सोबन सिंह जीना विश्विद्यालय अल्मोड़ा एवम धरोहर न्यास हरिद्वार के संयुक्त तत्वाधान में दैशिक शास्त्र पुनरावलोकन शताब्दी विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया ।
व्यापक व्यवहारिक जागरुकता के लिए इस स्थान का राष्ट्रीय स्तर पर विशेष योगदान रहेगा
जिसमें मुख्य अशोक बेरी द्वारा अपने व्याख्यान में स्पष्ट किया कि दैशिक शास्त्र सोमवारी महाराज की ध्यान काकड़ीघाट में वर्ष 1921 में बद्री शाह ठुलघरीया द्वारा लिखा गया । जिसकी पाण्डुलिपि उनके द्वारा लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को संपादकीय तैयार करने के लिए पूना भेजा गया था लेकिन उनकी मृत्यु हो जाने के कारण उसका प्रकाशन स्मारक ग्रन्थ के रूप में चित्रशाला प्रेस पूना द्वारा किया गया, भारत निर्माण में विश्व स्तर पर भारतीय स्नातक व्यवस्था के लिए वर्तमान में इस ग्रन्थ को मार्गदर्शक बताया, हिमालयी धरोहर न्यास के अध्यक्ष सुरेश सुयाल द्वारा यह बात स्पष्ट की गयी कि उक्त स्थल काकड़ीघाट सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के अध्ययन क्षेत्र के अन्तर्गत है, इस विषय पर व्यापक व्यवहारिक जागरुकता के लिए इस स्थान का राष्ट्रीय स्तर पर विशेष योगदान रहेगा ।
युवाओं को अपने इतिहास एवं वर्तमान संस्कृति के मध्य तारतम्य पर व्याख्यान दिया
बैठक कार्यशाला की अध्यक्षता प्रो. जी. एम. नयाल, संचालन संयोजक प्रो. एच. सी. जोशी एवं डॉ. सी. पी. फुलोरिया द्वारा किया गया । कार्यशाला के मुख्य अतिथि पद्म श्री डॉ. ललित पाण्डे द्वारा दैौशिक शक्ति को मानव जीवन की समस्त विधाओं का केन्द्र बिन्दु बताया, परिसर के अधिष्ठाता प्रशासन प्रो. पी. एस. बिष्ट द्वारा झोल उड़ाकर मुख्य वक्ता एवम मुख्य अथिति का स्वागत किया, उत्तराखण्ड आंदोलनकारी मोहन पाठक द्वारा युवाओं को अपने इतिहास एवं वर्तमान संस्कृति के मध्य तारतम्य पर व्याख्यान दिया ।
कार्यक्रम में मौजूद रहे
मुख्य अतिथि इसके अतिरिक्त मुख्य वक्ताओं में प्रो. वी.डी.एस. नेगी, प्रो. नारायण दत्त कांडपाल, प्रो. सोनू द्विवेदी, प्रो. इला आदि मुख्य थे, कार्यशाला में परिसर के सभी विभागों के अध्यापक गण डां. भुवन चन्द्रा, डॉ. खेता चनियाल, डा. विजय बल्लभ, डा. मौर्या, डां.विजेता सत्याल, डॉ. आरती, डॉ. गोकुल, डॉ. राजेश कुमार, डॉ.अंशुल आदि दर्जनों लगभग प्राध्यापक एवम शोध छात्र उपस्थित रहे। इस प्रकार की कार्यशालाओं का क्रमबद्ध तरीके से आयोजन किए जाने का कार्यशाला में निर्णय लिया गया ।कार्यशाला के अंत में कार्यशाला के सह संयोजक प्रो. एन. डी कांडपाल द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया ।