अल्मोड़ा: जिला अस्पताल में जटिल रोगों का भी हो रहा उपचार, कॉल ऑरल साइनस का हुआ इलाज

जिला अस्पताल अल्मोड़ा में पूजा 30 वर्षीय महिला, अल्मोड़ा निवासी जन्म से ही कान के पीछे के पीछे के छिद्र से पानी, तार जैसा लसलसा द्रव एवं संक्रमण हो जाने पर मवाद आने की समस्या से कई वर्षों से परेशान थी एवं बचपन से लेकर अभी तक मवाद के इलाज हेतु कई बार चिकित्सकों से चीरा भी लगवा चुकी थी। साथ ही साथ इसके इलाज हेतु वह दिल्ली तक की दौड़ लगा चुकी थी इस समस्या के साथ- साथ उसे कान के पर्दे में भी छेद होने की समस्या थी, एवं कान के पर्दे के छेद से भी तार जैसा पदार्थ भी आता था ।पूजा जिला चिकित्सालय के कान, नाक एवं गला रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अंकुर गुप्ता के पास पहुंची जहाँ समस्त जांचों के उपरांत मरीज पूजा में कॉल ऑरल साइनस विसंगति जो की एक दुर्लभतम जन्मजात विक्षति है, का होने का पता चला,जिसको की दिनांक 03/01/2023 को शल्य चिकित्सा द्वारा जिला अस्पताल अल्मोड़ा के कान, नाक एवं गला रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अंकुर गुप्ता द्वारा सफलतापूर्वक निकाला गया साथ ही साथ उसके कान के पर्दे के छेद का भी इलाज या पर्दा लगाकर किया गया।

ऑपरेशन में लोग रहे शामिल

इस ऑपरेशन में  नर्स प्रियंका, नर्स नेहा, नर्स रितु, नर्स रेखा ओ.टी. टेक्निशयन गणेश ओ.टी बॉय धर्मेन्द्र एवं सफाई कर्मचारी राजेश ने सहयोग दिया। जिला अस्पताल की प्रभारी प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर कुसुम लता ने भी इस ऑपरेशन के संबंध में अत्यंत हर्ष व्यक्त किया एवं डॉक्टर अंकुर गुप्ता को इस दुर्लभतम विसंगति के सफलतापूर्वक ऑपरेशन करने के संबंध में शुभकामनाएँ भी दी ।

जन्मजात विसगंतियों में ब्रोन्कियल क्लेफ्ट की विसंगतियों द्वितीय स्थान पर आती है

बच्चों में होने वाली सिर और गले की जन्मजात विसगंतियों में ब्रोन्कियल क्लेफ्ट की विसंगतियों द्वितीय स्थान पर आती है, इसमें भी फर्स्ट बोन्कियल क्लेफ्ट की विसंगतियों का मिलने का प्रतिशत 5 से भी कम होता है और इसमें भी कॉल ऑरल साइनस दुर्लभतम रूप से देखने को मिलता है।यह मरीज में जन्मजात होता है। इसमें मरीज के कान के पीछे की तरफ एक छिद्र सा होता है, जिसमें से तार के जैसा तरल सा सफेद लसलसा द्रव या संक्रमण हो जाने की स्थिति में मवाद आने की समस्या होती है। कुछ स्थितियों में मरीचा के कान के परदे या कान के अंदर की त्वचा में भी छिद्र पाया जाता है।इसके इलाज में मरीज़ जब भी किसी चिकित्सक के पास जाते हैं जो कई बार अधिकतर चिकित्सक बार-बार चीरा लगाकर मवाद निकाल देते हैं, परंतु उसके पश्चात भी किसी भी तरह का आपेक्षित सुधार नहीं होने पाता है।