दि० 10.2.2023 को जमीयत उलेमा-ए-हिन्द द्वारा रामलीला मैदान, नई दिल्ली में आयोजित त्रिदिवसीय सर्वसम्प्रदाय सद्भाव सम्मेलन वास्तव मे असद्भाव सम्मेलन था। उक्त जमात के दो गुटों के प्रमुख अरशद मदनी व महमूद मदनी ने असत्य और अर्द्ध सत्य का आश्रय ले कर सनातन धर्म और सनातनी सम्प्रदायों तथा उनके अवतारी महापुरुषों को अपमानित करने का असफल कुत्सित प्रयास किया, जिसका पूज्य आचार्य लोकेश मुनि ने अपने सत्याधरित तर्को और तथ्यों से पुरजोर विरोध करके मदनी की मंशा की हवा ही निकाल दी और अन्तत : मदनी को माफी मांगने पर मजबूर कर दिया।अब इन दोनों मतान्ध मदनियों के अनर्गल प्रलाप पर दृष्टिपात करना उचित ही होगा।इन महानुभावों के मतानुसार, अल्लाह और ओम एक हैं। यदि ये दोनों एक हैं तो मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं को काफिर क्यों कहा जाता है।
आदम भारत में ही जन्नत से आए थे और एक ईश्वर की पूजा करते थे
दूसरे , उनके अनुसार, मनु और आदम एक हैं। मदनी कहते हैं कि आदम भारत में ही जन्नत से आए थे और एक ईश्वर की पूजा करते थे। यहाँ मदनी, असत्य और अर्द्ध सत्य का अवलम्ब ले रहे हैं। ‘आदम‘ शब्द भी ‘मनु’ के समान ही संस्कृत शब्द है- आदि+म (मनुष्य) – आदिम । आदिम का अपभ्रंश है आदम। जैसे चिराग का चराग और किश्ती का कश्ती। आदिम मनु का नाम है। मनु के अन्य नाम (रूप) नोआह और नूह हैं। मनु ही सृष्टि के आदि पुरुष हैं। सृष्टि दो प्रकार की होती है – (1) मानसी सृष्टि और (2) मैथुनी सृष्टि। आदि सृष्टि मानसी होती है। बाद की सृष्टि मैथुनी | मनु ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे । सनातन परम्परा के अनुसार, जीवधारियों की चौरासी लाख योनियां है। वस्तुत: सृष्टि और प्रलय का यह उपारख्यान मूलत : उपनिषदों में वर्णित है। ओल्ड टेस्टामेंट में इसका वहीं से लिया गया वर्णन है। ओल्ड टेस्टामेंट से बाइबिल में और बाइबिल से यह कथा कुरान शरीफ में ली गई है।
इस्लाम के प्रथम नबी आदम भारत में हुए थे तो उनकी भाषा संस्कृत होनी चाहिए थी, न की अरबी
यदि इस्लाम के प्रथम नबी आदम भारत में हुए थे तो उनकी भाषा संस्कृत होनी चाहिए थी, न की अरबी, जो की बहुत बाद की भाषा हैं। बाबा आदम कभी अरब गए और उन्होंने अरबी में कुछ लिखा या कहा है –ऐसा उल्लेख हमें तो कही देखने को नहीं मिलता हैं और न हमें हजरत आदम के समय का कोई इस्लामी उल्लेख भारत में देखने को मिलता है, जिन्हें संगृहीत करके ‘मनुस्मृति ’ नाम दिया गया है। इससे सिद्ध होता है कि मनु महाराज या बाबा आदम ही ईसाइयों के ‘वयं ‘या ‘नोआह’ और मुसलमानों के ‘आदम’ या ‘नूह’ हैं, जिन्हें हम हिंदू- यहूदी -ईसाई और मुसलमान सृष्टि का पहला पुरुष मानते हैं। मदनी ने जिन खाहिम, रस्याइल, दाऊद, मूसा, ईसा आदि नबियों का जिक्र किया है, वे मुसलमान नहीं थे, बल्कि यहूदी थे अतः बाबा आदम (आदिम) भी मुसलमान नहीं थे, बल्कि वह मनु महाराज ही थे, जो सृष्टि के आदि पुरुष थे।
