उत्तराखंड से जुड़ी खबर सामने आई है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हरेला पर्व पर गैर हिम नदियों को पुनर्जीवित करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जल स्रोतों के सूखने से उत्तराखंड की गैर हिम नदियों के अस्तित्व पर संकट आ गया है। इन नदियों के पानी में पिछले तीस साल में 75 फीसदी तक की कमी आई है। इससे निपटने के लिए कारगर उपाय किए जाने जरूरी हैं।
पर्यावरण बचाने के लिए पर्यावरण को बनाएं अपनी दिनचर्या का हिस्सा
देहरादून के रायपुर स्थित अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम परिसर में पौधरोपण कर मुख्यमंत्री धामी ने हरेला पर्व का शुभारंभ किया। उन्होंने हरेला की शुभकामना देते हुए कहा कि प्रकृति के इस उत्सव को जनसहभागिता से मनाकर प्रकृति के साथ संबंधों को प्रगाढ़ किया जा सकता है। यह आत्मचिंतन और संकल्पित होकर आगे बढ़ने का दिन है। हरेला को हम औपचारिकता तक सीमित न रखें, बल्कि पर्यावरण बचाने के लिए अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं। प्रकृति ने जो विरासत दी है उसे उसी स्वरूप में भावी पीढ़ी को हस्तांतरित करना हमारी जिम्मेदारी है।
प्राकृतिक जल स्रोतों को पुनर्जीवित करना जरूरी है
इकॉलॉजी और इकोनॉमी में संतुलन बनाते हुए विकास कार्य करने हैं। विकास जरूरी है, इसके लिए सरकारी विभाग आपसी तालमेल बनाएं। पेयजल सुरक्षा भविष्य की सबसे बड़ी चिंता है। प्राकृतिक जल स्रोतों को पुनर्जीवित करना जरूरी है। बांज, बुरांश, देवदार जैसे जल संचयन वाले अधिकाधिक पेड़ लगाएं।
वन महकमा जल संरक्षण अभियान में निभाए अग्रणी भूमिका
उन्होंने वन महकमे को जल संरक्षण अभियान में अग्रणी भूमिका निभाने पर कहा कि शहरीकरण जिस तेजी से बढ़ रहा है उसके चलते पानी के विषय में गंभीरता से सोचना शुरू कर देना चाहिए। यदि उत्तराखंड में कोई आपदा या संकट आता है तो दिल्ली वाले ये न सोचे कि उनके यहां कुछ नहीं होगा। यहां कुछ भी हो रहा है तो उसका असर कभी न कभी वहां तक भी पहुंचेगा।