एक और उपलब्धि जुड़ेगी इसरो के नाम, चंद्रयान-3, आदित्य एल-1 के बाद भेजेगा तीसरा मिशन, शुक्र पर खोज का है‌ प्लान

देश दुनिया की खबरों से हम आपको रूबरू कराते रहते हैं। एक ऐसी खबर हम आपके सामने लाए हैं। इसरो का मिशन चंद्रयान-3 सफल रहा। जिसके बाद इसरो का दूसरा मिशन सूर्य मिशन‌ भी नयी कामयाबी लिख रहा है। चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के बाद इसरो के सूर्य मिशन के बाद इसरो का नया अंतरिक्ष मिशन तैयारी में है। इसरो (ISRO) ने शुक्र को लेकर अहम मिशन शुक्रयान की तैयारी की है। इसके लिए पेलोड (payloads) विकसित किए गए हैं।

इसरो‌ का अगला मिशन शुक्रयान

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चांद और सूरज के बाद इसरो अंतरिक्ष के राज जानने के सफर पर निकलेगा। दो सफल मिशन के बाद इसरो का नया मिशन भी जल्द ही लॉन्च होगा। मंगलवार को ISRO चीफ एस सोमनाथ ने बताया कि सोलर सिस्टम के सबसे चमकीले ग्रह शुक्र (Venus) के लिए मिशन पहले ही कॉन्फ़िगर किया गया है। उन्होंने बताया कि भविष्य के इस मिशन के लिए पेलोड डेवलप कर लिए गए हैं। इस मिशन को शुक्रयान मिशन नाम दिया गया है। हालांकि सौर मंडल के सबसे चमकीले ग्रह शुक्र (Venus) के लिए मिशन पहले से ही कॉन्फ़िगर किया जा चुका था और भविष्य के उद्देश्य के लिए पेलोड (payloads) विकसित किए गए हैं। अंतरिक्ष यान को पृथ्वी और शुक्र के अद्वितीय संरेखण का लाभ उठाने के लिए रणनीतिक समय पर दिसंबर 2024 में लॉन्च करने के लिए निर्धारित किया गया है। वैज्ञानिकों ने कहा है कि यदि अनुमति नहीं मिली तो शुक्रयान को दिसंबर 2024 में लॉन्‍च नहीं कर पाए तो फिर सात साल बाद बेहतरीन लॉन्‍च विंडो 2031 में मिल सकेगा।

शुक्र की सतह पर कैसे पहुंच बनेगी?

रिपोर्ट्स के मुताबिक शुक्रयान-1 का प्राथमिक उद्देश्य विस्मयकारी से कम नहीं है। इसका लक्ष्य शुक्र ग्रह की सतह के नीचे गहराई तक जाकर ग्रह के दुर्जेय सल्फ्यूरिक एसिड बादलों के नीचे छिपे रहस्यों को उजागर करना है। यह मिशन हमारे पड़ोसी विश्व के बारे में, इसकी भूवैज्ञानिक संरचना से लेकर इसके छिपे हुए भूमिगत क्षेत्रों तक, अभूतपूर्व खोजों को प्राथमिकता देता है।

शुक्रयान ज्‍वालामुखी की स्‍टडी करेगा

शुक्रयान एक ऑर्बिटर मिशन है, यानी स्‍पेसक्राफ्ट शुक्र ग्रह के चारों तरफ चक्‍कर लगाते हुए ज्‍वालामुखी आदि अन्‍य की स्‍टडी करेगा। इसमें सांइटिफिक पेलोड्स लगे होंगे जिसमें हाई रेजोल्‍यूशन सिंथेटिक अपर्चर रडार और ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार होंगे। इनके जरिए ग्रह की भौगोलिक संरचना, ज्‍वालामुखी और जमीनी गैस उत्‍सर्जन, हवा की गति, बादल और इन सब से जुड़ी अन्‍य तथ्‍यों की जानकारी लेगा।

जानें इस मिशन से क्या होगा?

ISRO की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, ब्लैकहोल, न्यूट्रॉन तारे, सक्रिय गैलेक्टिक नाभिक, पल्सर पवन निहारिका जैसे खगोलीय स्रोतों से उत्सर्जन तंत्र जटिल भौतिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न होता है और इसे समझना चुनौतीपूर्ण है। पोलारिमेट्री माप दो और आयाम को जोड़ेंगे, ध्रुवीकरण की डिग्री और ध्रुवीकरण का कोण और इस प्रकार यह खगोलीय स्रोतों से उत्सर्जन प्रक्रियाओं को समझने का एक बेहतरीन तरीका है। यानी इस मिशन का मुख्य मकसद अंतरिक्ष के बारे में अधिक जानकारी हासिल करना है।

कौन-कौन भेज चुका है वीनस से जुड़े मिशन

शुक्र से जुड़े मिशन्स में ESA का वीनस एक्सप्रेस (जो 2006 से 2016 तक परिक्रमा कर रहा था) और जापान का अकात्सुकी वीनस क्लाइमेट ऑर्बिटर (2016 से परिक्रमा कर रहा है) शामिल हैं। NASA के पार्कर सोलर प्रोब ने भी शुक्र ग्रह के कई चक्कर लगाए हैं। 9 फरवरी, 2022 को NASA ने जानकारी दी कि पार्कर सोलर प्रोब ने फरवरी 2021 की अंतरिक्ष से शुक्र की सतह की पहली विजिबल लाइट इमेज ली थीं।

14 जुलाई को लांच हुआ था चंद्रयान-3

दरअसल चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान (Chandrayaan 3) को भारत के हेवी लिफ्ट रॉकेट एलवीएम3 द्वारा कॉपीबुक शैली में 14 जुलाई, 2023 को कक्षा में स्थापित किया गया था। 14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा से उड़ान भरने वाला चंद्रयान-3 अपनी 40 दिनों की लंबी यात्रा के बाद 23 अगस्त को शाम 6:04 बजे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास 70 डिग्री अक्षांश के पास उतरा। भारत का मिशन चंद्रयान-3 23 अगस्त को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड किया। ऐसा करने वाला भारत पहला देश बना था, इसके विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर लगातार चांद की सतह पर रहकर कई प्रयोग कर रहे हैं।

आदित्य एल-1 को‌ 02 सितंबर को किया गया था लांच

रिपोर्ट्स के मुताबिक बताया गया है कि आदित्य एल-1 को 02 सितंबर को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया था। 128 दिन की अंतरिक्ष की यात्रा पूरी करने के बाद आदित्य एल-1 पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर लैग्रेंजियन पॉइंट के हेलो ऑर्बिट में स्थापित किया जाएगा। आदित्य एल1 पर लगे पेलोड सूरज की रोशनी, प्लाज्मा और चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन करेंगे।