भारत ने पाकिस्तान सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस जारी किया

भारत ने पाकिस्तान की हठधर्मिता की वजह से सितंबर 1960 की सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस जारी किया है। सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तान की गलत कार्रवाइयों ने सिंधु जल संधि के प्रावधानों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। इस वजह से केंद्र को संशोधन के लिए उचित नोटिस जारी करने पर विवश होना पड़ा। इस लेख में हम किशनगंगा और रातले परियोजना, सिंधु जल संधि पर एक नजर डालेंगे।

क्यों है चर्चा में

भारत ने कहा है कि वह पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को अक्षरश: लागू करने का दृढ़ समर्थक और जिम्मेदार साझेदार रहा है। पारस्परिक और सहमत तरीके से आगे बढ़ने के लिए भारत के बार-बार प्रयास करने के बावजूद, पाकिस्तान ने 2017 से 2022 तक स्थायी सिंधु आयोग की पांच बैठकों के दौरान इस मुद्दे पर चर्चा करने से इनकार कर दिया। इस वजह से पाकिस्तान को नोटिस जारी किया गया है। भारत ने पाकिस्तान से संधि का भौतिक उल्लंघन सुधारने के लिए 90 दिनों के भीतर अंतर- सरकारी वार्ता में भाग लेने का आह्वान किया है।

पाकिस्तान ने किया जल संधि का उल्लंघन

भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों के बीच कई साल चली वार्ता के बाद सिंधु जल समझौता हुआ था। तब ये उम्मीद जागी थी कि ये समझौता दोनों देशों के किसानों के लिए खुशहाली लाएगा और शांति, सुरक्षा और दोस्ती की वजह बनेगा। साल 2015 में पाकिस्तान ने भारतीय किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं पर तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिए तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति करने का आग्रह किया था। साल 2016 में पाकिस्तान इस आग्रह से एकतरफा ढंग से पीछे हट गया और इन आपत्तियों को मध्यस्थता अदालत में ले जाने का प्रस्ताव किया। पाकिस्तान ने संधि के अनुच्छेद 9 का उल्लंघन किया है। भारत ने इस मामले को तटस्थ विशेषज्ञ को भेजने का अलग से आग्रह किया था।

किशनगंगा और रतले परियोजना विवाद

किशनगंगा जलविद्युत परियोजना किशनगंगा नदी और रातले जलविद्युत परियोजना किश्तवाड़ जिले में चिनाब नदी पर बनाई जा रही रन ऑफ द रिवर नदी परियोजना है। किशनगंगा झेलम नदी की एक सहायक नदी है। रन ऑफ द रिवर नदी परियोजना के संचालन में, जल भंडारण के उद्देश्यों के लिए जलाशयों का निर्माण नहीं किया जाता है और ऊंचाई से पानी के प्राकृतिक प्रवाह का उपयोग बिजली उत्पादन के लिए सूक्ष्म टर्बाइनों को चलाने के लिए किया जाता है। भारत के अनुसार ऐसी पनबिजली परियोजनाएं सिंधु जल संधि का उल्लंघन नहीं करती हैं क्योंकि इसमें कोई जल भंडारण नहीं होता है। लेकिन पाकिस्तान ने इन परियोजनाओं पर आपत्ति जताई थी। पाकिस्तान का तर्क है कि परियोजना के दोषपूर्ण डिजाइन के कारण पाकिस्तान में प्रवेश करने वाली नदी का प्रवाह प्रभावित हुआ है। 2017 में विश्व बैंक ने भारत को परियोजना को शुरू करने की अनुमति दे दी।

जानें क्या है सिंधु जल संधि

भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों के बीच नौ सालों की बातचीत के बाद दोनों देशों के बीच वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में सिंधु-जल संधि 19 सितंबर 1960 में हुई थी। इसमें विश्व बैंक भी एक हस्ताक्षरकर्ता (सिग्नेटरी) है। इस संधि के तहत पश्चिमी नदियों यानी झेलम, सिंध और चिनाब का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया है। इन नदियों के अस्सी फ़ीसदी पानी पर पाकिस्तान का हक है। भारत को इन नदियों के बहते हुए पानी से बिजली बनाने का हक है लेकिन पानी को रोकने या नदियों की धारा में बदलाव करने का हक नहीं है। वहीं पूर्वी नदियों यानी रावी, सतलुज और ब्यास का नियंत्रण भारत के हाथ में दिया गया है। भारत को इन नदियों पर प्रोजेक्ट वगैरह बनाने का हक हासिल है, जिन पर पाकिस्तान विरोध नहीं कर सकता है।

सिंधु जल आयोग और जल आयुक्त

भारत तथा पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि के अंतर्गत दोनों पक्षकार एक-एक आयुक्‍त नियुक्त करते हैं और वे दोनों साथ मिलकर एक स्थायी जल आयोग गठित करते हैं जो इस संधि के कार्यान्‍वयन के लिये सहयोगी व्यवस्था स्थापित करने तथा उसे बनाए रखने के लिये उत्तरदायी है। सिंधु जल संधि, 1960 के अनुच्छेद 8 (5) के अंतर्गत स्थायी सिंधु आयोग की बैठक बारी-बारी से एक बार भारत और एक बार पाकिस्तान में आयोजित की जाती है। इन बैठकों में सरकारों के प्रतिनिधियों के अलावा इंजीनियर और तकनीकी विशेषज्ञ भी शामिल होते हैं। ये बैठकें काफी अहम होती हैं। इन बैठकों में वे बाढ़ के आकड़ें , परियोजना विवरण, जल प्रवाह और वर्षा की स्थिति जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा करते हैं।