नीति आयोग और वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआई), इंडिया ने संयुक्त रूप से 23 अगस्त को एनडीसी-ट्रांसपोर्ट इनीशियेटिव फोर एशिया (एनडीसी-टीआईए) परियोजना के तहत भारत में ‘फोरम फॉर डीकार्बनाइजिंग ट्रांसपोर्ट’ कार्यक्रम शुरू किया है। यह परियोजना देश में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ावा और कार्बन उत्सर्जन में गिरावट के लिए अहम भूमिका निभाएगी।
परियोजना के उद्देश्य
इस परियोजना का उद्देश्य एशिया में ग्रीन हाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन के बड़े हुए स्तर को नीचे लाना है, जिसमें परिवहन क्षेत्र प्रमुख है। इस परियोजना के तहत वायुमंडल के तापमान को दो डिग्री तक कम करने का लक्ष्य है। ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन की वजह सेसंकुलन(कंजेशन) और वायु प्रदूषण जैसी समस्याएं होती हैं।
परिवहन क्षेत्र है बड़ा कार्बन उत्सर्जक
भारत का परिवहन क्षेत्र बहुत विशाल और विभिन्न रूप में है, जो कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करने वाला तीसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय 2018 और इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए), 2020 के डेटा से पता चलता है कि परिवहन क्षेत्र में शामिल सड़क परिवहन, कॉर्बन डाईऑक्साइड के कुल उत्सर्जन में 90% से अधिक का योगदान देता है।
सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने की रणनीति अपनानी चाहिए
डब्ल्यूआरआई इंडिया के सीईओ डॉय ओ.पीय अग्रवाल ने कहा, “भारत के पास अपने शहरी परिवहन क्षेत्र में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम करने का एक बड़ा अवसर है। देश को मोटर वाहनों के विद्युतीकरण के साथ-साथ पैदल चलने, साइकिल चलाने और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने की रणनीति अपनानी चाहिए।”
सरकार उठा रही है कई कदम
कई नीतिगत उपायों और पहलों के माध्यम से, भारत सरकार देश में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को अपनाने पर मुख्य ध्यान देने के साथ सड़क परिवहन के कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को घटाने(डीकार्बनाइजेशन) की दिशा में लगातार काम कर रही है। नीति आयोग नेशनल मिशन ऑन ट्रांसफोर्मेटिव मोबिलिटी एंड बैटरी स्टोरेज के माध्यम से ईवी और सतत आवाजाही को बढ़ावा देने में शीर्ष भूमिका निभा रहा है।
हालांकि, देश भर में इलेक्ट्रिक वाहनों का लाभ उठाने और उन्हें कारगर बनाने की खातिर विभिन्न हितधारकों के लिए एक अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की आवश्यकता है। इन हितधारकों में केंद्र/राज्य सरकारें, राज्य-नामित एजेंसियां, वित्तीय संस्थान, व्यवसाय, मूल उपकरण विनिर्माता (ओईएम), अनुसंधान एवं तकनीकी संस्थान, निजी निकाय और थिंक टैंक शामिल हैं। इन हितधारकों के बीच एक समन्वित प्रयास, निवेश को सक्षम बनाने, इलेक्ट्रिक वाहनों कोअपनाने को प्रोत्साहित करने और उद्योग में उचित संचालन सुनिश्चित करने में मदद करेगा।