अल्मोड़ा: यूपी के श्रावस्ती से पदयात्रा करते हुए अपने अनुयाइयों के साथ अल्मोड़ा पहुंचे आचार्य श्री 108 सुबलसागरजी महाराज, जानें दिगम्बर जैन मुनि क्यों रहते हैं निर्वस्त्र और क्यों करते हैं कठिन जीवन का पालन

अल्मोड़ा से जुड़ी खबर सामने आई है। दिगम्बर समुदाय के जैन मुनि अल्मोड़ा आए हैं। यूपी के लखनऊ से 175 किमी दूर श्रावस्ती से पदयात्रा करते हुए यह लोग अल्मोड़ा पहुंचे हैं। इसमें जैन भिक्षु व जैन भिक्षुणी शामिल हैं। इसमें जैन मुनि नग्न पदयात्रा पर है। यह सभी लोग यूपी के श्रावस्ती से पदयात्रा करते हुए अलग-अलग पड़ाव होते हुए अल्मोड़ा आए हैं और इसके बाद यह सभी लोग बद्रीनाथ धाम को अपनी पदयात्रा का पड़ाव शुरू करेंगे।

आचार्य श्री 108 सुबलसागरजी महाराज जी ने साझा की जैन दिगम्बर समुदाय की जीवन शैली

आचार्य श्री 108 सुबलसागरजी महाराज ने खबरी बॉक्स न्यूज चैनल के रिपोर्टर से वार्ता में बताया कि दिगंबर जैन मुनि हमेशा गर्म जल का प्रयोग करते हैं। जैन मुनि सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पूर्व कुछ खाते पीते नहीं, पानी की एक बूंद या दवा आदि रात्रि में लेना उनके लिए सर्वथा निषेध है। दिगम्बर समुदाय के लोग 24 घंटे में एक ही बार आहार ग्रहण करते हैं। महाराज जी ने बताया कि आहार करते समय कोई भी जीव इनके भोजन में गिर जाता है तो वह उस आहार को उसी समय त्याग देते हैं। इसके बाद वह अगले 24 घंटे के पश्चात ही आहार और जल ग्रहण करते हैं। महाराज जी ने यह भी बताया कि मुनि वह होता है जो समाज की नग्नता को ढकने के लिए अपने तन के वस्त्र तक उतारकर फेंक देता है। दिगंबर धारण करने के बाद मुनि उसी अवस्था में रहता है जिस अवस्था में वो दुनिया में आया था। ब्रश और स्नान न करना इसी अवस्था का एक हिस्सा है। दिगंबर समुदाय के लोग किसी तरह की सुख-सुविधाओं का उपभोग नहीं करते हैं। जैसे हवा के लिए पंखे, कूलर का उपयोग नहीं करते। किसी भी तरह के इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से दूर रहते हैं। चलते वक्त अगला पैर उठाने से पहले चार हाथ जमीन देखते हैं। जिससे कहीं कोई जीव पैर के नीचे न आ जाए। इसके अलावा अपने साथ कमंडल, लोटा, शुद्धि के लिए रखते हैं। महाराज जी पिछले 09 वर्षों से पीठ के बल कभी भी आसन नहीं लिया है न ही पीठ के बल सोए हैं। महाराज जी पद्मासन में ही ध्यान करते हैं और पद्मासन ग्रहण कर ही अपनी निद्रा पूरी करते हैं। महाराज जी बताते हैं कि उनके पास एक ग्रंथ है जिससे वह अपने अनुयायियों को हर पड़ाव में कई उपदेश देते हैं। महाराज जी ने बताया कि हम सभी लोग यहां से बद्रीनाथ धाम को जाएंगे। इसके बाद वह अपने अगले पड़ाव की पदयात्रा शुरू करेंगे। महाराज जी ने बताया की जीवन पर्यन्त उनका कार्य निरंतर चलना ही है।

जैन धर्म में होते हैं दो संप्रदाय

जैन धर्म के मुख्यतः दो सम्प्रदाय हैं श्वेताम्बर(उजला वस्त्र पहनने वाले) और दिगंबर (नग्न रहने वाले)। जैनधर्म में जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल नाम के छ: द्रव्य माने गए हैं। ये द्रव्य लोकाकाश में पाए जाते हैं, अलोकाकाश में केवल आकाश ही है। जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध सँवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्व है।
वहीं इन जैन मुनियों को दिगंबर कहा जाता है। दिगंबर का मतलब है जो अंतरंग-बहिरंग परिग्रह से रहित है वो निर्ग्रन्थ है। निर्ग्रन्थता का अर्थ है क्रोध, मान, माया, लोभ, अविद्या, कुसंस्कार काम आदि से मुक्त होना। वहीं अंतरंग ग्रंथि का मतलब है धन धान्य, स्त्री, पुत्र सम्पत्ति, विभूति आदि से मुक्त हो। दिगम्बर जैन मुनियों को निर्ग्रन्थ भी कहते हैं। क्योंकि उन्होंने सारी चीजों को त्यागा होता है। वहीं इनके दिगंबर कहलाने का मतलब होता है, इन्होंने दिशाओं को ही अपन वस्त्र बना लिया है और उसे ही धारण करना है।

