गोलू देव से मिलने के लिए तोड़े ट्रैफिक नियम, एक तरफ मन और एक तरफ चितई के गोलूदेव और कसार देवी

कोई पूर्व योजना नहीं थी जाने की! अपने आवास पर आने के बाद कुछ समय विश्राम करने के उपरांत ख्याल आया कि चार दिन की जिंदगी मिली है और आज का दिन भी बीत जाने को है। कहीं दिन निकल न जाए,इससे पहले की लेट हो जाये, मैंने घूमने का मन बनाया।  तीन बज रहा था। मैं आकर यूं ही आराम कर रहा था। मन में विचार किया कि कसारदेवी की तरफ जाना उचित रहेगा। फिर निकल पड़ा अपने डेरे से। ज्यूँ ही नारायण तिवारी दीवाल पहुंचा तो मन बदला और चितई की तरफ रुख किया। पशु विहार के पास ही गंगनाथ मंदिर की तरह सड़क से नीचे को झांका। यकायक उस प्रवेश द्वार की तरफ बनी हुई सीढ़ियों में बैठकर प्रकृति का आनंद उठाने का मन बना। ये वही सीढियां हैं जहां मैं अक्सर बैठता हूं।

राष्ट्रीय पर्यावरण संस्थान,कोसी-कटारमल के प्रयासों से बने नंदा वन को निहारा

करीब एक घंटा उन सीढ़ियों पर बैठकर गंगनाथ जी के दूरदर्शन किये। सीढ़ियों के पास नगरपालिका और राष्ट्रीय पर्यावरण संस्थान,कोसी-कटारमल के प्रयासों से बने नंदा वन को निहारा। 2016 के आस पास इस स्थान पर दोनों संस्थाओं के सहयोग से यह वनक्षेत्र विकसित हुआ है।नगर के स्वयंसेवी संस्थाओं, समाजसेवियों ने इस क्षेत्र में वन रोपे हैं। धीरे-धीरे चौड़ी पत्ती के यहां असंख्य पौधों का रोपण होता रहा और यह क्षेत्र अब जैव विविधता का केंद्र बनने जा रहा है। यहां लगे हुए कई प्रजातियों के वृक्ष हैं। उन पर नन्हीं-नन्ही चिड़ियों ने अपने घर बनाये हैं। वो टहलकदमी कर रही हैं, वो चहक रही हैं। उन असँख्य चिड़ियों की आवाज़ें उस क्षेत्र को प्रकृति होने का एहसास करा रही थीं। मेरे आस-पास भौंरे मंडराकर  मुझे चैन से बैठने नहीं दे रहे थे। भैरव भी आस-पास के पास रैकी कर रहे थे।

सड़क पर 5 मिनट का चिंतन, गोलू दर्शन करने का खयाल भी ख्याल रहा

एक घंटा वहां पर बैठने के बाद सड़क पर 5 मिनट चिंतन किया। गोलू दर्शन करने का खयाल भी ख्याल रहा। चितई नहीं जा पाने का मन में मलाल हो रहा था। ज्यूँ ही NTD तिराहे पर पहुंचा तो सामने से आती हुई बुलेट मेरे पास ठहरी। यकायक बुलेट चला रहे रोहित पर नजर गढ़ी की गढ़ी रह गयी। विश्वास नहीं हो रहा था कि ये खटीमा के रोहित मेरे पास खड़े हैं। रोहित खटीमा  रहते हैं। 2 वर्ष पूर्व उनसे कसारदेवी के घुमक्कड़ी के दौरान मुलाकात हुई थी। जंगल में बैठकर प्रकृति का आनंद ले रहे थे तब।

गोलू देव से मिलने के लिए तोड़े ट्रैफिक नियम

वो खेल प्रशिक्षक हैं और अपने फौजी मित्र प्रकाश मेहरा (आर्मी एविएशन,पठानकोट) को लेकर जागेश्वर घूमने निकले थे। शाम हो जाने की वजह से वे दोनों अल्मोड़ा के एक होटल में रुके। शाम के समय चितई स्थित गोलू महाराज के मंदिर दर्शन के लिए निकले थे।
रोहित ने 5 मिनट में ही अपनी योजना बता दी और उनका कहना था कि आप घुमक्कडी में गए होंगें सर! चलो सर गोलू देवता के मंदिर चलते हैं!
बुलेट कोई चैक तो नहीं करेगा, तीन सवारी में सर? रोहित ने कहा। दुपहिया में तीन सवारियों का बैठना ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन था ही, पर मन में गोलू देव से मिलने की इच्छा भी थी। फिर क्या था बैठ गया रोहित की बुलेट में और पहुंच गए गोलू देव के दरबार में।