मक्का में स्थित काबा, शिवलिंग था, जिससे ‘महाकाय’ कहा जाता था
फिर कहा गया कि मक्का बहुत पहले से ही धार्मिक स्थल रहा है । हां,बात सही है किंतु लगभग 1450 वर्षों से पूर्व वह इस्लामिक धार्मिक केंद्र नहीं था। इस्लाम के आरंभ से पूर्व वह मूर्ति पूजको का धार्मिक केंद्र था। मक्का में स्थित काबा (संस्कृत शब्द ‘कुम्बा’ का अपभ्रंश जिसका अर्थ चौकोर पवन होता है) में बहुत बड़े आकार का शिवलिंग था, जिससे ‘महाकाय’ कहा जाता था। उसी के नाम पर नगर का नाम मक्का पड़ा (महाकाय का अपभ्रंश)। मंदिर में शिवलिंग के अतिरिक्त, 360 मूर्तियां भी थी, जिसमें सूर्य ,चंद्र ,शनि आदि नवग्रहों की मूर्तियां भी थी। यह नगर इस्लाम पूर्व समय में बहुत प्रसिद्ध और व्यापारिक रूप से बहुत संपन्न था। वहां प्रतिवर्ष दूर-दूर से लोग आते थे, शिवलिंग के दर्शन करते थे और मंदिर की सात बार परिक्रमा करते थे। वहीं मेला लगता था और बड़े पैमाने पर व्यापार होता था, जैसे कि भारत में हर तीर्थ- स्थान में होता है। इस वार्षिक आयोजन को जिसमें देव दर्शन मंदिर , मंदिर की परिक्रमा, मूर्तियों की पूजा, मेला- व्यापार आदि सभी प्रकार की गतिविधियां सम्मिलित थी,जिसे ‘ऒकाऊ’कहां जाता था ,जिससे बाद में मज़हब- ए- इस्लाम के आरंभ होने पर ‘हज’ नाम दिया गया और जिसे इस्लाम का एक आवश्यक अंग होने के कारण मुसलमानों के लिए अनिवार्य बना दिया गया।
इस्लाम खुद अरब में हीं सबसे प्राचीन मजहब नहीं था, विश्व का प्राचीनतम मजहब होने का तो प्रश्न ही नहीं
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस्लाम से पूर्व अरब में मूर्ति पूजक ईसाई और यहूदी मौजूद थे, जिससे यह सिद्ध होता है कि इस्लाम खुद अरब में हीं सबसे प्राचीन मजहब नहीं था, विश्व का प्राचीनतम मजहब होने का तो प्रश्न ही नहीं। दूसरे, मध्य धर्म नहीं होता है। धर्म केवल एक है और वह है सत्य सनातन धर्म ,जिसे मानव धर्म या प्राणी धर्म भी कहां जाता है। धर्म अनादि और अनंत है। मजहब बनते बिगड़ते रहते हैं, जबकि धर्म शाश्वत है । मजहब का प्रवर्तक कोई व्यक्ति विशेष होता है, उसकी पवित्र पुस्तक होती है और वह एक निश्चित समय पर आरंभ होता है। यहूदी-ईसाईऔर इस्लाम मजहब अलग-अलग समय पर अस्तित्व में आए हैं। सनातन धर्म का प्रवर्तक कोई व्यक्ति नहीं ,उसकी कोई एक पवित्र पुस्तक नहीं। भगवान की सत्ता के समान ही, धर्म की सत्ता शाश्वत है ।धर्म सर्व समावेशी होता है ।उसके अनुयायी किसी को काफिर या अन बिलीवर नहीं कहते, बल्कि वह सबके अस्तित्व को सहर्ष स्वीकार करते हैं। जिसका आचरण श्रेष्ठ है, वही व्यक्ति श्रेष्ठ है। मजहब पूजा पद्धति है, उससे अधिक उसका महत्व नहीं। इसलिए कहा गया है कि ‘मनुर्भव’ ( मनु अर्थात अच्छे आदमी बनो) । यही धर्म का मूल मंत्र है।
सनातन धर्म के अनुसार, एक सद् विप्रा: बहुधा वदंति अर्थात ईश्वर एक है,
