आज से शुरू हो रही हैं माघ गुप्त नवरात्री, जानिए-अल्मोड़ा जिले की नौ देवियों के बारे में:

हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ माह की गुप्त नवरात्रि 2 फरवरी से प्रारंभ हो रही है। इस बार नवरात्रि पूरे नौ दिन की रहेगी, हालांकि द्वितीय तिथि का क्षय रहेगा और अष्टमी तिथि 2 दिन रहेगी।

गुप्त नवरात्रि का महत्व:

देवी को प्रसन्न करने, उनकी सिद्धियां प्राप्त करने और मंत्रों को सिद्ध करने के लिए गुप्त नवरात्रि सर्वाधिक महत्व रखती है।

शास्त्रों के अनुसार माघी नवरात्रि (गुप्त नवरात्रि) के दौरान भी चैत्र व शारदीय नवरात्रि की तरह ही घट स्थापना की जाती है।

शुभ मुहूर्त व विधि

घट स्थापना का शुभ मुहूर्त प्रातः काल 7:09 मिनट से प्रातः 8:31 मिनट तक है। इस दौरान कलश स्थापना कर पूजा कर सकते हैं।

ऐसी मान्यता है कि हिन्दू सनातन धर्म में वर्ष में चार बार नवरात्रि का आगमन होता है। जिनमें 2 प्रकट नवरात्रि (चैत्र व अश्विन माह) में तथा 2 गुप्त नवरात्रि ( माघ व आषाढ़ माह) में प्रारंभ होती हैं। गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्या देवियों तारा, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, काली, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रुमावती, माता बगलामुखी, माता मातंगी, कमला देवी की गुप्त तरीके से पूजा उपासना की जाती है।

अल्मोड़ा जिले की नौ देवियां:

धर्म जागरण समन्वय विभाग के सांस्कृतिक विभाग संयोजक “राजेश चंद्र जोशी शास्त्री जी” के अनुसार अल्मोड़ा शहर नवदुर्गा से आच्छादित है। नौ शक्तियां अल्मोड़ा शहर के प्रत्येक कोनों में विराजमान है। मां भगवती की विशेष अनुकंपा इस अल्मोड़ा शहर को प्राप्त है। इसके अलावा अल्मोड़ा जिले में भी नौ शिखरों में नौ देवियों का वास है।

1.बानड़ी देवी: बानड़ी देवी मंदिर अल्मोड़ा शहर से लगभग 25 किमी. की दूरी पर एक शिखर पर स्थित है। बानड़ी का अर्थ होता है – बांटने वाली अर्थात हर किसी को जो भी प्रसाद प्राप्त हो वह प्रसाद हमेशा बांट कर खाना चाहिए या बांट कर रखना चाहिए। उसी प्रकार बांटने वाली देवी जो बराबर रूप में धन, जन, अन्न बांटकर देती है, उसे बानड़ी देवी कहते हैं।

चंद वंशीय राजाओं की कुल देवी:

बानड़ी देवी का एक रूप विंध्यवासिनी यां वृंदा वासिनी जो प्राचीन समय में शिखर के चारों ओर तुलसी का वन हुआ करता था, इसके बीच में चंद वंशीय राजाओं की कुलदेवी बाराही देवी का विसर्जन करना भूल गए जिस कारण भगवती बानड़ी देवी रूप में यहां स्थापित हो गई ।

2. कसार देवी: कसार देवी अल्मोड़ा शहर के पास कसार नामक जगह पर 8 किमी. दूरी पर एक कश्यप पर्वत पर स्थित है। कसार देवी (काशंबरी देवी) जिसका अनेक प्रकार से पुराणों में भी वर्णन आता है।

कसार देवी मंदिर में मां दुर्गा का है वास:

कसारदेवी मंदिर दूसरी शताब्दी का है। कसार देवी मंदिर में दुर्गा साक्षात प्रकट हुई थी। मां दुर्गा के 8 रूपों में एक रूप देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है।

नासा के वैज्ञानिकों द्वारा की जा रही है जांच:

कहा जाता है कि यहां सच में शक्तियां मौजूद है। जिस कारण नासा के वैज्ञानिक यहां के बारे में कई तरह के शोध कर चुके हैं। इस जगह को अद्वितीय व चुंबकीय शक्ति का केंद्र माना जाता है। यहां मानसिक शांति का अनुभव किया जाता है। देवभूमि का यह पवित्र स्थान भारत का एकमात्र और दुनिया का तीसरा ऐसा स्थान है जहां खास चुंबकीय शक्तियां मौजूद है।

3. स्याही देवी मंदिर: मां स्याही देवी मंदिर से लगभग 35 किमी. की दूरी पर एक शिखर पर स्थित है। मां स्याही देवी का वास्तविक नाम शाही देवी अर्थात् कुलानुगत राजाओं की परंपरा से उनकी कुल की देवी स्याही देवी के रूप में यह विख्यात है।

कत्यूर वंश की कुल देवी कही गई है स्याही देवी:

