देवउठनी एकादशी ( बूढ़ी दिवाली): आज है देवउठनी एकादशी व्रत, जानें पौराणिक कथा

आज चार नवंबर को देवउठनी एकादशी  मनाई जा रही है । कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष एकादशी को देवउठनी एकादशी, (देवोत्थान एकादशी) कहा जाता है । आज से ही भगवान हरि विष्णु 4 महीने के शयन काल को पूरा करने के बाद उठ जाते हैं, देवउठनी एकादशी के दिन के बाद मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं, इसे बूढ़ी दिवाली भी कहा जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है और उन्हें शंख, घंटी आदि बजाकर जगाया जाता है ।देवउठनी एकादशी पर गन्ने का मंडप सजाकर उसमें भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित कर के पूजन किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी के साथ तुलसी पूजा करने का भी विधान है।

रविवार और एकादशी को नहीं तोड़नी चाहिए तुलसी

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार,देवी तुलसी का विवाह एकादशी के दिन विष्णु के एक रूप शालिग्राम से हुआ था । दरअसल, देव उठानी एकादशी के दिन सभी रीति-रिवाजों के साथ दोनों की शादी हुई थी । यह भी माना जाता है कि देवी तुलसी एकादशी का व्रत रखती हैं और यदि आप इस दिन जल चढ़ाएं तो उनका  व्रत टूट जाएगा । ऐसे में पौधा भी सूखने लगता है । एकादशी के दिन भी तुलसी के पत्तों को तोड़ने से बचें ।

जानें ये पौराणिक कथा

मन की शुद्धता के साथ सफल होता है व्रत

एक नगर में सभी लोग एकादशी व्रत का किया करते थे । और इसी दिन  नगर के किसी भी व्यक्ति या पशु पक्षी को अन्न का एक दाना भी नहीं दिया जाता था । एक समय ऐसा हुआ कि किसी दूसरी जगह का व्यक्ति राजा के दरबार में पहुंचा और नौकरी देने की प्रार्थना करने लगा ।  तब राजा ने कहा कि नौकरी तो ठीक है, लेकिन शर्त यह है कि माह में दो दिन एकादशी व्रत के दिन अन्न नहीं मिलेगा ।  राजा ने नौकरी की यह शर्त बताई । उस व्यक्ति ने नौकरी के लिए राजा की शर्त मान ली ।  अगले माह एकादशी का व्रत था ।  उस दिन उसे अन्न नहीं मिला । उसे फलाहार की सामग्री दी गई । वह राजदरबार में पहुंचा और राजा से कहने लगा कि फलाहार से उसका पेट नहीं भरेगा ।  उसे अन्न चाहिए । यदि अन्न नहीं खाएगा तो उसके प्राण निकल जाएंगे ।  वह राजा के सामने गिड़गिड़ाने  लगा । राजा ने उस व्यक्ति को नौकरी की शर्त याद दिलाई । फिर भी वह राजा से अन्न की मांग करता रहा । उसकी स्थिति को देखकर राजा ने उसे अन्न देने का आदेश दे दिया । उसे आटा, चावल और दाल मिल गया । वह नदी के तट पर पहुंचा और सबसे पहले स्नान किया । फिर भोजन तैयार करने लगा । जब खाना बन गया तो उसने भगवान से प्रार्थना की कि भोजन तैयार है, आप भोजन ग्रहण करें ।उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु अपने चतुर्भुज स्वरूप में पीले वस्त्र धारण किए प्रकट हुए । उसने प्रभु के लिए भोजन परोसा । भगवान विष्णु अपने उस भक्त के साथ भोजन करने लगे । भोजन के बाद भगवान अपने लोक वापस और वह व्यक्ति अपने काम पर चला गया । जब अगली एकादशी आई तो उसने राजा से कहा कि उसे दोगुना अन्न दिया जाए । पहली एकादशी पर वह भूखा ही रहा क्योंकि उस दिन साथ में भगवान ने भी भोजन किया ।  उतने अन्न में दोनों भोजन ठीक से नहीं कर पाते हैं ।उसकी बात सुनकर राजा को आश्चर्य हुआ । राजा ने कहा कि तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं है कि तुम्हारे साथ भगवान भोजन करते हैं   वह तो सभी एकादशी व्रत करता है, पूजा पाठ करता है, लेकिन आज तक भगवान ने उसे दर्शन नहीं दिए । इस पर नौकर ने राजा से कहा कि आपको विश्वास न हो तो आप साथ में चलकर स्वयं ही देख लें.एल । एकादशी के दिन राजा एक पेड़ के पीछे छिप गया ।  नौकर ने हमेशा की तरह नदी में स्नान किया और भोजन तैयार कर दिया । उसने कहा कि भगवान भोजन तैयार है, आप भोजन ग्रहण करें ।  इस बार भगवान नहीं आए । उसने कई बार पुकारने के बाद भी भगवान नहीं आए ।तब उसने कहा कि ​यदि आप नहीं आए तो वह​ इस नदी में कूदकर जान दे देगा । उसने फिर भगवान को पुकारा, लेकिन भगवान नहीं आए तो वह​ नदी में कूदने के लिए आगे बढ़ा ।  तभी भगवान प्रकट हो गए और उसे रोक लिया भगवान ने  उसके साथ बैठकर भोजन किया उसके बाद उसे अपने विमान में बैठा लिया और अपने साथ अपने धाम लेकर चले गए ।  यह देखकर राजा को ज्ञान हुआ कि मन की शुद्धता के साथ ही व्रत और उपवास का फल मिलता है । उसके बाद से राजा भी पवित्र मन से व्रत और उपवास करने लगा और उसे भी स्वर्ग की प्राप्ति हुई ।

जानें तिथि


एकादशी तिथि 03 नवंबर को शाम 07 बजकर 30 मिनट से शुरू हो गई है , जो कि 04 नवंबर को शाम 06 बजकर 08 मिनट पर समाप्त होगी। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि 05 नवंबर को शाम 06 बजकर 08 मिनट से आरंभ होगी जो कि 06 नवंबर को शाम 05 बजकर 06 मिनट पर समाप्त हो जाएगी।