आमलकी एकादशी:स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखने हेतु ये एकादशी सर्वश्रेष्ठ, जानें पौराणिक कथा, कैसे भगवान श्री विष्णु ने की अपने भक्त की रक्षा

फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी कहा जाता हैं। इस एकादशी का व्रत सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।  भगवान विष्णु ने कहा है जो प्राणी स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं उनके लिए फाल्गुन शुक्ल पक्ष में जो पुष्य नक्षत्र में एकादशी आती है उस एकादशी का व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है। इस एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है।ऐसा माना जाता है कि जब विष्णु जी ने जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा को जन्म दिया उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को जन्म दिया। आंवले को भगवान विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया है। इसके हर अंग में ईश्वर का स्थान माना गया है।

फाल्गुन शुक्ल पक्ष आगामी व्रत पर्व

आमलकी एकादशी व्रत -3 मार्च
प्रदोष व्रत – 4मार्च
पूर्णिमा व्रत,होलिका दहन -6 मार्च
छलडी (होली) -8 मार्च।
होलिका दहन – 7 मार्च को पूर्णिमा प्रदोष को स्पर्श नही कर रही है,अर्थात  प्रतिपदा का मान पूर्णिमा से अधिक नही है इस कारण उत्तराखंड समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश,दिल्ली,हरियाणा,पंजाब,राजस्थान,मुंबई आदि स्थानों में होलिका दहन 6 मार्च को भद्रा पुच्छ रात्रि 2:16 से 3:31 तक विलंब से प्राप्त होने के कारण होलिका दहन प्रदोष काल सायं 6 :29 से 8 :49 बजे के मध्य किया जाना उचित है।

छलड़ी – छलड़ी उदय व्यापीनी चैत्र कृष्ण प्रतिपदा में होती है अतः जो 8 मार्च को शास्त्र सम्मत है।

ऐसे करें पूजन

आमलकी एकादशी के दिन सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर संकल्प करें तत्पश्चात ‘ भगवान की पूजा करें।भगवान की पूजा के पश्चात पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें। सबसे पहले वृक्ष के चारों की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें। पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें। इस कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमंत्रित करें। कलश में सुगंधी और पंच रत्न रखें। इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें। कलश पर श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं।अंत में भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से विष्णु जी की पूजा करें। रात्रि में भगवत कथा व भजन कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें। द्वादशी के दिन सुबह ब्राह्मण को भोजन करवा कर दक्षिणा दें और इसके बाद अन्न ग्रहण करें ।

जानें ये पौराणिक कथा

आमलकी एकादशी के कथा पहली बार महर्षि वशिष्ठ ने राजा मांधाता को सुनाई थी ।  उस समय राजा चैतरथ का शासन था । उस राज्य के सभी लोग धर्म पुण्य करते थे ।  सभी भगवान विष्णु के परम भक्त थे ।  फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष को व्रत रखते थे और रात में जागरण किया करते थे । एक बार की बात है, वहां पर एक शिकारी भी जागरण करने बैठा ।एकदाशी व्रत पूजा में शामिल हुआ । अगले दिन वह घर गया और भोजन करके सो गया, उसके अगले दिन अचानक ही उसकी मृत्यु हो गई।  बाद में, उसने राजा विदुरथ के पुत्र के रूप में जन्म लिया। इसलिए जन्म लिया, क्योंकि उसने व्रत कथा सुनी थी और जागरण किया था । उसके बाद वह कुलवंश होने के कारण वहां का राजा बन गया । एक दिन जब वह जंगल में रास्ता भटक गया, तब वह एक पेड़ के नीचे सो गया, फिर उसके ऊपर जंगली लोगों ने हमला कर दिया, लेकिन उसके शरीर से प्रकट हुई स्त्री ने उन जंगली लोगों को मार दिया, तब राजा बच गया।  जब वह नींद से जागा, तो देखा काफी लोगो मरे हुए हैं । उनके हाथों में अस्त्र-शस्त्र भी थे।  जब राजा ने पूछा कि उसकी रक्षा किसने की, तब आकाशवाणी हुई कि भगवान विष्णु के अलावा तुम्हारी रक्षा कौन कर सकता है वत्स।   उसके बाद वह अपने राज्य में लौट आया और संपन्नता के साथ फिर से  शासन करने लगा।