आधुनिक भारत के  निर्माता राजा राममोहन राय की जयंती आज, बाल विवाह, सती प्रथा, जातिवाद सहित अनेक कुरीतियों पर लगाया था अंकुश

भारतीय पुनर्जागरण के अग्रदूत और बाल विवाह, सती प्रथा, जातिवाद सहित अनेक कुरीतियों पर अंकुश लगाने वाले सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता, ब्रह्म समाज के संस्थापक, भारतीय भाषायी प्रेस के प्रवर्तक राजा राममोहन राय की आज जयंती हैं ।

जीवन परिचय

राजा राममोहन राय का जन्म बंगाल के एक ब्राह्मण परिवार में  1772 में हुआ था ।इनके पिता का नाम रमाकांत तथा माता का नाम तारिणी देवी था ।  इन्हें 15 वर्ष की आयु तक कई भाषाओं का ज्ञान हो गया था ।  राजा राममोहन राय आधुनिक भारत के रचयिता के नाम से जाने जाते हैं। राजा राममोहन राय एक महान विद्वान और स्वतंत्र विचारक थे। मुगल शासकों ने उन्हें ‘राजा’ की उपमा दी थी। वे ब्रह्म समाज के संस्थापक थे, जो भारत का समाजवादी आंदोलन भी था।

राजा राममोहन राय मूर्तिपूजा और रूढ़िवादी हिन्दू परंपराओं के विरुद्ध थे

राजा राममोहन राय के पिता रूढ़िवादी हिन्दू ब्राह्मण थे। और राजा राममोहन राय मूर्तिपूजा और रूढ़िवादी हिन्दू परंपराओं के विरुद्ध थे। वे सभी प्रकार की सामाजिक धर्मांधता और अंधविश्वास के खिलाफ थे । जिसके चलते दोनों में मतभेद होने लगा । और राजा राममोहन राय घर छोड़कर चले गए। उन्होंने घर लौटने से पहले काफी यात्राएं कीं। वापसी के बाद उनके परिवार ने उनसे शादी के लिए अनुरोध किया पर इसका उन पर कोई असर नहीं हुआ ।  इसके बाद  वे वाराणसी चले गए और वहां उन्होंने वेदों, उपनिषदों एवं हिन्दू दर्शन का गहन अध्ययन किया। उनके पिता 1803 में गुजर गए और वे मुर्शिदाबाद लौट आए। राजा राममोहन राय ने 1809 – 1814 तक ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए कार्य किया था । वे जॉन डिग्बी के सहायक के रूप में काम करते थे। वहां वे पश्चिमी संस्कृति एवं साहित्य के संपर्क में आए। उन्होंने जैन विद्वानों से जैन धर्म का अध्ययन किया और मुस्लिम विद्वानों की मदद से सूफीवाद की शिक्षा ली । इसके बाद वे नौकरी को छोड़ राष्ट्र सेवा में लग गए । वे भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के अलावा वे दोहरी लड़ाई लड़ रहे थे। इन्होंने समाज से अंधविश्वास और कुरीतियों को झकझोरने का काम किया । बाल विवाह,सती प्रथा, जातिवाद और कर्मकांड पर्दा प्रथा जैसे तमाम कुरीतियों का भरपूर विरोध किया ।

अंधविश्वास और कुरीतियों को समाज से हटाया

 ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी छोड़कर अपने आपको राष्ट्र सेवा में झोंक दिया। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के अलावा वे दोहरी लड़ाई लड़ रहे थे। दूसरी लड़ाई उनकी अपने ही देश के नागरिकों से थी। जो अंधविश्वास और कुरीतियों में जकड़े थे। राजा राममोहन राय ने उन्हें झकझोरने का काम किया। बाल-विवाह, सती प्रथा, जातिवाद, कर्मकांड, पर्दा प्रथा आदि का उन्होंने भरपूर विरोध किया। धर्म प्रचार के क्षेत्र में अलेक्जेंडर डफ्फ ने उनकी काफी सहायता की। देवेंद्र नाथ टैगोर उनके सबसे प्रमुख अनुयायी थे। उन्होंने 1814 में आत्मीय सभा का गठन कर समाज में सामाजिक और धार्मिक सुधार शुरू करने का प्रयास किया।

स्त्री शिक्षा को दिया बढ़ावा

राजा राममोहन राय ने शिक्षा खासकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया। उन्होंने अंग्रेजी, विज्ञान, पश्चिमी चिकित्सा एवं प्रौद्योगिकी के अध्ययन पर बल दिया। वे मानते थे कि अंग्रेजी शिक्षा पारंपरिक शिक्षा प्रणाली से बेहतर है। उन्होंने 1822 में अंग्रेजी शिक्षा पर आधारित स्कूल की स्थापना की।उन्होंने महिलाओं के फिर से शादी करने, संपत्ति में हक समेत महिला अधिकारों के लिए अभियान चलाया। उन्होंने सती प्रथा और बहुविवाह का जोरदार विरोध किया।

पत्रकारिता के बारे में

राजा राममोहन राय की पत्रकारिता की बात करें तो उन्होने ब्रह्ममैनिकल मैग्ज़ीन’, संवाद कौमुदी मिरात-उल-अखबार ,(एकेश्वरवाद का उपहार) बंगदूत जैसे स्तरीय पत्रों का संपादन-प्रकाशन किया। बंगदूत एक अनोखा पत्र था। इसमें बांग्ला और फारसी भाषा का प्रयोग एक साथ किया जाता था ।

आधुनिक भारत के निर्माता राममोहन राय

नवंबर, 1830 में राजा राममोहन राय ने ब्रिटेन की यात्रा की। उनका ब्रिस्टल के समीप स्टाप्लेटन में 27 सितंबर 1833 को निधन हो गया। राजा राममोहन राय एक महान विद्वान और स्वतंत्र विचारक थे। उन्होंने केवल सती प्रथा खत्म नहीं की बल्कि समाज में रह रहे लोगों के सोचने समझने की क्षमता को भी विकसित किया । आधुनिक भारत के निर्माता, सबसे बड़ी सामाजिक – धार्मिक सुधार आंदोलनों के संस्थापक, ब्रह्म समाज, राजा राम मोहन राय सती प्रणाली जैसी सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।