देवभाषा के लिए देवभूमि में देवलिपि देवनागरी – विष्णु पंड्या ,गुजरात अकादमी अध्यक्ष

शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ,भारतीय भाषा मंच और अध्ययन एवं अनुसन्धान पीठ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित द्विदिवसीय राष्ट्रीय तरंग संगोष्ठी का मातृभाषा दिवस के उपलक्ष्य में विराट आयोजन किया गया।इस राष्ट्रीय संगोष्ठी की मुख्य समन्वयक दिल्ली विश्वविद्यालय की वरिष्ठ प्रोफेसर माला मिश्र रहीं। जिन्होंने इस संगोष्ठी का कुशलतापूर्वक संचालन किया। संगोष्ठी का शुभारंभ माननीय अतुल कोठारी ने किया। श्री योगेश भारद्वाज ने  सरस्वती वंदना के गायन एवं कल्याण मंत्र के गायन किया।

भारतीय भाषाओं के विकास का नया प्रस्थान बिंदु :

‘भारतीय भाषाओं के विकास का नया प्रस्थान बिंदु : नई शिक्षा नीति’ विषयक इस संगोष्ठी में  केंद्रीय हिंदी शिक्षण संस्थान के श्री अनिल शर्मा जोशी ,दिल्ली विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा विभाग के अध्यक्ष प्रो .रवि टेकचंदानी , भारतीय ऐतिहासिक अनुसन्धान परिषद के सदस्य सचिव प्रो कुमार रत्नम ,आई आई एम टी कॉलेज ,सी सी एस यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष डॉ .राकेश  कुमार दुबे , मेघालय की डॉ .फिल्मेका मारबेनियांग , कर्नाटक के गणेश हेगड़े , महाराष्ट्र की  डॉ सविता धूड़केवार ,तमिलनाडु की डॉ .पी. सरस्वती, हिमाचल के नवनीत शर्मा ,कश्मीर की डॉ. बीना बुदकी , विद्या भारती के निदेशक प्रो. रामेंद्र सिंह ,वरिष्ठ संघ प्रचारक लक्ष्मीनारायण भाला  ,गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ . विष्णु पंड्या , लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ . गिरीश पंकज , नागरी लिपि परिषद के महामंत्री डॉ हरि पाल सिंह ,प्रसिद्ध आलोचक डॉ संदीप अवस्थी , प्रो .इंदु वीरेंद्र ,सिक्किम विश्वविद्यालय से डॉ नीलाद्रि बैग तथा श्री लक्ष्मण अधिकारी ,बिहार ग्रंथ अकादमी के अध्यक्ष डॉ . गिरीश नाथ झा इत्यादि सहित देश के विभिन्न प्रान्तों के विद्वानों ने सहभागिता की। उन्होंने  अपने विचार मातृभाषा और नई शिक्षा नीति के संदर्भ में बड़ी सुंदरता से अभिव्यक्त किये।

माँ ,मातृभूमि और मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं

इस संगोष्ठी में बीज वक्ता माननीय अतुल कोठारी जी ने कहा – माँ ,मातृभूमि और मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं है। प्रो . रवि टेकचंदानी ने कहा -” नई शिक्षा नीति ने समस्त भारतीय भाषाओं के विकास का गवाक्ष खोल दिया है।”
केंद्रीय हिंदी शिक्षण संस्थान के माननीय उपाध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी  ने कहा – “मातृ भाषाओं के विकास के साथ साथ उनकी लिपियों का सुदृढ़ीकरण भी परमावश्यक है।”
प्रो . कुमारत्नम ने कहा – “नई शिक्षा नीति मातृ भाषा ,संस्कृति और इतिहास की त्रिवेणी है।” लक्ष्मीनारायण भला जी ने कहा –
“माँ और मातृभाषा के अनादर से बचपन और व्यक्तित्व सिमट जाता है।”

देवभाषा के लिये देव भूमि में देवलिपि का प्रयोग  बहुत ही आदर्श स्थिति है

अध्यक्ष डॉ .विष्णु पंड्या ने कहा -” देवभाषा के लिये देव भूमि में देवलिपि का प्रयोग  बहुत ही आदर्श स्थिति है।” समस्त विद्वानों की विचारोत्तेजक चर्चा परिचर्चा के माध्यम से हुए मंथन से  राष्ट्र के  विकास का यही सूत्र निकल कर आया कि
निज भाषा उन्नति अहे ,सब उन्नति को मूल ,
बिन निज भाषा ज्ञान के ,मिटत न हिय को शूल।।
अंत में भारतीय भाषा मंच के दिल्ली प्रान्त संयोजक डॉ .लोकेश गुप्ता ने समस्त विद्वानों का औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन किया।

रिपोर्ट:

डॉ. ललित चंद्र जोशी
प्रभारी,
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग
सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय,अल्मोड़ा परिसर, उत्तराखंड।