद मुनि से माफी मांगी और नारद ने उन्हें राम का नाम जपने की सलाह दी। राम का नाम जपते हुए डाकू रत्नाकर वाल्मीकि बन गए ।