भारत रत्न पंडित गोविन्द वल्लभ पंत की जयंती आज, जिन्होंने आजादी की लड़ाई के साथ-साथ, हिंदी को भी सम्मान दिलाने की लड़ी जंग

आज 10 सितंबर है। आज भारत रत्न पंडित गोविंद वल्लभ पंत की जयंती है। पंडित गोविंद बल्‍लभ पंत आजादी के एक ऐसे नायक थे, जिन्होंने बिना किसी शोर-शराबे के अपना काम पूरा किया। गोविंद बल्‍लभ पंत ने ना सिर्फ आजादी की लड़ाई लड़ी बल्कि हिंदी को भी सम्मान दिलाने का काम किया। भारत रत्न से सम्मानित गोविंद बल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे और भारत के चौथे गृह मंत्री थे। गोविंद बल्‍लभ पंत को 1957 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। गृहमंत्री के तौर पर गोविंद बल्‍लभ पंत ने हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने का काम किया था। उन्होंने भारत के राज्यों को भाषा में विभक्त करने का भी काम किया था।

अनंत चतुर्दशी के दिन हुआ था जन्म

भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत का जन्मदिन यूं तो 10 सितंबर को मनाया जाता है लेकिन वह पैदा हुए थे 30 अगस्त 1887 को अनंत चतुर्दशी के दिन। 1946 में जब वह मुख्यमंत्री बने, उस दिन अनंत चतुर्दशी थी और तारीख थी 10 सितंबर। इसके बाद उन्होंने हर वर्ष 10 सितंबर को ही अपना जन्मदिन मनाना शुरू कर दिया।

1904 में अल्मोड़ा छोड़ कर इलाहाबाद चले गए थे गोविंद वल्लभ पंत

गोविंद वल्लभ पंत का जन्म 10 सितंबर 1857 को अल्मोड़ा के खूंट नामक गांव में मराठी करहड़े ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम मनोरथ पंत था, जो एक सरकारी अधिकारी होने के कारण लगातार जगह बदलते रहते थे। उनकी माता का नाम गोविंदी बाई था। उनका पालन-पोषण उनकी मौसी धनी देवी ने किया। उनकी शिक्षा 10 वर्ष की आयु तक घर पर ही हुई। बचपन में ही गोविंद के पिता की मौत हो गई थी। उसके बाद कारण उनकी परवरिश उनके नाना ने की है। 1904 में गोविंद बल्‍लभ पंत अल्मोड़ा छोड़ कर इलाहाबाद चले गए थे।

संगीत में भी रखते थे रुचि

गोविंद वल्लभ पंत बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह प्रतिदिन संगीत का भी अभ्यास करते थे। विहाग और भीमपलासी रागों को वह स्वर से गाते थे। वाद विवाद प्रतियोगिता में भी उत्साह के साथ हिस्सा लेते थे। एक वाद विवाद प्रतियोगिता में ब्रिटिश शासन काल में भारत का आॢथक पतन विषय पर उनके विचार सुनकर लॉ कॉलेज के प्रिंसिपल सोराब जी ने कहा, यह बालक आगे चलकर भारत की महत्वपूर्ण हस्तियों में शुमार होगा। सोराब जी की अपेक्षा के अनुरूप ही पंत जी ने एलएलबी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और लैम्सडेन स्वर्ण पदक प्राप्त किया।

