कल से खरमास की शुरुवात, नहीं होंगे मांगलिक कार्य, जानें ये पौराणिक कथा

सनातन धर्म में मांगलिक कार्यों के शुभ मुहूर्त का विशेष ध्यान दिया जाता है । इस बीच खरमास लगते ही शादी-विवाह समेत मांगलिक कार्यों में विराम लग जाएगा । क्योंकि सोलह दिसंबर को सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करते ही खरमास या मलमास का महीना लग जाएगा ।

कब लगता है खरमास?

हिंदू धर्म के अनुसार गुरु देव बृहस्पति की दो राशियां धनु और मीन में जब-जब सूर्य प्रवेश करता है, तब खरमास या मलमास लगता है। ऐसी मान्यताएं है कि सूर्य जब धनु राशि में प्रवेश करते हैं तो उनकी गति धीमी जाती है। चूंकि सूर्य हमारे जीवन को बहुत ज्यादा प्रभावित करता है। इस समय में सूर्य देव का प्रभाव कम होता है, इसलिए शुभ कार्य नहीं करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पूरे एक वर्ष में दो बार ऐसा मौका आता है, जब खरमास लगता है। एक खरमास मध्य मार्च से मध्य अप्रैल के बीच और दूसरा खरमास मध्य दिसंबर से मध्य जनवरी तक होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, एक वर्ष में कुल 12 संक्रांतियां होती हैं। सूर्य जब धनु और मीन में प्रवेश करते हैं, तो इन्हें धनु संक्रांति और मीन संक्रांति कहा जाता है। सूर्य जब धनु व मीन राशि में रहते हैं, तो इस अवधि को मलमास या खरमास कहा जाता है।

ये कार्य हैं माने जाते हैं  वर्जित

मान्यता है कि खरमास में मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं ।जब सूर्य देव बृहस्पति राशि में प्रवेश करते हैं तो उनका बल कमजोर हो जाता है ।  इस कारण से इस समय कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है ।  इस दौरान मुंडन, छेदन, गृह प्रवेश, शादी विवाह जैसे कार्य वर्जित माने जाते हैं । ये भी मान्यता है कि खरमास के दौरान किसी भी नए कार्य, व्यापार की शुरुआत नहीं करनी चाहिए। इससे व्यक्ति को सफलता नहीं मिलती है और धन हानि का भी सामना करना पड़ सकता है। खरमास के दौरान निर्माण कार्य भी शुरू नहीं करना चाहिए। इस मास में बनाए गए घर में रहने से व्यक्ति को कभी भी सुख-समृद्धि नहीं मिलती है। खरमास के दौरान कोई नई चीज जैसे वाहन, घर, प्लाट, आभूषण आदि बिल्कुल नहीं खरीदना चाहिए। इससे बुरा असर पड़ता है। इस महीने में तामसिक भोजन जैसे-लहसुन-प्याज, नॉनवेज और शराब का सेवन नहीं करना चाहिए। इस पूरे महीने शाकाहारी भोजन ही करें।

जानें ये पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान सूर्य 7 घोड़ों के रथ में सवार होकर पूरे ब्राह्मण की परिक्रमा करते हैं। इस बीच  वह लगातार गतिमान रहते हैं। लेकिन एक बार घोड़े एक बार काफी थक गए थे और उन्हें काफी भूख और प्यास लगी। भगवान सूर्य ने घोड़े की दयनीय हालत देखी, तो वह द्रवित हो उठे । इस बीच वह रास्ते में ही वह घोड़ों को एक तालाब के किनारे ले गए। लेकिन उन्हें इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं रहा कि घोड़ों के रुकते ही पूरे ब्रह्मांड में हाहाकार मच जाएगा। जब घोड़े पानी पीने लगते है तो पूरा संसार ठहर सा जाता है और कई प्रकार की मुश्किलें सामने आने लगती है। ऐसे में उन्होंने देखा कि तालाब के किनारे दो खर यानी गधे खड़े हुए है। उन्होंने तुरंत ही गधों को रथ से जोड़कर खींचना शुरू कर दिया। लेकिन गधों की गति काफी कम थी। धीमी गति के कारण जैसे तैसे पूरे एक मास में एक चक्कर पूरा कर लेते  है। इसके बाद सूर्यदेव दोबारा घोड़ों को जोड़कर दुबारा तेज गति से ब्रह्मांड घूमने लगते हैं। गधों के द्वारा खींचे गए रथ में पूरे एक मास लग जाते हैं । यही कारण है कि इसे खरमास कहा जाने लगा ।