अल्मोड़ा जिले से जुड़ी खबर सामने आई है। अवैज्ञानिक तरीके से दोहन और पर्यावरण असंतुलन के कारण धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे औषधीय गुणों से भरपूर धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तिमूर के संरक्षण के लिए अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ जिले में तिमूर सेंचुरी स्थापित होगी, जिसकी कवायद जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान ने शुरू की है। दोनों जिलों में उत्तराखंड में पाई जाने वाली तिमूर की चारों प्रजातियों की पौध तैयार कर इसका संरक्षण किया जाएगा। इन्हें किसानों को बांटकर जहां इसका संरक्षण होगा तो वहीं यह उनकी आजीविका भी जरिया बनेगा।
जीबी पंत संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार तिमूर की विश्व में 250 प्रजातियां मिलती हैं
जीबी पंत संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार तिमूर की विश्व में 250 प्रजातियां मिलती हैं। भारत में इसकी 11 जबकि उत्तराखंड में इसकी चार प्रजाति दर्ज हैं। संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आईडी भट्ट ने बताया कि अवैज्ञानिक और बेतरतीब तरीके से इसका दोहन किया गया। वहीं पर्यावरण असंतुलन के कारण इसके बीज कठोर होने से यह अंकुरित नहीं हो रहे हैं और यह धीरे-धीरे विलुप्त हो रहा है। ऐसे में संस्थान ने इसके संरक्षण के लिए कदम बढ़ाए हैं।
किसानों में बांटी जाएगी चार प्रजाति की पौध
संस्थान के साथ ही अल्मोड़ा जिले के हवालबाग और पिथौरागढ़ जिले में संस्थान इसकी सेंचुरी स्थापित कर रहा है। यहां इसकी चारों प्रजाति की पौध तैयार होगी जो किसानों को बांटी जाएगी। संस्थान की पहल पर पर्वतीय क्षेत्रों में विलुप्त हो रहे तिमूर के पौधे लहलहाएंगे जो किसानों की आजीविका का स्रोत बनेंगे। वर्तमान में संस्थान में स्थापित सेंचुरी में चारों प्रजाति की 500 पौध तैयार की जा रही है।
धार्मिक अनुष्ठानों में भी किया जाता है उपयोग
तिमूर का वानस्पतिक नाम जैंथाक्सिलम है। इसे कुमाऊं में तिमूर, गढ़वाल में टिमरू के नाम से जाना जाता है। इसकी पत्तियों को पीसकर इससे दांत साफ किए जाते हैं और पायरिया की रामबाण औषधी है। इसकी कांटेदार लकड़ी को हथेली से दबाने से रक्तचाप कम होता है। इसके बीज का इस्तेमाल मसाले और दवा तैयार करने में किया जाता है। तिमूर की लकड़ी को शुद्ध मानते हुए इसका उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों में भी किया जाता है।
1000 से 1200 रुपए किलो बिकते हैं बीज
उत्तराखंड में तिमूर की जेंथेजाइलम आर्मेटम, जेंथेजलाइलम एकैंथोपोडियम, जेंथेजालाइलम ऑक्सीफिलम और जेंथेजाइलम बुद्रुंगा मौजूद हैं।
इसके बीज खुले बाजार में 1000 से 1200 रुपये किलो बिकते हैं।
संस्थान द्वारा किया जाएगा तिमूर का संरक्षण
प्रो. सुनील नौटियाल, निदेशक, जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान, अल्मोड़ा ने बताया कि तिमूर बहुउपयोगी है, जिसके संरक्षण की अत्यधिक जरूरत है। संस्थान तिमूर सेंचुरी स्थापित कर इसका संरक्षण कर रहा है। यह किसानों की आजीविका का भी बेहतर जरिया बनेगा।