आज 17 अप्रैल 2024 है। नवरात्रि का नवां दिन माँ सिद्धिदात्री को समर्पित होता है। आज शारदीय नवरात्रि का अंतिम दिन है।नवरात्रि के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा होती है। इनकी पूजा उपासना करने से समस्त प्रकार की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। नवमी के दिन अगर केवल इन्हीं की पूजा कर ली जाए तो व्यक्ति को सम्पूर्ण देवियों की पूजा का फल मिल सकता है। इस दिन कमल के पुष्प पर बैठी हुई देवी का ध्यान करना चाहिए। देवी को विभिन्न प्रकार के सुगन्धित पुष्प अर्पित करने चाहिए। नवमी के दिन देवी को शहद अर्पित करना चाहिए। इस दिन दुर्गा सप्तशती और कवच, कीलक और अर्गला का पाठ लाभकारी होता है।
नवरात्रि नवमी आज
चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि का प्रारंभ 16 अप्रैल को 01 बजकर 23 मिनट पर प्रारंभ हो रही है। वहीं, इसका समापन 17 अप्रैल को दोपहर में 03 बजकर 14 मिनट पर होगा। ऐसे में नवमी 17 अप्रैल, मंगलवार को मनाई जाएगी। इस तरह 17 अप्रैल को नवमी, राम नवमी मनाई जाएगी। साथ ही 17 अप्रैल को नवरात्रि का हवन और कन्या पूजन होगा। कन्या पूजन में 2 से 9 वर्ष तक की कन्याओं को हलवा-पूरी खिलाया जाता है और उनको भेंट देकर आशीर्वाद लिया जाता है।
राम नवमी मध्याह्न मुहूर्त – सुबह 11 बजकर 03 मिनट से दोपहर 01 बजकर 38 मिनट तक
नवरात्रि के नवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा
सुबह स्नान करने के बाद मां की पूजा से पहले सभी देवी-देवताओं का आह्वान करें। चैत्र नवरात्रि के अंतिम दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर ही घर की पूरी साफ सफाई के बाद अन्य दिनों की तरह ही माता की पूजा-अर्चना करें लेकिन इस दिन हवन का विशेष महत्व रहा है। आज नवरात्रि का अंतिम दिन है इसलिए माता की पूजा करने से बाद सभी देवी-देवताओं की भी पूजा की जाएगी। लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर मां की मूर्ति या तस्वरी रखें और फिर चारों तरफ गंगाजल से छिड़काव करें। इसके बाद माता को पूजा सामग्री अर्पित करके हवन करें। हवन करते समय सभी देवी-देवताओं को नाम की आहुति भी एकबार दे दें। हवन के समय दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक के साथ मां दुर्गा की आहुति भी दी जाती है। इसके साथ ही देवी के बीज मंत्र ‘ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:’ का 108 बार जप करते हुए आहुति दें और फिर आरती उतारें। हवन करने के बाद पूरे परिवार के साथ माता के जयाकरे लगाएं और माता का आशीर्वाद लेते हुए कन्या पूजन शुरू करें। मां सिद्धिदात्री को भोग में हलवा व चना का विशेष महत्व है। इसके साथ ही पूड़ी, खीर, नारियल और मौसमी फल भी अर्पित करें और व्रत का पारण करें।
ऐसा है मां का स्वरूप
मां दुर्गा के नौवें स्वरूप को सिद्धिदात्री के नाम से जाना जाता है, जिनकी चार भुजाएं हैं। इनका आसन कमल और वाहन सिंह है। दाहिने और नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा, बाई ओर से नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है। भगवती के इस स्वरूप की ही हम नवरात्र के अंतिम दिन आराधना करते हैं। मां दुर्गा के इस रूप को शतावरी और नारायणी भी कहा जाता है।
जानें ये पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, मां सिद्धिदात्री को अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, वाशित्व, सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, परकायप्रवेशन, वाक्सिद्धि, कल्पवृक्षत्व, सृष्टि, संहारकरणसामर्थ्य, अमरत्व, सर्वन्यायकत्व, भावना और सिद्धि नाम से पुकारा जाता है। मां कमल पुष्प पर आसीन हैं। इनका वाहन सिंह है। मान्यता है कि मां की आराधना करने से व्यक्ति की लौकिक, पारलौकिक हर तरह की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। मां अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं। इसके अलावा व्यक्ति मां की सच्चे मन से अराधना करने पर अणिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है।
इन मंत्रों का करें उच्चारण
देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।