एक चिड़िया या फिर एक पतंग
खुले आसमान में उड़ रही है वो
सपने बड़े बड़े देख रही है वो
पापा बोले सपनो की उड़ान ले
माँ बोली जितना उड़ना चाहे उड़
बुआ-फूफा, मामा चाचा, पड़ोसी
सभी तो उड़ने का उत्साह देते
तुम्हारा ही तो जमाना है कहते
जमीन में टिकने ही कहा देते
फ़ुर्र फ़ुर्र यहाँ से वहाँ
थोड़ा यहाँ थोड़ा वहाँ
बलखाती इठलाती इतराती
हवाओं के साथ गश्त लगती
पर क्या तभी एक झटका सा लगा
थोड़ा थमी फिर झटका लगा
फिर झटका लगा ओर नीचे आयी
ख़ुद से जुड़ा धागा महसूस होने लगा
आसमान में अपना दायरा पता हो चला,
आज़ाद पंछी नही वो पतंग है
जिसकी डोरी अपनों के उंगलियों में तंग है।