अल्मोड़ा: लोक संस्कृति के लिए संस्कृति और सभ्यता का सरंक्षण बेहद जरुरी- कुलपति प्रो.सतपाल बिष्ट

अल्मोड़ा से जुड़ी खबर सामने आई है। अल्मोड़ा में सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सतपाल सिंह बिष्ट ने गुरुवार को इतिहास विभाग के सभागार मे पत्रकार वार्ता की।

लोक संस्कृति वर्तमान युग में हो रही विलुप्त

जिसमें उन्होंने हिमालय लोक संस्कृति पर होने जारी अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के बारे में विस्तृत जानकारी मीडिया के साथ साझा की। उन्होंने कहा कि परंपरा और संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को विरासत के रूप में हस्तांतरण होती है। प्रो. सतपाल सिंह बिष्ट ने कहा कि मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है कि वर्तमान युग में अकादमी गतिविधि के साथ सोशल मीडिया ने भी संस्कृति को बदलने में योगदान दिया है। बिना पढ़े लिखे लोग भी संस्कृति सीख सकते हैं। उन्होंने कहा कि ज्ञान और विज्ञान से ही क्रांति आ सकती है। जब ज्ञान की क्रांति आएगी, तब ही हम कुछ सीख सकते हैं। उन्होंने कहा कि लोक संस्कृति वर्तमान युग में विलुप्त सी होते जा रही है, लोक संस्कृति में आधुनिकता के कारण पढ़ रहे प्रभाव को बचाने के लिए जन जागृति सबसे अहम है।

संस्कृति के संरक्षण में अपना योगदान जरूर दें

वहीं अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के संयोजक और इतिहास विभाग के विभागध्यक्ष प्रो बीडीएस नेगी ने कहा कि सेमिनार के लिए देश-विदेश से लगभग 200 से अधिक शोध पत्रों के सारांश मिल चुके हैं। जिसमें जर्मनी, पुर्तगाल, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, यूएसए, ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश आदि देशों के विद्वान शामिल है। उन्होंने बताया कि नेपाल के पूर्व उप प्रधानमंत्री डॉ राजेंद्र सिंह रावल भी हिमालयी लोक संस्कृति पर अपना व्याख्यान देंगे। उन्होंने उम्मीद जताते हुए कहा कि सेमिनार के निष्कर्ष से मिलने वाले सुझाव लोक संस्कृति के संरक्षण में अपना योगदान जरूर देंगे।

भारत के हर राज्य में लोक संस्कृति केंद्र अत्यंत विस्तृत

लोकभाषा के विशेषज्ञ प्रो.देव सिंह पोखरिया ने कहा कि भारत के हर राज्य में लोक संस्कृति केंद्र है यह विषय अत्यंत विस्तृत है। हिंदूकुश पर्वत से लेकर म्यांमार तक सभ्यता-संस्कृति किस तरह से फैली यह बहुत ही अधिक शोध ओर चिंतन करने का विषय है। उन्होंने कहा कि लोक का अर्थ है जनसाधारण। उन्होंने बताया कि प्राचीन काल में लोक का अर्थ आदिम,असंस्कृति लोगों और ऐतिहासिक चीजों से लिया जाता था,परन्तु वर्तमान में भाषाई विविधता, पुरातात्विक, सामुदायिक, जनजाति पिछड़ी जातियां, उपजातियां के अध्ययन से भी जोड़कर देखा जाता है।

संस्कृति का विस्तृत अध्ययन जरूरी

अंगेजी भाषा के शिक्षाविद प्रो हामिद अहमद ने कहा कि लोक संस्कृति को भाषा से जोड़कर देख सकते हैं। भारत में सीजन से जुड़ी हुई अनेक परंपराएं हैं। यहां प्रकृति को सेलिब्रेट करने की लोक संस्कृति है। इसीलिए संस्कृति को हमें विस्तृत रूप में अध्ययन करने की आवश्यकता है।

यह लोग रहें मौजूद

इस मौके पर सेमिनार के सचिव गोकुल देउपा, रवि कुमार प्रेम प्रकाश पांडे मौजूद रहे।