पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने बयान में तालिबान के कब्जे का किया समर्थन

जहाँ एक ओर तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे से पूरी दुनिया चिंता में है वहीँ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने बयान में कहा है कि अफगानी लोगों ने ‘दासता की जंजीरें तोड़ दी’ हैं. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद सिद्ध हो गया है कि तालिबान की अफगानिस्तान में सत्ता पर पाकिस्तान बहुत खुश है। पाकिस्तानी अखबार द डॉन ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें इमरान खान ने कहा कि किस तरह अफगानिस्तान में विदेशी संस्कृति थोपे जाने के कारण ‘मानसिक गुलामी’ फैली हुई थी और अब तालिबान के कब्ज़ा कर लेने के बाद उनको उम्मीद है कि लोगों की मानसिकता में सुधार होगा।

अंग्रेजी माध्यम स्कूलों’ की भी आलोचना की है

इमरान खान ने शिक्षा से जुड़े एक कार्यक्रम के दौरान ‘अंग्रेजी माध्यम स्कूलों’ की भी आलोचना की है और उन्होंने इन स्कूलों को ‘दूसरे की संस्कृति’ बताया है। सुनने में यह काफी हास्यास्पद और बेतुका बयांन लगता है मगर जैसा कि वह हमेशा अपने अजीबोगरीब बयानों के लिए चर्चा में रहते हैं, उन्होंने आगे कहा- ‘जब आप दूसरे का कल्चर अपनाते हैं तो ये भरोसा करने लगते हैं कि वो आपसे ज्यादा काबिल है।’ ऐसा कहकर उन्होंने पश्चिमी कल्चर की तरफ इशारा किया है।

तालिबान का समर्थन किया है

जैसा कि सर्वविदित था कि पाकिस्तान का तालिबान को हमेशा से समर्थन रहा है, लेकिन इस बार पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने खुल कर तालिबान का समर्थन किया है और इतना ही नही, पाकिस्तान को लेकर माना जा रहा है कि वो भी तालिबान सरकार को मान्यता दे सकता है। जैसा की जगजाहिर है कि तालिबान का मुख्यालय पाकिस्तान में ही है,ऐसे में पाकिस्तान का तालिबान को समर्थन करना जाहिर सी बात है। कुछ समय पूर्व भारतीय विदेश मंत्रालय ने अफगानिस्तान में हो रही हिंसा के पीछे पाकिस्तान से मिल रहे समर्थन को जिम्मेदार ठहराया था। मंत्रालय ने कहा था, ‘दुनिया को पता है तालिबान को पाकिस्तान के जिहादियों और आतंकवादियों का समर्थन मिल रहा है। दुनिया इससे वाकिफ है और ये बताने की जरूरत नहीं।’

नौबत मौजूद हालात तक आ पहुँची

इस से पहले  खबर आई थी कि अफगानिस्तान में तालिबान और अशरफ गनी की सरकार बनने में भी पाकिस्तान ने रोड़ा अटकाया था। तालिबान और अफगान सरकार के बीच अंतरिम सरकार बनाने पर सहमति बन गई थी। सूत्र के मुताबिक अफगानिस्तान के पूर्व गृहमंत्री अली अहमद जलाली को राष्ट्रपति के तौर पर नियुक्त करने की सहमति बनी थी और उन्हें काबुल बुलाने की तैयारी की गयी थी। अफगानिस्तान की अंतरिम सरकार में जलाली के दो डिप्टी, जिसमें हाई पीस काउंसिल के सीईओ डॉ. अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह और तालिबान के नेता मुल्ला बरादर को भी नियुक्त करने पर सहमति बनी थी, लेकिन पाकिस्तान ने ऐसा नहीं होने दिया और नौबत मौजूद हालात तक आ पहुँची।