जहां तक इस्लाम की बात है वह लगभग 1450 वर्ष पुराना है। इस्लाम का कलमा भी तभी का है ( लाल्लिल्लाह मुहम्मदुर रसूलिल्लाह ,अर्थात अल्लाह के सिवाय कोई अल्लाह नहीं है और मोहम्मद के सिवाय कोई रसूल नहीं )। वैसे तो कहा जाता है कि कुरान शरीफ में 124000 नबियों का उल्लेख है। किंतु हजरत मुहम्मद से पूर्व के सभी नबियों को खारिज किया जाने का भी उल्लेख है। अतः एकमात्र नबी हजरत मुहम्मद ही हैं।इस प्रकार इस्लाम धर्म नहीं, वह एक मजहब है। मजहब में भी वह सबसे पुराना मजहब नहीं। इस्लाम मजहब का यह मानना है कि ईश्वर एक है (एक सद् )। किंतु उसका यह मानना गलत है कि केवल इस्लामी पद्धति से उसकी पूजा (इबादत) की जा सकती है। कारण, सनातन धर्म के अनुसार, एक सद् विप्रा: बहुधा वदंति अर्थात ईश्वर एक है, किंतु विद्वान लोग उसका अनेक प्रकार/ ढंग/ रूप में वर्णन करते हैं। अतः इस मुद्दे पर झगड़े की कोई बात ही नहीं है। मूर्ख ही इस को शक्ल देंगे, समझदार लोग इस बात पर कभी नहीं झगड़ते हैं।
योगासन करते समय ‘ओउम्’ का उच्चारण करने में मुस्लिम बंधु संकोच क्यों करते हैं
अपरंच, ‘अल्लाह’ शब्द का जो ईश्वर के लिए प्रयुक्त किया जाता है, मूल अर्थ “माता/ देवी” है। यह शब्द अल् + लहा से बना है। पहले अरब के लोग देवी की भी पूजा करते थे ,जिसे ‘लाह’ कहते थे ।बाद में उसी अल्लाह शब्द का अर्थ ईश्वर कर दिया गया।आगे भी ,यदि ओम् और अल्लाह पर्यायवाची हैं, तो क्या मुस्लिम बंधु अपने पवित्र स्थलों पर कुछ लिखने से पूर्व ‘ओउम्’ शब्द लिखना शुरू कर देंगे क्योंकि मदनी के अनुसार , भारत तो उनकी प्रथम मातृभूमि का पवित्र शब्द है। ऐसा करने से तो एकता का भाव ही पुष्ट होगा। यदि ‘ओउम्’ और ‘अल्लाह’ पर्यायवाची शब्द हैं, तो योगासन करते समय ‘ओउम्’ का उच्चारण करने में मुस्लिम बंधु संकोच क्यों करते हैं।
इस्लाम धर्म नहीं, बल्कि एक मजहब है
उपयुक्त तथ्यों से सिद्ध होता है कि इस्लाम धर्म नहीं, बल्कि एक मजहब है, जैसे पारसी ,यहूदी ,ईसाई आदि मजहब है ,धर्म नहीं। धर्म केवल एक है ,जबकि मजहब अनेक हो सकते हैं। हम हिंदू उस धर्म को सनातन धर्म, मानव धर्म या प्राणी धर्म कहते हैं । धर्म शाश्वत है ,सार्वभौम है और सर्व समावेशी है। हम सनातन धर्म के अनुयायी हैं और हमारी सांस्कृतिक परंपरा में सबका स्वागत है ।किसी को अपना मजहब छोड़कर यहां आने की आवश्यकता नहीं है। सब संप्रदायों का स्वागत है। आचरण का अच्छा होना ही मनुष्य को अच्छा बनाता है। कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी मजहब को मानता हो या सभी मजहब को सम्मान देता हो या किसी भी मजहब को नहीं मानता हो ,किंतु उसका अन्य व्यक्तियों के प्रति ,अन्य संप्रदाय/ संप्रदायों के प्रति- समग्र समाज के प्रति, अपने राष्ट्र के प्रति विचार और व्यवहार श्रेष्ठ हैं ,तो वह श्रेष्ठ व्यक्ति है और सनातन परंपरा में उसका स्वागत है। वैसे तो हमारे लिए संपूर्ण वसुधा ही कुटुंब है ।हम सबका पिता परमेश्वर है और भूमि माता है। (माता भूमि: पुत्रोअहं पृथिव्या:) । अस्तु ।