आज विश्व ब्रेल दिवस मनाया जा रहा है। यह दिवस ब्रेल के महत्व को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। ब्रेल लिपि पूर्ण दृष्टि बाधित और आंशिक रूप से दृष्टि बाधित लोगों के मानवाधिकारों की पूर्ण अनुभूति से संपर्क का माध्यम है।
फ्रांसीसी शिक्षा विशारद लूईस ब्रेल की जयंती के स्मरण में मनाया जाता है यह दिवस
यह दिवस फ्रांसीसी शिक्षा विशारद लूईस ब्रेल की जयंती के स्मरण में मनाया जाता है। लूईस ब्रेल ने 1809 में ब्रेल लिपि का अविष्कार किया था। राष्ट्रीय दृष्टि बाधित संघ आज नई दिल्ली में इस अवसर पर एक कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। आकाशवाणी समाचार से बातचीत में इस संघ के महासचिव एस के रुंगटा ने दृष्टि बाधित लोगों के जीवन में इस दिन के महत्व को लेकर जानकारी दी। उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी विकास के बावजूद ब्रेल का कोई विकल्प नहीं है ।
विश्व ब्रेल दिवस का इतिहास
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 6 नवंबर 2018 को एक प्रस्ताव पारित किया गया था, जिसमें हर साल 4 जनवरी को ब्रेल लिपि के जनक लुई ब्रेल के जन्मदिन को ‘विश्व ब्रेल दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया था। जिसके बाद 4 जनवरी 2019 को पहली बार विश्व ब्रेल दिवस मनाया गया। संयुक्त राष्ट्र के विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में तकरीबन 39 मिलियन लोग नेत्रहीन हैं, तो वहीं करीब 253 मिलियन लोगों किसी न किसी तरह की आंखों से जुड़ी समस्या से जूझ रहे हैं। ऐसे लोगों के लिए ब्रेल लिपि बहुत ही मददगार है। जानें कौन थे लुईस ब्रेल ?
15 साल की उम्र में ब्रेल लिपि का आविष्कार किया
ब्रेल लिपि के जनक लुइस ब्रेल 4 जनवरी 1809 को फ्रांस के कुप्रे में पैदा हुए थे। बचपन में हुए एक हादसे के चलते लुइस ब्रेल के आंखों की रोशनी चली गई थी। दरअसल उनकी एक आंख में चाकू लग गया था। सही समय पर इलाज न मिल पाने के कारण धीरे-धीरे उनकी दूसरे आंख भी पूरी तरह से खराब हो गई। जिसके बाद लुइस ब्रेल ने बहुत सारी परेशानियों का सामना किया। लेकिन कभी इनसे हार नहीं मानी और अपने जैसे लोगों की परेशानी को समझते हुए महज 15 साल की उम्र में ब्रेल लिपि का आविष्कार किया, जो आज दृष्टिहीन लोगों के लिए बहुत बड़ा वरदान साबित हुआ ।