बागेश्वर: भक्तों की सभी मुरादें पूरी करती है मां भद्रकाली,एक साथ मैया के तीनों रूपों की होती है पूजा

देवभूमि उत्तराखण्ड़ की प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भारत ही नहीं अपितु विश्व में एक अलग पहचान है। यहां के तीर्थ स्थलों का भ्रमण करते हुए आध्यात्मिक अनूभूति प्राप्त करने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग आते रहते हैं। पर्यटन की दृष्टि से ही नहीं बल्कि तीर्थाटन की दृष्टि से भी यह पावन भूमि मानी जाती है। इस पावन देवभूमी में अनेक देवी–देवताओं के मंदिर हैं जो हमेशा से श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र रहे हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही देवी और उनके पावन मंदिर के बारे में अवगत करवाने जा रहे हैं। समस्त मंगलों का मंगल करने वाली,मंगलों को मंगलता का वैभव प्रदान करने वाली,वर देने वालों को भी वरदान देने वाली,सर्व शत्रुविनासिनी,सर्व सुखदायिनी,सर्वसौभाग्यदायिनी,लोक कल्याणकारिणी,सर्व स्वरुपा, कल्याणी माता श्रीभद्रकाली की महिमां अपरम्पार है, जिनके आशीर्वाद से समस्त जगत की क्रियायें सम्पन हो रही है।

माता सरस्वती, लक्ष्मी और महाकाली एक साथ एक स्थान पर विराजती हैं

उत्तराखंड की भूमि को देव भूमि ऐसे ही नहीं कहा जाता है क्योंकि पावन उत्तराखंड की भूमि में यहां ऐसे कई मंदिर स्थित हैं। जो अपने में कई प्रकार के रहस्य समेटे हुए हैं। ऐसी है बागेश्वर जिले में स्थित भद्रकाली मंदिर। कम ही लोग जानते हैं कि देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं अंचल में एक ऐसा ही दिव्य एवं अलौकिक विरला धाम मौजूद है, जहां माता सरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली एक साथ एक स्थान पर विराजती हैं।

कमस्यार घाटी में स्थित है माता भद्रकाली का मंदिर, सदियों से है आस्था व भक्ति का केंद्र

कमस्यार घाटी में स्थित माता भद्रकाली का मंदिर सदियों से आस्था व भक्ति का केंद्र है। मान्यता है कि मां भद्रकाली मंदिर में भक्त की सभी मुरादें पूरी होती है। जो श्रद्धा व भक्ति के साथ अपनी अराधना और श्रद्धा के साथ मां के चरणों में पुष्प अर्पित करता है उसे परम पद की प्राप्ति होती है। माता भद्रकाली का यह धाम बागेश्वर जनपद में महाकाली के स्थान, कांडा से करीब 15 और जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी की दूरी पर सानिउडियार होते हुए बास पटान, सेराघाट निकालने वाली सड़क पर भद्रकाली नाम के गांव में स्थित है। यह स्थान इतना मनोरम है कि इसका वर्णन करना वास्तव में काफी मुश्किल है। माता भद्रकाली का प्राचीन मंदिर करीब 200 मीटर की चौड़ाई के एक बड़े भूखंड पर स्थित है। मंदिर के ठीक नीचे भद्रकाली गुफा के अंदर माता का गर्भ गृह स्तिथ हैं जो कि तीन नदियों के संगम पर है। जो कि विशाल शक्ति कुंड के नाम से जाना जाता है। गुफा के ठीक बाहर से एक एक विशाल झरना है जो कि इस जगह को और आकर्षित बनाता है भद्रकाली के उत्तर में पिंगल नाग, पूर्व में बेरीनाग पश्चिम में धवल नाग का मंदिर है।

मां भद्रकाली की महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती की तीनों रूपों में होती है पूजा

मां भद्रकाली को पूर्ण रूप से वैष्णवस्वरूप में पूजा जाता है, मां भद्रकाली को ब्रह्मचारिणी के नाम से भी जाना जाता है। वैष्णों देवी मन्दिर के अलावा भारत भूमि में यही एक अदभुत स्थान है। जहां माता भद्रकाली की महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती तीनों रूपों में पूजा होती है। इन स्वरूपों में पूजन होने के कारण इस स्थान का महत्व प्राचीन काल से पूज्यनीय रहा है,मान्यता है कि आदि गुरू शंकराचार्य ने इस स्थान के दर्शन कर स्वयं को धन्य माना।श्रीमद देवी भागवत के अतिरिक्त शिव पुराण और स्कन्द पुराण के मानस खंड में भी इस स्थान का जिक्र किया गया है । ऐसा कहा जाता है कि माता भद्रकाली ने स्वयं इस स्थान पर 6 माह तक तपस्या की थी। माता भद्रकाली भगवान श्रीकृष्ण की कुलदेवी यानी ईष्टदेवी थीं। इस स्थान को माता के 52 शक्तिपीठों में से भी एक माना जाता है।

अष्टमी तिथि को लगता है मेला

यहाँ नवरात्र की केवल अष्टमी तिथि को यहां मेला लगता है। कुछ श्रद्धालु पूरी रात्रि हाथ में दीपक लेकर मनवांछित फल प्राप्त करने के लिए तपस्या करते हैं। कहते हैं इस स्थान पर शंकराचार्य के चरण भी पड़े थे।  शिव पुराण में आये माता भद्रकाली के उल्लेख के आधार पर श्रद्धालुओं का मानना है कि महादेव शिव द्वारा आकाश मार्ग से कैलाश की ओर ले जाये जाने के दौरान यहां दक्षकुमारी माता सती की मृत देह का दांया गुल्फ यानी घुटने से नीचे का हिस्सा गिरा था। पौराणिक काल में नाग देवता भी भद्रकाली की ही उपासना करते थे। माना जाता है कि यहां पर मंदिर का निर्माण लगभग सन् 930 में एक महायोगी संत ने कराया था देवी के इस दरबार में समय-समय पर अनेकों धार्मिक अनुष्ठान सम्पन्न होेते रहते है। मंदिर में पूजा के लिए चंद राजाओं के समय से आचार्य एवं पूजारियों की व्यवस्था की गई थी।अंग्रेजों ने भी इस स्थान को अत्यधिक धार्मिक महत्व का मानकर कर रहित घोषित किया था। आज भी यहां किसी प्रकार  का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। 

मां काली के शांत स्वरूप के कारण ही मां भद्रकाली मंदिर में बली नहीं दी जाती

माता काली के शांत स्वरूप के कारण ही मां भद्रकाली मंदिर परिसर में किसी भी प्रकार की बली नहीं दी जाती हैं।