इलाहाबाद शिक्षा के दौरान महापुरुषों का मिला सान्निध्य

भारत की स्वतंत्रता के आंदोलन में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और वल्लभ भाई पटेल के साथ गोविंद वल्लभ पंत एक प्रमुख व्यक्ति थे। उन्होंने अपने वकालत की शुरुआत अपने गृहक्षेत्र से की थी। काकोरी मुकदमे में एक वकील के तौर पर उन्हें पहचान और प्रतिष्ठा मिलीं। जब वे 12 वर्ष के थे और सातवीं में पढ़ रहे थे तभी उनका विवाह ‘गंगा देवी’ हुआ। 23 वर्ष की उम्र में गोविंद वल्लभ के पहले पुत्र और कुछ समय बाद उनकी पत्नी गंगा देवी की मृत्यु हो गई। परिवार के दबाव के चलते उन्होंने दूसरा विवाह किया, लेकिन दूसरी पत्नी से एक पुत्र प्राप्ति और बीमारी के चलते उस पुत्र की मृत्यु और उनकी दूसरी पत्नी का भी निधन हो गया। 30 वर्ष की उम्र में उनका तीसरा विवाह ‘कला देवी’ से हुआ था। उन्होंने रामजे कॉलेज और बाद में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से गणित, राजनीति और अंग्रेजी साहित्य में बी.ए. किया। आगे चलकर उन्होंने वकालत की शिक्षा ली लेकर कानून की परीक्षा में विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम आने पर उन्हें ‘लम्सडैन’ स्वर्ण पदक प्रदान किया गया। गोविंद वल्लभ पंत 1946 से दिसंबर 1954 तक उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। हिन्दी को राजकीय भाषा का दर्जा दिलाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। इलाहाबाद शिक्षा के दौरान उन्हें महापुरुषों का सान्निध्य मिला, गोविंद वल्लभ पंत जी ने अपनी पारदर्शी कार्यशैली से देश के राजनेताओं का ध्यान आकर्षित किया। सन् 1921, 1930, 1932 और 1934 के स्वतंत्रता संग्रामों में उन्होंने हिस्सा लिया और लगभग 7 वर्ष जेल में रहे। 7 मार्च 1961 को 73 वर्ष की आयु में गोविंद वल्लभ पंत का हृदयाघात से निधन हो गया।

📌📌पंडित गोविंद बल्लभ पंत से जुड़े कुछ किस्से- एक मीडिया रिपोर्ट्स में उनके कुछ किस्से बताए गए हैं

✅✅1909 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत को लॉ एक्जाम में यूनिवर्सिटी में टॉप करने पर ‘लम्सडैन’ गोल्ड मेडल मिला था।

✅✅उत्तराखंड के हलद्वानी में पंडित गोविंद बल्लभ पंत नाम के ही एक नाटककार हुए। उनका ‘वरमाला’ नाटक, जो मार्कण्डेय पुराण की एक कथा पर आधारित है, फेमस हुआ करता था। मेवाड़ की पन्ना नामक धाय के त्याग के आधार पर ‘राजमुकुट’ लिखा गया। ‘अंगूर की बेटी’ शराब को लेकर लिखी गई है। दोनों के उत्तराखंड के होने और एक ही नाम होने के चलते अक्सर लोग नाटककार गोविंद बल्लभ पंत की रचनाओं को नेता पंडित गोविंद बल्लभ पंत की रचनाएं मान लेते हैं। हालांकि, नेता पंडित गोविंद बल्लभ पंत भी लिखते थे।

✅✅जाने-माने इतिहासकार डॉ. अजय रावत बताते हैं कि उनकी किताब ‘फॉरेस्ट प्रॉब्लम इन कुमाऊं’ से अंग्रेज इतने भयभीत हो गए थे कि उस पर प्रतिबंध लगा दिया था। बाद में इस किताब को 1980 में फिर प्रकाशित किया गया। पंडित गोविंद बल्लभ पंत के डर से ब्रिटिश हुकूमत काशीपुर को गोविंदगढ़ कहती थी।

✅✅पंडित गोविंद बल्लभ पंत जब वकालत करते थे तो एक दिन वह चैंबर से गिरीताल घूमने चले गए। वहां पाया कि दो लड़के आपस में स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में चर्चा कर रहे थे। यह सुन पंत ने युवकों से पूछा कि क्या यहां पर भी देश-समाज को लेकर बहस होती है। इस पर लड़कों ने कहा कि यहां नेतृत्व की जरूरत है। पंत ने उसी समय से राजनीति में आने का मन बना लिया।

✅✅एक बार पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने सरकारी बैठक की। उसमें चाय-नाश्ते का इंतजाम किया गया था। जब उसका बिल पास होने के लिए आया तो उसमें हिसाब में छह रुपये और बारह आने लिखे हुए थे। गोविंद वल्लभ ‌पंत जी ने बिल पास करने से मना कर दिया। जब उनसे इस बिल पास न करने का कारण पूछा गया तो वह बोले, ‘सरकारी बैठकों में सरकारी खर्चे से केवल चाय मंगवाने का नियम है। ऐसे में नाश्ते का बिल नाश्ता मंगवाने वाले व्यक्ति को खुद पे करना चाहिए। हां, चाय का बिल जरूर पास हो सकता है।’