दिगंबर समुदाय के जैन मुनि की दीक्षा होती है सख्त

दिगंबर जैन मुनियों को गर्मी, सर्दी, बरसात सारे मौसम में एक समान निर्वस्त्र रहना होता है। वे अपने पास केवल पिच्छी नामक शस्त्र जो मोर पंख से बनी होती है जिसका कार्य जमीन पर चलने वाले छोटे से छोटे कीड़ों को अहिंसा पूर्वक हटाने का होता है और कमंडल अपने साथ रखते हैं। दिगंबर जैन समुदाय में मुनि बनने की दीक्षा काफी सख्‍त होती है। किसी भी समुदाय के व्‍यक्ति को मुनि बनने से पहले और बाद में जीवन को काफी कठोरता के साथ बिताना होता है। जहां कड़ाके की सर्दी में आम व्‍यक्ति गर्म कपड़े, मोजे और जूते पहनकर रहते हैं, वहीं दिगंबर जैन मुनि बिना कपड़ों के ही आराम से रहते हैं। वे भीषण गर्मी और सर्दी में भी नंगे पैर ही चलते हैं। यही नहीं, वे हमेशा जमीन पर ही सोते हैं। जहां आम लोग अपने बालों को छोटा रखने के लिए कैंची से कटवाते हैं। वहीं जैन मुनि हर दो महीने या चार महीने में अपने बालों को हाथों से उखड़वाते हैं। इसमें कई बार उस जगह से खून भी निकलने लगता है।

जानें दिगंबर समुदाय के जैन मुनि क्‍यों नहीं पहनते वस्‍त्र?

दिगंबर समुदाय के जैन मुनि बिना वस्त्र के रहते हैं। दिगंबर जैन मुनियों का मानना होता है कि जब हम बिना कपड़ों के जन्‍मे हैं तो बाकी जीवन हमें वस्‍त्रों की आवश्‍यकता क्‍यों? वस्त्र लोगों के विकारों को ढकने के लिए पहने जाते हैं। दिगम्बर समुदाय के जैन मुनियों को विकारों से परे माना जाता है। इसलिए माना जाता है कि उन्‍हें वस्‍त्र धारण करने की जरूरत ही नहीं है। नवजात शिशु की ही तरह दिगंबर जैन मुनि भी विकारों से परे होते हैं। इसलिए उन्हें भी वस्त्र पहनने की कोई जरूरत नहीं है। दूसरा बड़ा कारण यह भी बताया जाता है कि वस्त्र पहनने से दिगंबर समुदाय के जैन मुनियों की साधना में रुकावटें आती हैं। इसके अलावा दिगंबर जैन मुनि भीषण गर्मी हो या सर्दी, कपड़ों के अलावा जूते या चप्‍पल भी नहीं पहनते हैं। यह हरी घास पर भी नहीं चलते हैं। दिगंबर समुदाय के जैन मुनि मौसम की परवाह किए बिना जमीन पर ही सोते हैं। वे या तो सीधे जमीन पर सोते हैं। हालांकि, उन्‍हें लकड़ी की जमीन पर भी सोने की इजाजत है। कई जैन मुनि सोने के लिए जमीन पर सूखी घास का भी इस्‍तेमाल करते हैं। वहीं दिगंबर जैन भिक्षुणी महिलाएं सफेद वस्त्र धारण करती हैं।

दिगंबर जैन समुदाय की इस पदयात्रा की सेवाओं में जुटी है मुक्तेश्वर की टीम

दिगंबर जैन समुदाय के अनुयायियों की इस पदयात्रा में उनके साथ प्रसिद्ध ट्रेकर्स रविन्द्र बिष्ट, जगदीश बिष्ट ‘जग्गा’, राजू बिष्ट, हरीश बिष्ट और समस्त टीम मुक्तेश्वर से सभी उनकी सेवाओ में जुटे हैं। ट्रेकर्स रविन्द बिष्ट ने बताया कि समस्त टीम जैन मंदिर मुक्तेश्वर से कालिका मंदिर चौसलीं पहुंचे और आज कालिका मंदिर से आगे को अपनी पदयात्रा शुरू करेंगे। उन्होंने बताया कि यह प्रत्येक दिन 15 से 20 किमी चलने के बाद ही विश्राम करते हैं और प्रत्येक दिन सुबह 11 बजे एक समय ही भोजन और जल ग्रहण करते हैं।