उत्तराखंड में तुर्की जैसे भूकंप से मच सकती है तबाही, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी, किया यह दावा

तुर्की में आए भूकंप से काफी तबाही मची है। हजारों की संख्या में लोगों ने अपनी जान गंवाई है। जिसके बाद अब भारत में भी इससे भयंकर भूकंप आने की आशंका जताई गई है। यह भूकंप उत्तराखंड क्षेत्र में आने की आशंका जताई है। दरअसल बीते गुरुवार व कुछ समय पहले उत्तराखंड के जिलों में भूकंप के झटके आए हैं। वहीं अब उत्तराखंड में भारी भूकंप आने का खतरा बताया जा रहा है।

वैज्ञानिक का दावा- भारी भूकंप मचा सकता है तबाही

इस संबंध में विशेषज्ञों ने भी चिंता जताई है। इसे लेकर राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (NGRI) में भूकंप विज्ञान के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. एन पूर्णचंद्र राव ने चेतावनी दी है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा है कि तुर्की से भी बड़े भूकंप का खतरा उत्तराखंड पर मंडरा रहा है। हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि संरचनाओं को मजबूत करके  जान-माल के नुकसान को कम किया जा सकता है। साथ ही उन्होंने कहा कि भूकंप के समय की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है।

हर साल पांच सेमी बढ़ रही है भारतीय प्लेट्स

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हैदराबाद स्थित एनजीआरआई के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. पूर्णचंद्र राव का कहना है कि धरती की परत कई प्लेट्स से मिलकर बनी है और इन प्लेट्स में लगातार विचलन होता रहता है। भारतीय प्लेट्स हर साल पांच सेंटीमीटर तक खिसक गई हैं और इसकी वजह से हिमालय क्षेत्र में काफी तनाव बढ़ गया है। इसी के चलते हिमालय क्षेत्र में भारी भूकंप आ सकता है। जिस पर डॉ. पूर्णचंद्र राव ने कहा कि हिमाचल प्रदेश, नेपाल के पश्चिमी हिस्से और उत्तराखंड में भूकंप आ सकता है। डॉ. राव ने कहा कि रिक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 8 रह सकती है।

बीते 150 सालों में हिमालय क्षेत्र में चार बड़े भूकंप ने मचाई थी तबाही

रिपोर्ट्स में बताया गया है कि बीते दिनों वाडिया इंस्टीट्यूट की रिसर्च में ही खुलासा हुआ था कि हिमालय क्षेत्र के सबसे बड़े ग्लेशियर में से एक गंगोत्री ग्लेशियर बीते 87 सालों में 1.7 किलोमीटर तक खिसक गया है। हिमालय क्षेत्र के अन्य ग्लेशियर में भी ऐसा ही  कुछ हो रहा है। इसके अलावा जोशीमठ में हुआ भू धंसाव भी एक बड़े खतरे की तरफ इशारा कर रहा है। बीते 150 सालों में हिमालय क्षेत्र में चार बड़े भूकंप आए हैं। इनमें साल 1897 में शिलॉन्ग का भूकंप, 1905 में कांगड़ा का भूकंप, 1934 में बिहार-नेपाल का भूकंप और 1950 में असम का भूकंप शामिल हैं। इनके अलावा साल 1991 में उत्तरकाशी में, 1999 में चमोली में और 2015 में नेपाल में भी बड़ा भूकंप आया था।

1991 में उत्तरकाशी में 6.4 रिक्टर, चमोली में 1999 में 6.6 रिक्टर स्केल का भूकंप से मची थी तबाही

उत्तराखंड भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील सिस्मिक जोन फोर में आता है। ऐसे में जब भी भूकंप की बात आती है तो उत्तराखंड के लोगों में डर पैदा हो जाता है। छोटे झटकों को छोड़ दें तो उत्तराखंड में दो बार भूकंप बड़ी तबाही मचा चुका है। 1991 में उत्तरकाशी में 6.4 रिक्टर और चमोली में 1999 में आए 6.6 रिक्टर स्केल का भूकंप आया था। 1991 और 1999 दो बार उत्तराखंड में भूकंप तबाई लेकर आया था। 20 अक्टूबर 1991 में 6.8 तीव्रता के भूकंप ने उत्तरकाशी के के कई गांवों में भयानक तबाही मचाई। पूरे जिले में 768 लोगों की इस भूकंप में मौत हुई थी। जबकि 1800 ग्रामीण बुरी तरह से घायल हुए थे। तीन हजार परिवार बेघर हो गए थे। उत्तरकाशी में वर्ष 1918 में आए भूकंप ने भी पूरे क्षेत्र में तबाही मचा दी थी। 1999 के भूकंप ने फिर उत्तरकाशी को डराया। इसके बाद भी जिले में समय समय पर भूकंप के झटके महसूस किए जाते रहे, लेकिन बड़ी तबाही का कारण नहीं बने। भूगर्भीय दृष्टि से जिला बेहद संवेदनशील जोन-4 व 5 में स्थित है। परंतु यहां अनियोजित ढंग से विकास होता रहा है। 1999 का चमोली का भूकम्प 29 मार्च 1999 को उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले में आया था। यह भूकम्प हिमालय की तलहटियों में 90 वर्षों का सबसे शक्तिशाली भूकम्प था। इस भूकम्प में 100 से ज्यादा लोग मारे गए।

जानिए क्यों आता है भूकंप

दरअसल ये पृथ्‍वी टैक्टोनिक प्लेटों पर स्थित है। इसके नीचे तरल पदार्थ लावा है। ये प्लेट्स जो लगातार तैरती रहती हैं और कई बार आपस में टकरा जाती हैं। बार-बार टकराने से कई बार प्लेट्स के कोने मुड़ जाते हैं और ज्‍यादा दबाव पड़ने पर ये प्‍लेट्स टूटने लगती हैं। ऐसे में नीचे से निकली ऊर्जा बाहर की ओर निकलने का रास्‍ता खोजती है और इस डिस्‍टर्बेंस के बाद भूकंप आता है। वहीं भूकंप पर पर्यावरणविद् श्रवण कुमार ने बताया है कि आज के समय में भूकंप आने का बड़ा कारण इंसानी करतूत है। पहाड़ों को काटा जा रहा है, धरती की गहराई से खुदाई करके तेल निकाला जाता है, पेड़ों की संख्‍या कम होती जा रही है और उनकी जगह ऊंची इमारतें तैयार हो रही हैं। इन सब से प्रकृति का संतुलन बिगड़ता है, जो समय-समय पर भूकंप की वजह बनता है।

जानें कैसे मापी जाती है तीव्रता

भूंकप की जांच रिक्टर स्केल से की जाती है। रिक्‍टर स्‍केल भूकंप की तरंगों की तीव्रता मापने का एक गणितीय पैमाना होता है, इसे रिक्टर मैग्नीट्यूड टेस्ट स्केल कहा जाता है। रिक्टर स्केल पर भूकंप को इसके केंद्र यानी एपीसेंटर से 1 से 9 तक के आधार पर मापा जाता है। ये स्‍केल भूकंप के दौरान धरती के भीतर से निकली ऊर्जा के आधार पर तीव्रता को मापता है।