आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस सार्वजनिक तौर पर मनाया जा रहा है। इंटरनेशनल योग डे के मौके पर देश और दुनिया में लोग स्वस्थ रहने के लिए योग कर रहे हैं। स्वामी विवेकानंद के विचार और साधना में योग विद्या का बहुआयामी समन्वय है। योग को लेकर उन्होंने जो विचार व्यक्त किए, वह योगज्ञान का एक तरह से आधुनिक भाष्य है।
योग की विशिष्ट परंपराओं को विश्व के समक्ष व्यावहारिक ढंग से किया प्रस्तुत-
योग की अनेक धाराएं हैं। इनमें भी मंत्रयोग, हठयोग, लययोग और राजयोग को अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना गया है। स्वामी विवेकानंद ने योग की इन विशिष्ट परंपराओं को विश्व के समक्ष व्यावहारिक ढंग से प्रस्तुत किया। उन्होंने राजयोग, कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग आदि योग पद्धतियों के द्वारा जनसामान्य एवं खासतौर पर युवाओं में अध्यात्म एवं योग के प्रति समर्पण की भावना को जागरूक किया।
विश्व को दिया ध्यान योग का ज्ञान-
युगपुरुष स्वामी विवेकानंद का हिमालय से अटूट लगाव था। देश-दुनिया से भ्रमण से मौका पाते ही वह हिमालय में ध्यान लगाने आ पहुंचते थे। कुमाऊं के अल्मोड़ा क्षेत्र में उन्होंने कुल पांच यात्राएं की। इस दौरान अद्वैव के साथ ही दुनिया को ध्यान योग से परिचय कराया। अपनी प्रसिद्ध रचना ज्ञानयोग के कुछ अंश भी कुमाऊं प्रवास के दौरान लिखी।
जन्म-
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन् 1863 को कोलकाता में हुआ। उनका घर का नाम नरेंद्र दत्त था। उनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त का निधन 1884 में में हो गया था जिसके चलते घर की आर्थिक दशा बहुत खराब हो चली थी। मात्र 39 वर्ष की उम्र में 4 जुलाई 1902 को उनका निधन हो गया।
विवेकानंद का दर्शन-
विवेकानंद पर वेदांत दर्शन, बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग और गीता के कर्मवाद का गहरा प्रभाव पड़ा। वेदांत, बौद्ध और गीता के दर्शन को मिलाकर उन्होंने अपना दर्शन गढ़ा ऐसा नहीं कहा जा सकता। उनके दर्शन का मूल वेदांत और योग ही रहा। विवेकानंद मूर्तिपूजा को महत्व नहीं देते थे, लेकिन वे इसका विरोध भी नहीं करते थे। उनके अनुसार ‘ईश्वर’ निराकार है। ईश्वर सभी तत्वों में निहित एकत्व है। जगत ईश्वर की ही सृष्टि है। आत्मा का कर्त्तव्य है कि शरीर रहते ही ‘आत्मा के अमरत्व’ को जानना। मनुष्य का चरम भाग्य ‘अमरता की अनुभूति’ ही है। राजयोग ही मोक्ष का मार्ग है।