एसएसजे के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के प्रभारी डॉ ललित जोशी पैदल घुमक्कड़ी कर इतिहास,पुरातत्त्व, समाज,संस्कृति पर शोध कर रहे हैं। उन्होंने अब तक लगभग 300 गाँव पर पैदल घुमक्कड़ी कर ली है । वह अपने साथ पत्रकारिता के विद्यार्थी और इतिहास में रूचि रखने के साथ ले जाते हैं । लेकिन उन्होंने अधिकतर घुमक्कड़ी अकेले ही की है । उन्होंने पत्थरकोट ग्राम में आदिमानवों द्वारा उकेरे गए शैल चित्रों (Rock Paintings) की खोज भी की है। कप मार्क्स को लेकर भी कार्य कर रहे हैं। डॉ योगी ने इकलकट्टू के मायने समझाए हैं कि
इकलकट्टू व्यक्ति के क्या गुण है जो इसे औरों से अनोखा बनाता हैं । उन्होंने इकलकट्टू को कला के रूप में संजो के देखा है । आइये जाने इकलकट्टू के मायने ।
डॉ योगी का कहना है कि इकलकट्टू जिसको हम सिर्फ एक मुहावरे की तरह कभी कभार याद रखते हैं, या चिढाते हैं। लेकिन ये अपने आप में अलग चीज है।
डॉ योगी का इकलकट्टू पर लेख
बहुत दिनों से इकलकट्टू शब्द मुझे उद्वेलित कर रहा है। 3 हफ्ते पहले पेटशाल की ऊंची ऊंची पहाड़ियों में 5 घण्टे के अकेले सफर में बरबस ही मेरी जुबान में इकलकट्टू आया। इकलकट्टुओं कि भांति निकल पड़ता हूँ जंगल छानने, पैदल ही पैदल, बैर भाव भुलाकर,चिंता को कर किनारे।
इकलकट्टू रहना भी एक कला है
डॉ योगी का कहना है कि इकलकट्टू रहना भी एक कला है। इकलकट्टू से हम अक्सर यह भाव लगाते हैं कि जिसका किसी से मेल मिलाप संभव नहीं। हमारे वहां दो किस्म के इकलकट्टू सामने दिखाई पड़ते हैं। एक वह जो जन्मजात होते हैं और जिनको अकेला खाने, पीने, रहने और खुद के लिए जीने मरने की आदत जन्म से ही होती है। इनको जन्म से ही खुद को दूसरे की तुलना में बेहतर ही नजर आते हैं और दूसरे प्रकार के वह, जो सामंजस्य बैठाने वाली जगह में भी नहीं बैठा पाते। ये टेढ़े किस्म के, स्वतंत्र, बेवाक और खुद को बेहतर बनाने में लगे रहते हैं। मशीन की तरह हर वक्त लगे रहते हैं एकलकट्टुओं की तरह। इसका कारण यह है कि खुद को बेहतर दिशा में ले जाना।
कुछ इकलकट्टू ऐसे भी..
पहले प्रकार के इकलकट्टू जन्मजात होते हैं। ऐसे लोगों की परवरिश ही उन्हें सामाजिक नहीं बनने देती। उनकी जिंदगी की सीमा होती है। जिसे वो फांदकर नहीं जीना चाहते। वो दुख सुख कहना नहीं चाहते। क्योंकि वो कहने में अपनी इंसल्ट समझते हैं। इस प्रकार के इकलकट्टू लड़ाकू, घमंडी, छुपेरुस्तम होते हैं। घर के साथ खुद को भी धोखा देकर खुश रहते हैं। खुद के चरित्र को भी शंका की नजर से देखते है। इनका चरित्र बहका हुआ होता है। ये कहीं भी गिर-पिघल जाते हैं। जिनमें अटलता नहीं होती। ये स्वाभिमानी नहीं,बल्कि अभिमानी होते हैं। खुद का तमाशा बना देते हैं।
इकलकट्ट हमें आत्माभिमानी से आत्मस्वभिमानी बनाते हैं
दूसरे वाले इकलकट्ट हमें आत्माभिमानी से आत्मस्वभिमानी बनाते हैं। दूसरे वाले इकलकट्टू ईमानदार, दृढनिश्चयी, बेवाक होते हैं। वो दूसरे वाले प्रकार के एकलकट्टुओं से बेहतर होते हैं। वो स्वाभिमानी और खुद में एक व्यक्तित्व होते हैं। झूठ नहीं कहते, धोखा नहीं देते, अकेले रहते हैं, दूसरे प्रकार के इकलकट्टू की तरह।
बहरहाल इकलकट्टू होइए लेकिन इतना भी नहीं कि अपना अस्तित्व भी नजर न आये।