सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के कुलपति प्रो एनएस भंडारी की नियुक्ति के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कुलपति की नियुक्ति को निरस्त करने का फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने कुलपति की नियुक्ति को यूजीसी की नियमावली के विरुद्ध पाए जाने पर यह निर्णय लिया है।
यह है पूरा मामला
देहरादून निवासी रवींद्र जुगरान ने हाईकोर्ट में सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के कुलपति की नियुक्ति यूजीसी की नियमावली के खिलाफ होने को लेकर जनहित याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा गया था कि राज्य सरकार द्वारा एसएसजे विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के कुलपति पद पर प्रो एनएस भंडारी की नियुक्ति यूजीसी नियमावली के खिलाफ की गई है। यूजीसी की नियमावली के अनुसार वाइस चांसलर नियुक्त होने के लिए दस साल की प्रोफेसरशिप होनी आवश्यक है, जबकि एनएस भंडारी ने करीब आठ साल की प्रोफेसरशिप की है। बाद में प्रोफेसर भंडारी उत्तराखंड पब्लिक सर्विस कमीशन के मेंबर नियुक्त हो गए थे। उस दौरान उनकी सेवा को प्रोफेशरशिप में नही जोड़ा जा सकता है। इसलिए उनकी नियुक्ति अवैध है और उनको कुलपति पद से हटाया जाए।
दस साल की प्रोफेसरशिप नहीं होने पर हुआ फैसला
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति एनएस धानिक की पीठ ने बुधवार को रवींद्र जुगरान की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के कुलपति प्रो एनएस भंडारी की नियुक्ति को यूजीसी नियमावली के विरुद्ध पाते हुए निरस्त करने के आदेश दे दिए हैं। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा यूजीसी नियमावली के अनुसार कुलपति पद पर नियुक्त होने के लिए 10 साल की प्रोफेसरशिप अनिवार्य है, और प्रोफेसर एनएस भंडारी ने 10 साल की प्रोफेसरशिप नहीं की है।