जिला प्रशासन को इस तरफ ध्यान देकर अतिक्रमण को हटाकर हल निकालना चाहिए

यह दिन कुछ खास था। अक्षय तृतीया थी। अक्षय अर्थात चीज की समाप्ति न होना, जो खत्म ही न हो। आज के दिन संस्कार बिना घड़ी के भी सम्पन्न हों तो सब शुभ माने जाते हैं। गोलू देवता के मंदिर में भी बहुत भीड़ थी। गोलू देवता मंदिर में शादी भी हो रही थी और दूसरी तरफ मुंडन भी। पार्किंग की जगह फड़ लगे थे।  फड़ व्यवसायियों ने  सड़क घेरी हुई थी। सड़क पर पांव रखने की जगह ही नहीं बची हुई थी। जिला प्रशासन को इस तरफ ध्यान देकर अतिक्रमण को हटाकर हल निकालना चाहिए। मंदिर प्रांगण में पहुँचकर मैं गोलू देवता को निहारने लगा। सामने से मित्र और शिक्षक मनोज तिवारी जी दिखे। मनोज तिवारी जी शिक्षक हैं। कॉलेज समय से वो मित्र रहे हैं। उनसे संस्कार गीतों  को लेकर बहुत वार्ता हुई। साथ ही रोहित एवं प्रकाश भी अपनी मनोकामना को लेकर अर्जी लिखने में तल्लीन थे।उसके उपरांत मंदिर में न्यायदेव गोलू महाराज के दर्शन किये और अल्मोड़ा की तरफ बढ़े।

आस-पास के जंगल मेरे रात-दिन के मित्र

दुपहिए में ख्याल आया कि कसारदेवी जाया जाए। रोहित ने बिना विलंब किये हामी भरी और कसारदेवी मंदिर पहुंचे। जैसे पंचाचूली की ठंडक सीधे कसारदेवी की थान में पहुँच रही थी। इस कसारदेवी को लेकर मेरे मीठे-कडुवे अनुभव रहे हैं। यह स्थान बार-बार मुझे अपनी तरफ खींचता है। इसके आस-पास के जंगल मेरे रात-दिन के मित्र हैं। कसारदेवी मंदिर आध्यात्म को लेकर प्रसिद्ध धर्मस्थल है। यह प्रागैतिहासिक क्षेत्र भी है और चुम्बकीय क्षेत्र भी है। अखबारों और गूगल के अनुसार संसार के तीन चुम्बकीय क्षेत्रों में से एक क्षेत्र कसारदेवी भी है। कसारदेवी कषाय पर्वत पर स्थित है। इस क्षेत्र में देवी दुर्गा और काशायेश्वेर  रुद्रेश्वर(शिव) भी विराजमान हैं। मंदिर के समीप ब्राह्मी लिपि में लिखे शिलालेख भी स्थित हैं। जो लगभग छठी सदी के खुदे हुए हैं। अशोक के  कालसी में खुदे हुए शिलालेख के बाद उत्तराखंड में पत्थरों पर खुदा हुआ लेख एक यह भी है। जिसमें बेतिला पुत्र रुद्रक ने रुद्रेश्वर की स्थापना को लेकर सूचना है। कसारदेवी में  स्वामी विवेकानन्द, अल्फ्रेड सोरेंशन, गोविंदा लामा जैसे कई ऐतिहासिक पुरुषों का आगमन हुआ है। बौद्ध धर्म के गुरुओं ने भी इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। कई देशों के घुमंतू यहां आकर चट्टानों पर बैठकर अध्यात्म को पी रहे हैं और शांति से जी रहे हैं। विदेशी सैलानी यहां आकर शिव साधना करते हैं। शिव आक्रोश में रहने वाले व्यक्ति नहीं हैं। शिव भगत और साधक हैं। लेकिन कसारदेवी के दीवारों पर शिव जी को ड्रैगन रूप, आक्रोश में भरे हुए, रंगीले और अलग-अलग भाव में दर्शाकर विकृत किया गया है। स्थानियों को शिव जी के मूल रूप के बारे में बताकर चित्रित दीवारों को बदले जाने की आवश्यकता है। कसारदेवी में शिव का आध्यात्मिक/साधक रूप दिखाए जाने की आवश्यकता है। यह क्षेत्र व्यावसायिक और पर्यटन स्थल रूप में बन रहा है। जबकि तीर्थाटन के लिए यह क्षेत्र और मंदिर बनना चाहिए। यह क्षेत्र हिप्पी मूवमेन्ट का यह गवाह रहा है। बहुत सारी बातें हैं……।
वायु अपरदन के कारण इस क्षेत्र की चट्टानें तराशी हुई नजर आती हैं। इस क्षेत्र में प्रागैतिहासिक शैल चित्र भी संरक्षित किये जाने चाहिए।
इस मंदिर में पर्यटकों भीड़ जमी हुई थी। शाम का समय था और हम तीनों ठंडी ठंडी हवाओं का पान कर शिव भक्ति में रत थे। मंदिर के पास बैठकर अपार शांति मिली।

कसारदेवी जानें का प्लान बदला चितई की तरफ बढ़े कदम

यूं तो मेरी कसारदेवी आने का प्लान बदला और चितई की तरफ बढ़ा, लेक़िन थकान महसूस होने के कारण नंदा वन में ही बैठने का निर्णय लिया, लेकिन ईश्वरीय कृपा होगी कि गोलू महाराज के मन्दिर भी पहुँच गया और कसारदेवी के मंदिर भी। अनुज रोहित और प्रकाश के बहाने ही सही , पर इन मंदिरों में मन के अनुरूप पहुँच भी गए।घर की तरफ बढ़ते ही सूर्य पश्चिम दिशा में धँस गए।