डॉ. ललित योगी की रचित पंक्तियां, जिंदगी फंसी मझधार में

जिंदगी की उधेड़बुन और जिंदगी को गहनता से सार में डॉ. ललित योगी की यह पंक्तियां ….


सार में..

जिंदगी फंसी मझधार में
दुःख आये हैं पहाड़ में
अपने बैठे हैं खार में
पराए आये हैं कार में
रिश्ते टूटे हैं अब रार में
इंसानियत लग गई धार में
बहकती जिंदगी यार में
सब कुछ परोसा बाजार में
कैसे निकलूं इनसे पार में
द्वंद हो जैसे नर-नार में
उलझा हूँ इनसे कई बार में
बस इतना कहूँ सार में
कुछ नहीं टिका संसार में….

डॉ. ललित योगी