चैत्र नवरात्र 2024: आज से चैत्र नवरात्र की शुरुआत, प्रथम दिवस मां शैलपुत्री की पूजा का विधान, जानें घटस्थापना मुहूर्त व पूजन विधि

आज 09 अप्रैल 2024 है। आज से चैत्र नवरात्र शुरू हो गई है। चैत्र माह की नवरात्रि 2024 कई शुरूआत आज से यानी 09 अप्रैल से हो गयी है। भक्तों का नवरात्र को लेकर काफी इंतज़ार रहता है और नवरात्रि आ जाने पर सभी भक्तों में काफी उत्साह देखने को मिलता है। चारों ओर से माहौल भक्तिमय हो जाता है। सनातन धर्म में चैत्र नवरात्रियों का विशेष महत्व है क्योंकि आज से ही हिंदू नव वर्ष की शुरुवात भी हो जाती है। इस साल चैत्र नवरात्रि पूरे 9 दिन की है।

कलश स्थापना के बाद देवी मां की चौकी स्थापित

नवरात्रि में दुर्गा की घटस्थापना या कलश स्थापना के बाद देवी मां की चौकी स्थापित की जाती है‌ तथा 9 दिनों तक इन देवियों का पूजन-अर्चन किया जाता है। कलश को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है।

देखें नवरात्र का घटस्थापना मुहूर्त

चैत्र नवरात्रि मंगलवार, 9 अप्रैल 2024 
घटस्थापना मुहूर्त- सुबह 6 बजकर 02 मिनट से सुबह 10 बजकर 16 मिनट तक
अवधि- 4 घंटे 14 मिनट्स
घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त – सुबह 11 बजकर 57 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक  

नवरात्रि के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा

नवरात्रि के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है ।  मां शैलपुत्री की आराधना से मनोवांछित फल और कन्याओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है।  बताया जाता है कि नवरात्रों में मां दुर्गा अपने असल रुप में पृथ्‍वी पर ही रहती है। इन नौ दिनों में पूजा कर हर व्यक्ति माता दुर्गा को प्रसन्न करना चाहता है। जिसके लिए वह मां के नौ स्वरुपों की पूजा-अर्चना और व्रत रखता है। जिससे मां की कृपा उन पर हमेशा बनी रहें। मां अपने बच्चों पर हमेशा कृपा बनाए रखती हैं।

ऐसे करें माँ की आराधना

नवरात्रि के पहले दिन सुबह जल्दी स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करे । मंदिर की साफ-सफाई करते हुए उसे गंगाजल से शुद्ध करें । मंदिर के पास एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं ।चौकी के बीच में अक्षत की ढेरी बनाएं और उसके ऊपर कलश की स्थापना करे । कलश पर स्वास्तिक बनाएं और उसके ऊपरी सिरे पर मोली बांधें ।  इसके बाद कलश में साबुत, सुपारी, सिक्का, हल्दी की गांठ, दूर्वा, अक्षत और आम का पत्ते डालें । एक कच्चा नारियल लें कर उसके ऊपर चुनरी लपेटें ।  इस नारियल को कलश के ऊपर रख दें । इसके बाद देवी मां का आराधना करें ।  धूप-दीप से कलश की पूजा करें और इसके बाद मां दुर्गा की पूजा कर उन्हें भोग लगाएं।

जानें ये पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार प्रजापति दक्ष सती के पिता ने यज्ञ के दौरान सभी देवताओं को आमंत्रित किया। उन्होंने भगवान शिव और सती को निमंत्रण नहीं भेजा। लेकिन सती बिना निमंत्रण भी यज्ञ में जाने को तैयार थी। ऐसे में भगवान शिव ने उन्हें समझाया कि बिना निमंत्रण यज्ञ में जाना ठीक नहीं। लेकिन सती नहीं मानी तो भगवान शिव ने उन्हें जाने की इजाजत दे दी। सती पिता के यहां बिना निमंत्रण पहुंच गई और उन्हें वहां बिना बुलाए मेहमान वाला व्यवहार ही झेलना पड़ा। उनकी माता के अलावा सती से किसी ने भी सही से बात नहीं की। बहनें भी यज्ञ में उपहास उड़ाती रहीं। इस तरह का कठोर व्यवहार और अपने पति का अपमान वे देख ना सकी और क्रोधित हो गईं। इसी क्षोभ, ग्लानि और क्रोध में आकर उन्होंने खुद को यज्ञ में भस्म कर दिया। जैसे ही ये समाचार भगवान शिव को मिला उन्होंने अपने गणों को दक्ष के पास भेजा और उनके यहां चल रहा यज्ञ विध्वंस करा दिया।फिर अगले जन्म में उन्होंने हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया, जिन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। इस प्रकार माता शैलपुत्री को हिमालय पुत्री के रूप में जाना जाता है और नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री मां की पूजा का विधान है ।

इन मंत्रों का करें उच्चारण

ऊँ देवी शैलपुत्र्यै नमः ।।या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।