शरीर में निकल आए है इस तरह के दानें, तो न करें नजरअंदाज, हो सकते हैं हर्पीस के लक्षण, जानें

आज हम स्वास्थ्य से संबंधित आपको बताएंगे। आज हम बात कर रहे हैं हर्पीस वायरस की। हर्पीज एक लंबे समय तक रहने वाली बीमारी है। यह हर्पीज सिम्प्लेक्स वायरस के कारण होने वाला एक संक्रामक रोग है। यह वायरस बाहरी जननांग, गुदा के क्षेत्र और शरीर के अन्य भागों की त्वचा को प्रभावित करता है। कई रिसर्च में सामने आया है कि 40 के बाद इसकी आशंका ज्यादा होती है।

यह बीमारी चिकन पॉक्स के वायरस वेरिसेला जोस्टर वायरस के कारण होती है। शरीर पर एक जगह दाने निकलने पर रोगी को दर्द और बुखार हो जाता है। यह एक संक्रामक बीमारी है, इसलिए सावधानी बरतना काफी जरूरी है। आमतौर पर यह बीमारी उसी व्यक्ति को होती है, जिसे पहले चिकन पॉक्स हो चुका होता है या फिर चिकन पॉक्स का एक्सपोजर हुआ हो। अगर यह वेरिसेला जोस्टर वायरस पहले से ही आपके शरीर में मौजूद है तो आप इस बीमारी से ग्रस्त हो सकते हैं। चिकन पॉक्स ठीक होने के बाद यह वायरस नर्वस सिस्टम में चला जाता है और वर्षों तक वहीं सुप्तावस्था में पड़ा रहता है।

दो तरह का होता है हर्पीस-

हर्पीस एक संक्रमित वायरल इन्फेक्शन है जो कि हर्पीस सिम्प्लेक्स वायरस (एचएसवी) के कारण होता हैं। हर्पीस सिम्प्लेक्स वायरस परिवार के दो सदस्य एचएसवी 1 और एचएसवी 2 हैं। एचएसवी-1 या ओरल हर्पीस मुंह के चारों ओर और चेहरे पर घाव और फफोले का कारण बन सकता है, जबकि एचएसवी-2 जननांग और गुदा क्षेत्र की त्वचा को प्रभावित करता है।

निकल‌ आते हैं पानी भरें दानें-

इस बीमारी के होने पर रोगी के शरीर के एक तरफ की त्वचा पर पानी वाले दाने निकलते हैं। इस वजह से रोगी को त्वचा में खुजली या दर्द या जलन या सुन्नपन या झनझनाहट की परेशानी होती है। इतना ही नहीं जिस जगह ये दाने निकलते हैं, वहां की त्वचा बेहद संवेदनशील हो जाती है और उसे छूने पर दर्द होता है। इन दानों के निकलने के पहले रोगी को दर्द होना शुरू हो जाता है। दर्द होने के कुछ दिनों के बाद उस जगह की त्वचा पर लाल-लाल फुंसियां निकलनी शुरू हो जाती हैं। धीरे-धीरे इन दानों में पानी भर जाता है। इसके अलावा बुखार, जोड़ों में दर्द, सिरदर्द, थकान आदि की शिकायत भी कई रोगियों को होने लग जाती हैं। फुंसियों में दर्द होना इस बीमारी का प्रमुख लक्षण है। कई रोगियों में यह दर्द काफी तेज होता है। अधिकांशत: यह दाने हमारे शरीर के ऊपरी हिस्से पर निकलते हैं। ये पीठ से छाती पर ही एक तरफ निकल आते हैं। कई बार ये दाने हमारी एक आंख या गर्दन या चेहरे के एक तरफ भी निकल आते हैं।

हर्पीज के कारण होने वाली बीमारी-

हर्पीज एक संक्रामक रोग है जिससे कोई भी डर जाता है। इस रोग में चेहरे व त्वचा पर पानी के भरे हुए छोटे-छोटे दाने निकलने लगते हैं। इस बीमारी में बहुत दर्द होता है। यह रोग ज्यादातर उन लोगों को होता है जिन्हें चिकन पॉक्स हुआ हो। इस बीमारी के लक्षण बहुत ही भयंकर होते हैं जिसके कारण बहुत तकलीफ और तनाव होता है। हर्पीज के कारण निम्न जटिलताएं हो सकती हैंः-

✓ रीढ़ की हड्डी में सूजन
✓ मस्तिष्क में सूजन
✓ मेनिनजाइटिस

इस बीमारी को ठीक होने में इतने‌ दिन का लगता है समय-

इस बीमारी के इलाज के लिए ऐंटि वायरस मेडिसिन एसाइक्लोविर दवा रोगी को दी जाती है ताकि उसके शरीर में उपस्थित वायरस नष्ट हो जाए। हर्पीस जोस्टर के इलाज के लिए मुख्य तौर पर यही दवा इस्तेमाल में लाई जाती है। इसके अलावा फैमसाइक्लोविर और वैलासाइक्लोविर दवाइयां भी रोगी को दी जा सकती हैं। इन दवाइयों के साथ रोगी को सपोर्टिव ट्रीटमेंट भी दिया जाता है। इसके तहत दानों पर लगाने के लिए लोशन या मलहम आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इस बीमारी के ठीक होने में दो से तीन सप्ताह यानी 10 से 20 दिन लगते हैं। चूंकि इस बीमारी में कई बार रोगी को बहुत ज्यादा दर्द होता है तो ऐसी स्थिति में दर्द से बचने के लिए जोस्टावैक्स नामक वैक्सीन दिया जाता है। अमेरिका में 55 साल की उम्र के बाद से हर व्यक्ति को यह वैक्सीन दिया जाता है ताकि इस बीमारी से बचा जा सके। इस वैक्सीन के लेने से बीमारी होने की आशंका कम हो जाती है।

कैसे करें रोकथाम-

इससे बचाव के लिए हर्पीस जोस्टर वैक्सीन लगायी जाती है। अगर व्यक्ति को ये वैक्सीन लगा होता है तो हर्पीस नहीं होता है। यदि वैक्सीन नहीं लगा है तो इसके होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। इसके इलाज के लिए कुछ घरेलू तरीके भी अपनाए जा सकते हैं, जैसे कि हल्के गरम पानी में थोड़ा सा नमक डालकर नहाने से फायदा मिलता है। प्रभावित हिस्से पर पेट्रोलियम जैली लगाने से भी राहत मिलती है। हालांकि घरेलू इलाज के साथ-साथ डॉक्टरी इलाज जरूर कराएं, नहीं तो स्थिति गंभीर हो सकती है। हर्पीस के इलाज के लिए ऐंटी-वायरस मेडिसिन एसाइक्लोविर दवाई रोगी को दी जाती है ताकि उसके शरीर में उपस्थित वायरस नष्ट हो जाए। इसके अलावा फैमसाइक्लोविर और वैलासाइक्लोविर दवाइयां भी रोगी को दी जा सकती हैं। इन दवाइयों के साथ रोगी को सपोर्टिव ट्रीटमेंट भी दिया जाता है। लेकिन इन दवाइयों का सेवन डॉक्टर की सलाह के बिना बिल्कुल भी न करें क्योंकि इनका असर हर रोगी पर अलग-अलग तरह से हो सकता है।