स्याही देवी प्रामा भगवती कत्यूर वंशीय राजाओं की कुलदेवी कही गई है।
कहा जाता है कि प्राचीन समय में 9 लाख कत्यूर एक साथ चलते थे। जहां एक रात्रि में रुकते थे वहां कुछ ना कुछ नया निर्माण कर देते थे, कहीं तलाब, कुंआ, मंदिर ऐसे ही मां स्याही देवी का निर्माण हुआ।

4. विमलकोट मंदिर: यह अल्मोड़ा जिले के धौलछीना क्षेत्र से लगभग 3 किलोमीटर एक शिखर पर मां भगवती विमला देवी के रूप में विराजमान है।

न्याय की देवी कही गई है विमला देवी:

विमला देवी जिसको न्याय की देवी कहा जाता है। मान्यता है कि प्राचीन समय में जब राजाओं महाराजाओं के यहां जनता का कोई भी प्रश्नोचित न्याय नहीं होता था। तब जनता विमला देवी के दरबार में विमलकोट जाती थी और मां भगवती से न्याय की गुहार लगाती थी तो उन्हें तुरंत न्याय मिल जाता था।

5. दूनागिरी: अल्मोड़ा जिले से 80 किमी.की दूरी पर द्वाराहाट नामक नगर में हनुमान जी जब लक्ष्मण को शक्ति लगी थी तो उस समय द्रोणाचल पर्वत से संजीवनी बूटी लाने के लिए निमित्त गए तो हनुमान जी द्रोणाचल पर्वत को ही उठा लाए। जिसका एक भाग टूट कर यहां रानीखेत तहसील के पास द्वाराहाट में स्थापित हो गया जहां पर मां भगवती दूनागिरी के रूप में विराजमान हो गई।

6. झूला देवी: झूला देवी मंदिर अल्मोड़ा शहर से लगभग 51 किमी. रानीखेत क्षेत्र में है। पवित्र मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है, और इसे झूला देवी के रूप में नामित किया गया है क्योंकि यहाँ प्रसिद्ध देवी को पालने पर बैठा देखा जाता है।

सभी की मनोकामनाएं पूर्ण होती है:

मां झूला देवी जो अनेक प्रकार से अपने भक्तों को पूर्ण रूप से आशीर्वाद देती है, और अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती है। झूला देवी मंदिर में जो भक्त जैसी कामना लेकर पहुंचता है उसकी कामना विधिवत रूप से पूर्ण हो जाती है।

7.नंदा देवी: अल्मोड़ा शहर के बीचों-बीच मां नंदा देवी का मंदिर स्थित है। मां नंदा देवी जो चंद वंशीय राजाओं की बहन के रूप में और उनके कुलदेवी के रूप में पूजी जाती है।

प्रतिवर्ष धूमधाम से मनाया जाता है मेला:

प्रत्येक वर्ष नंदा अष्टमी के दिन यहां नंदा देवी का भव्य मेला आयोजित किया जाता है। जिसमें आज भी चंद वंशीय राजा के वंशानुगत परंपरा से उनके वंशज आते हैं। विधिवत रूप से पूजन अर्चन करते हैं। मां भगवती की नंदाष्टमी के दिन पूजन इत्यादि करते हुए एक सुंदर विशाल भंडारे का आयोजन यहां पर होता है।

8. मल्लिका देवी: मल्लिका देवी अल्मोड़ा-बागेश्वर मार्ग पर ताकुला क्षेत्र में है। अल्मोड़ा से लगभग 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ताकुला से 5 किलोमीटर की दूरी पर एक पवित्र शिव मंदिर आता है, जिसको गणानाथ कहते हैं।
यहीं गणानाथ मंदिर स्वयंभू शिव जी का मंदिर है। मुख्य मंदिर से पहले विनायक गणेश व 2 किमी. ऊपर मां भगवती पार्वती का ही स्वरूप मल्लिका देवी का मंदिर है।

9.धौलादेवी: अल्मोड़ा जिले से लगभग 38 किलोमीटर दूरी पर पड़ती है धुर्कादेवी। जिसको आज धौला देवी के नाम से जाना जाता है। देवदार के अनेक वृक्षों से आच्छादित उस देवदार वृक्षों के मध्य में मां भगवती का एक दिव्य स्वरूप विराजमान है जिसको धुर्कादेवी के नाम से लोग जानते हैं। जो कालांतर में धौलादेवी है।

भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करती है:

मां धौलादेवी भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करती है। मां के मंदिर में तीन समय में प्रातः काल, मध्यकाल और संध्या काल में आरती होती है।

अल्मोड़ा शहर के प्रमुख देवी मंदिर इस प्रकार हैं:

शीतला देवी मंदिर, डोलीडाना दुर्गा देवी मंदिर, नंदा-सुनंदा देवी मंदिर, त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, यक्षिणी देवी (जाखन देवी) मंदिर, पाताल देवी मंदिर, कसार देवी मंदिर, कालिका देवी मंदिर, उल्का देवी मंदिर।