नहाय-खाय के साथ छठ महापर्व की हुई शुरूवात

लोक आस्था का महापर्व छठ शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया। पर्व को लेकर व्रतियों में काफी उत्साह देखा जा रहा है। छठ पूजा के मनोहर गीतों से वातावरण भक्तिमय हो गया है। आज व्रतियों द्वारा कद्दू की सब्जी,अरवा चावल का भात, चने की दाल सहित विविध व्यंजन बनाकर सूर्य देव को भोग लगाया गया। इसके बाद लोगों ने सपरिवार मिल बैठकर प्रसाद ग्रहण किया। छठ महापर्व की शुरुआत के साथ ही हाट-बाजारों में भीड़-भाड़ के साथ गहमागहमी भी देखने को मिल रही है। लोग प्रसाद सहित अन्य सामग्री खरीद रहे हैं।

कब मनाया जाता है यह पर्व ?

कार्तिक शुक्ल षष्ठी को यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व में व्रतियों को काफी कठिन उपवास रखना पड़ता है और सामाजिक रूप से इस पर्व का काफी महत्व है। चार दिवसीय अनुष्ठान शनिवार को उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पण के साथ संपन्न होगा। इस व्रत की शुरुआत नहाय खाय की विधि के साथ होती है। इसके तहत व्रती सुबह घरों की साफ-सफाई करते हैं और स्नान करने के बाद मिट्टी के चूल्हे पर अरवा चावल के भात, चने की दाल और लौकी कद्दू की सब्जी बनाते हैं। इससे पहले व्रती सूर्य देवता को भोग लगाते हैं और अपने स्वजनों की मंगल कामना करते हैं।

क्या होता है छठ पूजा का पूरा विधान ?

छठ का पहला दिन ‘नहाय खाय’ के रूप में मनाया जाता है जिसमें स्नान कर भोजन से व्रत की शुरुआत की जाती है। दूसरे दिन ‘खरना’ होता है, जिसमें व्रतधारी दिनभर उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। तीसरे दिन छठ का प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, चावल के लड्डू और चढ़ावे के रूप में फल आदि भी शामिल होते हैं। शाम को बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और तालाब या नदी किनारे सामूहिक रूप से सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।

छठ व्रती बिना किसी बाधा के इस अनुष्ठान को तप और निष्ठा के साथ पूरा करते है। कल शनिवार को खरना होगा। रविवार को भगवान सूर्य को शाम 5:31 पर अर्घ्य दिया जाएगा। इसके बाद सोमवार को उगते सूर्य को प्रातः 6:30 बजे अर्घ्य दिया जाएगा। लोक आस्था को मजबूत करता यह पर्व धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण का भी प्रणेता है। आयुर्वेद के अनुसार हमारा शरीर धरती, जल, अग्नि, वायु और आकाश जैसे पांच तत्वों से मिलकर बना है, जब तालाब या नदी में खड़े होकर यह त्योहार मनाते हैं तो हम इन पांचों चीजों के संपर्क में होते हैं।

समता, समानता व समरसता पर आधारित है यह पर्व

छठ व्रत समता, समानता व समरसता पर आधारित पर्व है। जहां सभी प्रकृति प्रदत्त उपादान का ही प्रयोग होता है। छठ व्रतियों द्वारा छठ व्रत को लेकर चाहे वह खरना के लिए गेहूं सुखाने का काम हो या फिर उन्हें तैयार करने का, दूध लाने जाना हो या फिर छठ व्रत में प्रयोग होने वाले कोई भी सामान को लेकर विशेष सूचिता का ध्यान रखा जाता है। इसमें छठ करने वाले व्रतियों के अलावा ‘सूप-डाला’ बनाने वाले लोग, फसल पैदा करने वाले किसान, फल और प्रसाद बेचने वाले दुकानदार, सबकी अपनी-अपनी भूमिका होती है। इस तरह से आम लोग कठिन तप से यह त्योहार मनाते हैं, इसलिए छठ को लोक आस्था का त्योहार कहते हैं।

इंडियन से ग्लोबल हुआ ‘छठ’

बिहार की लोक संस्कृति, सूचिता से आस्था और सूर्योपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया है। ग्लोबल हो चुका छठ बिहार से निकलकर देश के विभिन्न राज्यों से होते हुए दुनिया के 25 से भी अधिक देशों में पहुंच गया है। भारत सहित नेपाल, मलेशिया, अमेरिका, ब्रिटेन, बोस्टन, फ्रांस से लेकर ऑस्ट्रेलिया के सिडनी और मेलबर्न तक इस पर्व की धूम मच गई है। प्रकृति की उपासना को आगे बढ़ाता यह पर्व पूरे देश के साथ-साथ दुनिया में अपनी सांकृतिक छाप छोड़ रहा है।