हिंदी के माथे पर बिना किसी देरी के राष्ट्रभाषा की बिंदी सजे।इसी समवेत स्वर के साथ बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन का 41 वां द्विदिवसीय सम्मेलन धूमधाम से सम्पन्न हुआ।
देश के नामचीन विद्वानों और विदुषियों को विभिन्न उपाधियों और सम्मानों से विभूषित किया
समारोह में मुख्य अतिथि अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ वेद प्रताप वैदिक तथा केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी ,दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के पूर्व कुलपति राममोहन पाठक ने देश के नामचीन विद्वानों और विदुषियों को विभिन्न उपाधियों और सम्मानों से विभूषित किया।इस अवसर पर बहुमुखी प्रतिभा की धनी हिंदी की विदुषी दिल्ली विश्व विद्यालय की वरिष्ठ प्रोफेसर माला मिश्र को ‘बच्चनदेवी विदुषी सम्मान ‘ से अलंकृत किया गया और उनकी उपब्धियों तथा गतिविधियों की भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए उन्हें सम्मान पत्र ,अंगवस्त्र तथा पुष्पगुच्छ से सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम को सुशोभित किया
इस अवसर पर बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ .अनिल सुलभ ,प्रयाग हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ सूर्यप्रसाद दीक्षित
,पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश संजय कुमार ,चाणक्य विश्वविद्यालय की कुलपति न्यायमूर्ति मृदुला मिश्र, वेद प्रताप वैदिक और अनिल शर्मा जोशी आदि की उपस्थिति ने इस कार्यक्रम को सुशोभित किया।
भारत विश्व शक्ति और विश्व गुरु बन सकता है
वेद प्रताप वैदिक ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि हिंदी के बल पर ही भारत विश्व शक्ति और विश्व गुरु बन सकता है।कार्यक्रम के अध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी ने कहा कि हिंदी को ज्ञान के साथ साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भाषा बनाना आवश्यक है।बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष अनिल सुलभ ने कहा कि हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करके ही उसका विकास हो सकता है।दिल्ली विश्वविद्यालय की वरिष्ठ प्रोफेसर माला मिश्र ने कहा हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया लेकिन उसका अनुपालन नहीं हो रहा।और देश की जातीय अस्मिता की भाषा राष्ट्रभाषा के रूप में उसका व्यवहार आद्यंत सम्पर्क भाषा के रूप में हो तो रहा है लेकिन उसे औपचारिक रूप से संविधान में राष्ट्रभाषा घोषित न करना सबसे बड़ी विडंबना है।उन्होंने कहा -बिहार की सांस्कृतिक और साहित्यिक समृद्धि वस्तुतः भारत की सुंदर और दुर्लभ विरासत का गायन है।
बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन 100 वर्षों से भी अधिक समय से हिंदी की सेवा में प्रयासरत है और अनवरत रूप से हिंदी के साहित्यकारों और सेवियों के कार्यों को चिन्हित कर सम्मानित करते हुए हिंदी का विपुल सुयश देश विदेश में फैला रहा है यही उसकी सार्थकता का सक्रिय मानदंड है।
3600 से अधिक बोलियों के साथ हिंदी विश्व पटल पर पहचान बना रही है
प्रोफेसर राममोहन पाठक ने कहा तमाम विरोधों के बावजूद हिंदी का व्यापक प्रसार हो रहा है।प्रो . सूर्यप्रसाद दीक्षित ने कहा 3600 से अधिक बोलियों के साथ हिंदी विश्व पटल पर पहचान बना रही है।
कवि सम्मेलन के अवसर पर प्रतिष्ठित कवि बुद्धिनाथ मिश्र ने सस्वर गायन कर स्वरित शब्दों में कहा – भारत की भूमि पर जन भाषा हिंदी की जय जयकार होगी।पंडित नीरव ने कहा बिहार भारत के सम्मान का पोषक है।कार्यक्रम का समापन सम्मेलन के प्रधानमंत्री डॉ .शिववंश पांडे के उद्बोधन से हुआ।बिहार के यशस्वी हिंदी साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु की साहित्यिक कृतियों के व्याज से उनके साहित्यिक अवदान पर भी गंभीर चर्चा ने इस कार्यक्रम को एक नया सन्दर्भ और नूतन पहचान दी।
डॉ ललित जोशी
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग,
सोबन सिंह जीना परिसर,अल्मोड़ा